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सोमवार, दिसंबर 27, 2021

'चार टके की नौकरी, लाख टके की घूस' (चर्चा अंक 4291)

 सादर अभिवादन। 

सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है। 

आइए पढ़ते हैं कुछ चुनिंदा रचनाएँ-  

दोहे "चमचों की महिमा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

चार टके की नौकरी, लाख टके की घूस।

लोलुप नौकरशाह ही, रहे देश को लूट।।

--

मक्कारों की नाक में, डाले कौन नकेल।

न्यायालय में मेज के, नीचे चलता खेल।।

*****

दिल्ली की एक शाम

यह प्रसंग मेरे जीवन की अविस्मरणीय स्मृतियों में मूल्यवान हीरे की तरह दमकता रहता है ! दिल्ली के रविवार के सैर सपाटों की लम्बी सूची है लेकिन यह प्रसंग सबसे अनूठा और सबसे अनमोल है जिसे मैं कभी नहीं भूल सकती !*****

लड़कियां किस्म-किस्म की | डॉ सुश्री) शरद सिंह | कविता | नवभारत

एक लड़की
ख़ुश है अपने
लड़की होने पर

एक लड़की
करती है विलाप-
'अगले जनम मोहे

बिटिया न कीजो'
*****
राजेन्द्र वर्मा

दुःख टँगा है

देह-अलगनी पे,

मन है खाली ।

रिश्तों के मेघ झरें,

टपके सूनापन।

*****

फिर मिलेंगेतुम्हे पूरा यकीन था कि अच्छे लोग जब हमें छोड़ कर जाते हैं तो वो तारे बन जाते हैं और तुम्हारे उसी यकीन को तुम्हारा इशारा मानकर मैं अब भी शाम को रात होते हुए देखता हूँ। पर अब आसमान का रंग बदलते हुए नही बल्कि तुम्हे तारा बनकर जगमगाते हुए देखता हूँ। अब जब भी किन्ही दो तारों को एक साथ देखता हूँ तो लगता है कि तुम्हारी ख़ूबसूरत आँखें मुझे ऊपर से देख रही हैं और मैं अनायास ही शरमा जाता हूँ। मैं पूरी कोशिश करता हूँ कि अच्छा दिखूं वरना कहीं तुम्हे इस बात का दुःख ना हो कि तुम्हारे बिना मैंने अपना क्या हाल बना रखा है।
*****Watch: ऊंटों का ब्यूूटी कंटेस्ट

दरअसल अल दाफरा फेस्टिवल में हर केटेगरी के दस टॉप ऊंटों को 1300 से लेकर 13,600 डॉलर तक नकद इनाम दिए जाते हैं. सऊदी अरब में होने वाले मुख्य कंटेस्ट में सबसे खूबसूरत ऊंट को 6.6 करोड़ डॉलर का इनाम दिया जाता है. लेकिन ये सिर्फ बड़े नकद इनामों का सवाल ही नहीं है. इसे विरासत और परम्परा से जोड़ कर देखा जाता है.
*****

अमर वलिदानियों ने अपने देश धर्म वचन कर्तव्य संस्कार मूल्यों के रक्षार्थ अपने प्राणों की आहुति दे दी ,परंतु पथ से विचलित नहीं हुए धर्म ध्वज अटल अडोल रहा।

    न झुका सके जालिम औरंगजेब का फरमान, 

न ही सरहिंद का सूबेदार नवाब वजीर खान की अदालत न गद्दार गंगू पंडित की शिनाख्त ,न ही सुच्चा नन्द की गवाही व मौत की सिफारिस,न ही काजी का फतवा ,न ही सुख ऐश्वर्य,न जीवन का लोभ ही । 

गर्व है हम उनके वारिस हैं ।

कंपकंपाती ठंड ( वर्ण पिरामिड )
रे
नर 
ओढ़ना
औ बिछौना
रजाई कम्मर
बैठ ओढ़कर
मरेगा ठिठुरकर ।।
*****
महान बनने का अनोखा ऑफ़र
यदि आपको अभी भी हमारे प्रोजेक्ट में ज़रा-सी रुचि है और आपके पास थोड़ा-सा भी आत्म-सम्मान’ बचा है तो ‘महान’ बनना क़तई मुमकिन है।हमारे गुट में स्थान बेहद सीमित हैं।तीन सौ सक्रिय सदस्यों में फ़िलहाल हम सभी को ‘सम्मानित’ कर चुके हैं।सरकार की तरह हम कोई ‘बैकलॉग’ नहीं रखते।इसलिए हमसे जुड़ते ही आप ‘सम्मान’ के पात्र हो जाएँगे।यह भी हमारी महानता है कि आपकी कोई पुस्तक हमने नहीं पढ़ी,पर आपको ‘महान’ बनाने की हमारी निजी चाहत है।*****
आज बस यहीं तक 
फिर मिलेंगे अगले सोमवार। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

9 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात !
    आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी, नमस्कार !
    विविधतापूर्ण रचनाओं से परिपूर्ण उत्कृष्ट अंक ।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार ।
    मेरी हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर संकलन

    मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति।
    मेरी पोस्ट की पंक्ति को चर्चा का शीर्षक बनाने के लिए
    आपका आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  5. आज की चर्चा पठनीय रचनाओं के सूत्रों से सुसज्जित ! मेरे संस्मरण को भी स्थान मिला आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे !

    जवाब देंहटाएं

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