सादर अभिवादन
रविवार की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है
(शीर्षक आदरणीय शास्त्री सर जी की रचना से और भुमिका आदरणीय ब्रजेंद्रनाथ जी की रचना से)
"25 दिसंबर" ये दिन बहुत खास होता है..
प्रभु येशु मसीह के जन्म दिवस के साथ- साथ इस दिन हमारे देश के दो महानायकों का भी अवतरण हुआ था।
मदनमोहन मालवीय जी को समर्पित ब्रजेंद्रनाथ जी की लिखी ये पंक्तियां
आपकी कीर्ति पताका आज भी लहरा रही है।
कर्मपथ के योगियों को आगे बढ़ो बतला रही है।
आदरणीय अटल बिहारी वाजपेई जी का गुणगान करती ब्रजेंद्रनाथ जी की पंक्तियां
मैं ही राष्ट्र - रागिनी की उमंग।
मैं जलती बाती की ज्योति
निष्कंप, निश्चल हूँ।
में अटल हूँ, मैं अटल हूँ।
इन दोनों विभुतियों को मेरा सत- सत नमन
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ये तो थी 25 दिसंबर की बात....
लेकिन आज तो 26 दिसंबर है और आज हमारे इतिहास का काला दिन है
26 दिसंबर 1704 में आज ही के दिन गुरु गोबिंद सिंह के दो साहिबजादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह को इस्लाम धर्म कबूल न करने पर सरहिंद के नवाब ने दीवार में जिंदा चुनवा दिया था और माता गुजरी देवी को किले की दीवार से गिराकर शहीद कर दिया गया था।
विनम्र श्रद्धांजलि इन सपुतो के लिए भी
जिन्होंने अपने प्राण त्याग दिए मगर धर्म का त्याग नहीं किया
इन्हें सत सत नमन करते हुए चलते हैं आज की कुछ खास रचनाओं की ओर....
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दोहे "क्रिसमस-डे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
जो मानवता के लिए, चढ़ता गया सलीब।
वो ही होता कौम का, सबसे बड़ा हबीब।।
जिसमें होती वीरता, वही भेदता व्यूह।
चलता उसके साथ ही, जग में विज्ञ समूह।।
मंजिल है जिस पन्थ में, उस पर चलते लोग।
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महामना प0 मदन मोहन
पच्चीस दिसंबर याद रहे,देवदूत जन्मा था एक।
लोक हितैषी योगी शिक्षक,कार्य किए थे जिसने नेक।।
संस्कृत के विद्वान रहे थे,और वकालत से पहचान।
लक्ष्य समाज सुधार रखे जब,कर्मवीर का कार्य महान।।
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अटल जी और मालवीय जी पर कविता (कविता)
मैं नेताओं जैसी लफ्फाजी में नहीं
राजनीति की जीती हुयी बाजी में भी नहीं।
मैं अक्षरों में, शब्दों में,
वाक्यों में, गीतों में।
मैं हार में, व्यवहार में,
अरियों में, मीतों में।
मैं सुधीजनों की सुधियों में
तैरता तरल हूँ।
मैं अटल हूँ, मैं अटल हूँ।
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दिल की धरती पर
दिल की धरती पर
छिटके हैं
एहसास के अनगिनत बीज।
धैर्य ने बाँधी है दीवार
कर्म की क्यारियों का
सांसें बनती हैं आवरण।
धड़कनें सींचती हैं
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संकरा है वह द्वार प्रभु का
क्रिसमस उसकी याद दिलाता
जो भेड़ों का रखवाला था,
आँखें करुणा से नम रहतीं
मन जिसका मद मतवाला था !
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हाइकु
लो
मारू
वैवर्त
गुणधर्म
अति में गर्त
ना प्यार में शर्त
जल स्त्री संरचना
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अक़ील
यह संस्मरण मेरे दिल के बहुत क़रीब है. एक किशोर की अपरिपक्व मानसिकता और उसकी भावुकता उस से बहुत सी नादानियाँ करा देती है. अकील-प्रसंग ने मेरी ज़िन्दगी में तूफ़ान ला दिया था लेकिन आज उस भटके हुए किशोर के अपने रूप पर मुझे बहुत प्यार आता है
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मगर...
आख़िर मैंने चाहना कम किया
वो कहती भी रही कम का
मगर कम भी तो कितना कम होता
अब कम क्या विलुप्त का पर्याय होगा
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निरंतर, एक वर्ष और
निरुत्तर करती रही, उसकी निरंतरता!
यूं वर्ष, एक और बीता,
बिन थके, परस्पर बढ़ चले कदम,
शून्य में, किसी गंतव्य की ओर,
बिना, कोई ठौर!
निरंतर, एक वर्ष और!
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दो-चार बात कर के जो तेरा नहीं हुआ
है कौन जिसको इश्क़ ने घेरा नहीं हुआ.
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शादी में सात फेरे ही क्यों लिए जाते है?सात फेरे ही क्यों लिए जाते है? छः या आठ फेरे क्यों नहीं लिए जाते? नहीं सोचा न! आइए, आज मैं आपको बताती हूं कि शादी में सात फेरे ही क्यों लिए जाते है... हिन्दू धर्म में 16 संस्कार जीवन के सबसे महत्वपूर्ण अंग माने जाते है। विवाह में जब तक 7 फेरे नहीं हो जाते, तब तक विवाह संस्कार पूर्ण नहीं माना जाता। *7 की संख्या का महत्व*
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आज का सफर यही तक, अब आज्ञा दे
आप का दिन मंगलमय हो
कामिनी सिन्हा
बहुत सुंदर और उपयोगी चर्चा प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीया कामिनी सिन्हा जी!
उम्दा लिंक्स का संकलन।
जवाब देंहटाएंआभार आपका।
उम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, कामिनी दी।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आदरणीय कामिनी दी मुझे स्थान देने हेतु।
जवाब देंहटाएंसराहनीय संकलन।
सादर
सुंदर, सराहनीय संकलन कामिनी जी । आपको और सभी रचनाकारों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंआप सभी स्नेहीजनों को को हृदयतल से धन्यवाद एवं सादर अभिवादन
जवाब देंहटाएंदेर से आने के लिए खेद है, सार्थक भूमिका के साथ सुंदर चर्चा, आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत चर्चा संकलन
जवाब देंहटाएंबहुत आभार कामिनी जी ...
जवाब देंहटाएंमेरी गज़ल को स्थान दिया है आपने इस चर्चा में ... देर से आने का खेद है मुझे ...