सादर अभिवादन।
गुरुवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
शीर्षक व काव्यांश आ.शांतनु सान्याल जी की रचना 'मंज़िल दर मंज़िल' से-
कहते हैं
यहाँ कभी था
इक लहराता
हुआ झील
दूर तक,
न
दरख़्त, न कोई साया, न
जाने किधर वो कारवां
गए,
आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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दोहे "सीमा पर घुसपैठ को, झेल रहा है देश"
उच्चारण सुधरा नहीं, बना नहीं परिवेश।
अँगरेजी के जाल में, जकड़ा सारा देश।१।
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अपना भारतवर्ष है, गाँधी जी का देश।
सत्य-अहिंसा के यहाँ, मिलते हैं सन्देश।२।
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सर ज़मीं ए ख़्वाब दिखा कर,
लोग न जाने कहाँ गए,
मुसलसल बियाबां
के सिवा कुछ
न था हम
जहाँ
गए, उनका अपना है जो
चश्म ए अंदाज़, कैसे
कोई बदले,
आज तक तन ही सँवारा
डोर इक मनपर बँधी थी
पूज्य बनकर मान पाया
खूँट गौ बनकर बँधी थी
हौसले के दर खुलेंगे
राह सुलझेगी अगारी।।
मौन हो चुके सम्बन्धों को क्यों छेड़ूँ
किस लिए मनाऊँ ?
समझ नहीं आता है कारण
किस विधि छोड़ूँ,किसे बुलाऊँ ?
भाग्य में लिखा है
तुम्हारा न मिलना
और मेरा न लौटना
कैलेंडर केवल
कुछ पन्नों का
महज एक दस्तावेज है
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मन पक्षी बन उड़ रहा
मार कुलाँचे जोर
फिर सूरज की रश्मियाँ
पकड़ाती हैं छोर
देख हुए तब बावरे
शीघ्र मिले वो गाँव।।
कभी मन में बेचैनी होती
इतना इन्तजार किस लिए
कब तक राह देखी जाए
नव वर्ष जल्दी से क्यूँ न आए |
उस दिन राजेश जल्दी में था तो नाश्ता छोड़ ऑटो लेकर वो नई दिल्ली स्टेशन पहुँचा, भागते हुए ट्रैन पकड़ ही ली । आज ड्यूटी पानीपत लगी थी ।सीट मिलते ही भूख की तरफ ध्यान गया ।ट्रैन में कोल्ड ड्रिंक बेचले वाले की आवाज़ धीरे-धीरे पास आने लगी । हर माल मिलेगा 10 रुपैया , हर माल मिलेगा 10 रुपैया । हमारे कम्पार्टमेंट में आते ही उसने उसे आवाज़ दी - ए कैम्पा ? राजेश ने एक फैंटा औऱ दो वेफर्स के पैकेट लिए औऱ 10-10 के तीन नॉट दिए ।"क्या बाऊजी आप भी न !! पहली बार इस गाड़ी मा बैठे हो का" -- मुस्कराता हुआ वो वेंडर फिर उसे बोला ।----"10 रुपैया में भी कोई चीज़ आता है का ?'
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बिटिया का घर बसायें संयम से
"क्या हुआ माँ जी ! आप यहाँ बगीचे में....? और कुछ परेशान लग रही हैं" ? शीला ने सासूमाँ (सरला) को घर के बगीचे में चिंतित खड़ी देखा तो पूछा। तभी पीछे से सरला का बेटा सुरेश आकर बोला,"माँ ! आप निक्की को लेकर वही कल वाली बात पर परेशान हैं न ? माँ आप अपने जमाने की बात कर रहे हो, आज जमाना बदल चुका है । आज बेटा बेटी में कोई फर्क नहीं । और पूरे दस दिन से वहीं तो है न निक्की।और कितना रहना, अब एक चक्कर तो अपने घर आना ही चाहिए न। आखिर हमारा भी तो हक है उसपे " ।
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देश के विभिन्न हिस्सों की यात्रा के बनिस्पत, सुदूर स्थित, अंडमान जाना कुछ अलग मायने रखता है ! वर्षों से वहाँ जाने का सपना पलने के बाव जूदविभिन्न कारणों से वह साकार नहीं हो पा रहा था ! पर पिछले दिनों महामारी से कुछ हद तक उबरने के पश्चात अपनी #RSCB (Retired and Senior Citizen Brotherhood) संस्था द्वारा उपलब्ध अवसर को, काफी इट्स-बट्स, शंका-कुशंका, हाँ-ना, फेर-बदल, कुछ-कुछ विपरीत हालात-परिस्थितियों के बावजूद, बेजा ना जाने देने का निर्णय ले ही लिया ! इसमें दो साल पहले की केरल यात्रा के साथी श्री और श्रीमती बेदी जी तथा सुश्री कैलाश जी का साथ भी मिल गया। यात्रा 11 दिसम्बर से 16 दिसंबर तक की थी।
कई बार ऐसा होता है कि जब हम बाजार से प्लास्टिक कंटेनर खरीद कर लाते है, तो वे शुरू में तो एयरटाइट होते हैं, लेकिन समय के साथ-साथ उनका ढक्कन ढीला हो जाता है और उनका इस्तेमाल भी सही से नहीं हो पाता है। कभी कभी प्लास्टिक कंटेनर के ढक्कन ज्यादा टाइट रहने से भी हमें दिक्कत होती है। ऐसे कंटेनर्स को बदलकर हम दूसरा भी नहीं ला सकते क्योंकि ये काफी महंगे आते हैं। ऐसे में कितना अच्छा हो यदि हम पुराने कंटेनर्स के ही ढक्कन टाइट या ढीले कर सके?
उम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, अनिता दी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार अनीता सैनी दीप्ति जी।
गद्य और पद्य के सुंदर, सार्थक सृजनों का संकलन । बहुत बढ़िया अनीता की ।सादर शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
सुंदर संतुलित चर्चा, विभिन्न विषय सामग्री।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई
सभी रचनाएं बहुत आकर्षक सुंदर।
मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभार।
सादर सस्नेह।
बहुत सुन्दर चर्चा
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट रचनाओं से सजी लाजवाब चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को चर्चा में स्थान देने हेतु तहेदिल से धन्यवाद प्रिय अनीता जी!
सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।
बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअनीता जी मैं आपकी साहित्यिक अभिरुचि के प्रति धन्यवाद ज्ञापित करती हूँ. आप लगातार मेरी शिशु रचनाओं को चर्चामंच के मध्य ला रही हैं. आप की उमंग यूँ ही कायम रहे. नव वर्ष की मंगल कामनाएँ!
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