मित्रों!
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
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"मेरा एक संस्मरण" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
लगभग 35 साल पुरानी बात है! खटीमा में उन दिनों मेरा निवास ग्राउडफ्लोर पर था। दोनों बच्चे अलग कमरे में सोते थे। हमारे बेडरूम से 10 कदम की दूरी पर बाहर बराम्दे में शौचालय था। रात में मुझे लघुशंका के लिए जाना पड़ा। उसके बाद मैं अपने बिस्तर पर आकर सो गया। उच्चारण
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रंग चुरा लूँ धूप से, संग नीर की बूँद।
इंद्रधनुष हो द्वार पर, देखूँ आँखे मूँद।।
तम के बादल छट रहे, दुख की बीती रात।
इंद्रधनुष के रंग ले, सुख की हो बरसात।।
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क्षितिज के पारसौरभ भीनी लहराई दिन बसंती चार। मन मचलती है हिलोरें सज रहें हैं द्वार।
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आइए आज से प्रारंभ करते हैं जाड़ों का तरही मुशायरा, आज सुनते हैं राकेश खंडेलवाल जी और मन्सूर अली हाशमी जी से उनकी रचनाएँ। इस बार पहली बार हम ठंड के मौसम पर तरही मुशायरा आयोजित कर रहे हैं। इससे पहले हमने गर्मी, बरसात, वसंत सब पर तरही मुशायरा आयोजित किया। जाड़ों का मौसम हमसे इसलिए छूटता रहा क्योंकि दीपावली का तरही मुशायरा आयोजित करने के बाद एकदम कुछ आलस आ जाता है। और फिर होली तक यह आलस बना ही रहता है। लेकिन इस बार सोचा कि अपने इस पसंदीदा मौसम को क्यों छोड़ा जाए। बस एक मिसरा बना और भूमिका बन गई तरही मुशायरे की।अच्छा लगा यह देख कर कि आप सब ने इस बार बहुत उत्साह के साथ इस मुशायरे में अपनी ग़ज़लें भेजी हैं। सुबीर संवाद सेवा
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खुद के प्रकाश से चमकना है तुझे
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कुछ पकौड़े चाय के संग शाम रविवार की...
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ईश्वर सहायता करे समय ने कविता के क्षेत्र से राजनीति के क्षेत्र में पटक दिया। एक साधारण अध्यापक हूँ, राजनीति की बारीकियाँ नहीं समझता। न देना जानता हूँ न माँगना। किसी के काम आता हूँ यह भी मुझे नहीं पता। फिलहाल मैं लोगों से काम नहीं ले पाता यह मुझे लगता है। मेरे से किसी का कोई काम हो जाए या किसी को कुछ मिल जाए अथवा मेरा कोई काम किसी से चल जाए यह ईश्वर की अनुकम्पा है। अपना सिद्धांत है अजगर करै न चाकरी मेरी दुनिया
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नीति के दोहे मुक्तक राजनीति में आज है, जातीयता प्रचंड। कैसे मिटै समाज में,कौन विधि खंड खंड।। कवि: अशर्फी लाल मिश्र,अकबरपुर, कानपुर।
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आज कमसिन सी जवानी दृग पटल को खोलती है।
ले हया का एक पर्दा झाँक कर कुछ बोलती है।।
वो अदाओं में सिमट कर आज कैसे चल रही।
देख हिरनी सी बिदकती डोलती हैैं।।
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उपन्यास राक्षस के लेखक नितिश सिन्हा से एक खास बातचीत
नितिश सिन्हा केन्द्रीय सरकार के अंतर्गत प्रभागीय लेखा अधिकारी हैं। अभी ओड़ीसा में कार्यरत हैं। उनकी प्रथम रचना सुमन सौरभ में लगभग 1997 में प्रकाशित हुई थी। वह कई नाटकों का लेखन कर चुके हैं और कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन में सहयोग भी कर चुके हैं।
हाल ही में उनका उपन्यास राक्षस नीलम जासूस कार्यालय से प्रकाशित हुआ है। हमने राक्षस के विषय में उनसे बातचीत की है। उम्मीद है यह बातचीत आपको पसंद आएगी।
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आज के लिए बस इतना ही...!
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आज के चर्चा मंच में 'मयंक'जी ने सभी उम्दा विषय विषयों का चयन किया है।बहुत बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत ही शानदार प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसभी अंक एक से बढ़कर एक हैं
मेरी रचना को चर्चामंच में शामिल करने के लिए आपका तहे दिल से धन्यवाद आदरणीय सर🙏
मेरी रचना को यथ्होचित स्थान देने हेतु मयंक सर एवं मंच प्रबंधन का हृदय से आभार एवं मंच की चर्चा ऐसे ही नित् नई ऊँचाईयों को छूती रहे, इसके लिये हार्दिक शुभकामना....।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सराहनीय अंक ।
जवाब देंहटाएंसराहनीय अंक, ये चर्चा शानदार रही आदरणीय शास्त्री जी ने श्रमसाध्य कार्य से सुंदर ब्लॉग तक पहुंचाया।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदय से आभार ।
सादर।
बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआदरणीय ,
जवाब देंहटाएंरचनाओं को चुन - चुनकर सहेजने कि उम्दा कला ।
धन्यवाद !
रोचक लिंक्स से सुसज्जित चर्चा।
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