सादर अभिवादन।
सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
आइए पढ़ते हैं कुछ पसंदीदा रचनाएँ-
गीत "बैर के अंकुर उगाना पेट में निर्मूल हैं"
चार दिन की जिन्दगी, बाकी अंधेरी रात है,
किसलिए फिर दुश्मनी की बात
है,
शूल की गोदी में पलते फूल
हैं,
बैर के अंकुर उगाना पेट
में निर्मूल हैं,
दे रहा है अमन का पैगाम
भारत!
अब नहीं होगा हमारा देश
आरत!!
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मुझे यहीं जीने का
सच्चा आनन्द मिला
अपनी क्षमता जान सका
खुद को पहचान सका |
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एक ग़ज़ल : वह अधेरों में इक रोशनी है
नाप सकते हैं हम आसमाँ भी,
हौसलों में कहाँ कुछ कमी है।
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परस्पर
साथ चलते हैं
उम्र
का कोई एक सिरा
सांझ से बंधा होता है
और
सांझ
का एक सिरा
उम्रदराज़ विचारों से बंधा होता है।
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एक नवगीत सामाजिक विसंगतियों और विरोधाभासों के नाम
अपशब्द | कविता | डॉ शरद सिंह | नवभारत
कमबख्त किसी शैतान ने ही बनाई है ये मूँगफली! तभी खाते हुए रुका नहीं जाता है। भगवान इतना निर्दयी नहीं हो सकता है।"
भगवान और शैतान हो न हो लेकिन वो पैदा कैसे होते हैं इसका पता तो लग ही जाता है।
विभूति एक आत्मा ( गीता जयंती विशेष )
मिलने को उत्सुक है, चंचल अधीर जीव,
त्रस्त, संत्रस्त, अपत्रस्त हुआ जाता है ।
अब किस की देहरी पे शीश मैं झुकाऊँ जाके ,
पूरा ब्रम्हाण्ड आज शून्य नज़र आता है ।।
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आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे आगामी सोमवार।
रवीन्द्र सिंह यादव
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंक्स आज की
धन्यवाद रवीन्द्र जी मेरी रचना को आज के पटल पर स्थान देने के लिए |
खूब आभार आपका रवीन्द्र जी...। साधुवाद
जवाब देंहटाएंआदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी।
जवाब देंहटाएंआपने बहुत अच्छा चर्चा का अंक सजाया है।
बहुत-बहुत आभार।
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति। अंक में मेरी पोस्ट को स्थान देने हेतु आभार।
जवाब देंहटाएंविविधापूर्ण सूत्रों से सजी सुंदर प्रस्तुति में मेरी रचना शामिल करने के लिए अत्यंत आभारी हूँ रवींद्र जी।
जवाब देंहटाएंसादर।
बहुत खूबसूरत चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सराहनीय संकलन । मेरी रचना शामिल करने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार आदरणीय रविंद्र सिंह यादव जी । सभी रचनाकारों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं ।
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