मित्रों!
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
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गीत "खोज रहे हैं शीतल छाया, कंकरीट की ठाँव में" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
सन्नाटा पसरा है अब तो,
गौरय्या के गाँव में।
दम घुटता है आज चमन की,
ठण्डी-ठण्डी छाँव में।।
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नहीं रहा अब समय सलोना,
बिखर गया ताना-बाना,
आगत का स्वागत-अभिनन्दन,
आज हो गया बेगाना,
कंकड़-काँटे चुभते अब तो,
पनिहारी के पाँव में।
दम घुटता है आज चमन की,
ठण्डी-ठण्डी छाँव में।।
उच्चारण
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मरवण जोवे बाट
बीत्या दिनड़ा ढळा डागळा
भूली बिसरी याद रही।
दिन बिलखाया भूले मरवण
नवो साल सुध साद रही।।
गूँगी गुड़िया
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हो निशब्द जिस पल में अंतर
शब्दों से ही परिचय मिलता
उसके पार न जाता कोई,
शब्दों की इक आड़ बना ली
कहाँ कभी मिल पाता कोई !
मन पाए विश्राम जहाँ
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आज दुष्यंत कुमार होते तो यही कहते
इस चुनावी माहौल में आप कहाँ हैं दुष्यंत कुमार?
1. हो गयी है भीड़,
नेताओं की,
छटनी चाहिए,
बन गए जो ख़ुद, ख़ुदा,
औक़ात, घटनी चाहिए.
तिरछी नज़र
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दोहे राजनीति पर
1 - उत्सव होइ चुनाव का , बजैं जाति के ढोल।
खाई जनता में बढ़े , सुन सुन कड़ुवे बोल।।
2 - जातिवाद अभिशाप है , लोकतंत्र के देश।
समाज सेवा होइ नहि ,जातिय झंडा शेष।।
काव्य दर्पण
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अहम का भाव और मैं
कुछ तो वादा होगा मेरा खुद से ।
खुदगर्जी आच्छादित दर्पी बेखुद से ।।
ऐसे कहाँ बदलती है तल्खी औ तेवर ।
पहने अक्स निहारूँ आभाओं के जेवर ।।
डर ही जाती दिखते दर्पण के ही बुत से ।
जिज्ञासा की जिज्ञासा
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हमने भी करके देख लिया,
ये इश्क गुलाबों वाला
वो मातमी मंजर था ,जलती सी चिताओं वाला ।
अश्कों की बारिशों में, चुभती सी हवाओं वाला ।
फिर बेचैनियों के दरमियां,मौसम की खबर आई
अब अर्थ खो चुका है, हर लफ्ज़ बफाओं वाला।
अभिव्यक्ति मेरी
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एक लप्पड़ मार के तो देख! समीक्षा - कविता संग्रह - यूँ ही अचानक कुछ नहीं घटता
कविता रावत का कविता संग्रह - यूँ ही अचानक कुछ नहीं घटता - कई मामलों में विशिष्ट कही जा सकती है. संग्रह की कविताएँ वैसे तो बिना किसी भाषाई जादूगरी और उच्चकोटि की साहित्यिक कलाबाजी रहित, बेहद आसान, रोजमर्रा की बोलचाल वाली शैली में लिखी गई हैं जो ठेठ साहित्यिक दृष्टि वालों की आलोचनात्मक दृष्टि को कुछ खटक सकती हैं, मगर इनमें नित्य जीवन का सत्य-कथ्य इतना अधिक अंतर्निर्मित है कि आप बहुत सी कविताओं में अपनी स्वयं की जी हुई बातें बिंधी हुई पाते हैं, और इन कविताओं से अपने आप को अनायास ही जोड़ पाते हैं.
एक उदाहरण -
माना कि स्वतंत्र है
अपनी जिंदगी जीने के लिए
खा-पीकर,
देर-सबेर घर लौटने के लिए
…
संग्रह में हर स्वाद की कविताएँ मौजूद हैं जिससे एकरसता का आभास नहीं होता, और संग्रह कामयाब और पठनीय बन पड़ा है. जहाँ आज चहुँओर घोर अपठनीय कविताओं की भरमार है, वहाँ, कविता रावत एक दिलचस्प, पठनीय और सफल कविता संग्रह प्रस्तुत करने में सफल रही हैं.
छींटे और बौछारें
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प्रतिलिपि
प्रतिलिपि लिखी जिन गुमनाम गुलजारों की l
मिली वो इस अंजुमन के प्यासे रहदारों सी ll
सूनी दीवारें सजी थी किसी दुल्हन सेज सी l
कुरबत जिसके उतर आयी थी महताब बारात की ll
RAAGDEVRAN
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गजल -- रोज़ नए गम हैं
रोज नये गम हैं , कुछ घटा लीजिये ,
दो घड़ी साथ हंस कर बिता लीजिये |
ईर्ष्या द्वेष से कुछ न होगा कभी ,
खुद को सबसे ऊंचा उठा लीजिये | -
जिन्दगी ये महाकाव्य
हो जायेगी , कोई दर्द ह्रदय में बसा लीजिये |
Surbhi
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उनके हिस्से चुपड़ी रोटी,बिसलेरी का पानी है
मेरा सृजन --
Watch: ऐसी मोटरसाइकिल जिस पर बैठ सकते हैं 12 लोग
पाकिस्तान में पुलिसकर्मी ने बनाई 16 फीट की मोटरसाइकिल, कराची के अली मुहम्मद मेमन ने साढ़े 3 लाख रुपए से डेवेलप की बाइक, 370 किलोग्राम की बाइक में 300 सीसी का इंजन, दो स्टैंड, तीन ब्रेक
देशनामा
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लॉक उन डेज़- कामना सिंह यूँ तो यह उपन्यास मुझे उपहारस्वरूप मिला। फिर भी मैं अपने पाठकों की जानकारी के लिए बताना चाहूँगा कि इस 216 पृष्ठीय उम्दा उपन्यास के पेपरबैक संस्करण को छापा है अनन्य प्रकाशन ने और इसका मूल्य रखा गया है 250/- रुपए। आने वाले उज्ज्वल भविष्य के लिए लेखिका तथा प्रकाशक को अनेकों अनेक शुभकामनाएं।
हँसते रहो
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देहरादून में लेखिका सुरभि सिंघल के कहानी संग्रह और लेखक देवेन्द्र प्रसाद के उपन्यास का हुआ विमोचन
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सुरभि सिंघल, विकास नैनवाल, देवेन्द्र प्रसाद देहरादून में आयोजित एक कार्यक्रम में लेखिका सुरभि सिंघल के कहानी संग्रह ‘बियर टेबल’ और लेखक देवेन्द्र प्रसाद के उपन्यास ‘कब्रिस्तान वाली चुड़ैल’ का विमोचन हुआ। यह कार्यक्रम पटेल नगर में मौजूद वालनट रेस्टोरेंट में 26 दिसम्बर 2021 को आयोजित किया गया। |