सादर अभिवादन !
शनिवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है ।
शीर्षक व काव्यांश आदरणीय कुसुम दी जी की रचना 'नवजागरण' से -
मन के दीप जला आलोकित
जीवन भोर उजाला भरलो
लोभ मोह सम अरि को मारो
धर्म ध्वजा को भी फहरालो
धरा भाव को समतल करके
उपकारी दानों को बोता।।
आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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बिछा रहा इंसान खुद, पथ में अपने शूल।
नूतनता के फेर में, गया पुरातन भूल।।
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हंस समझकर स्वयं को, उड़ते नभ में काग।
नीति-रीति को भूलकर, गाते भौंडे राग।।
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शाम ढले का ढ़लता सूरज
संग विहान उजाले लाता
साहस वालों के जीवन में
रंग प्रखर कोमल वो भरता
त्यागो धूमिल वसन पुराने
और लगा लो गहरा गोता।।
शरद में
अनगिनत फूलों का रंग निचोड़कर
बदन पर नरम शॉल की तरह लपेटकर
ओस में भीगी भोर की
नशीली धूप सेकती वसुधा,
अपने तन पर फूटी
तीसी की नाजुक नीले फूल पर बैठने की
कोशिश करती तितलियों को
देख-देखकर गुनगुनाते
भँवरों की मस्ती पर
बलाएँ उतारती है...
मैं कानन में खिल जाऊँ ।
आँगन की शोभा बढ़ाऊँ ।।
मैं खिलता रहा हूँ काँटों संग ।
कभी लाल कभी बासंती रंग ।।
जग जाता मुझ पर वारा..
मैं पुष्प बड़ा ही न्यारा..
कभी अपना दिल टटोलाना
क्या उससे कभी कोई
गलती हुई ही नहीं
वह कभी पशेमा हुआ ही नहीं |
"क्षोभमण्डल गुरु-शिष्य की अतुलनीय जोड़ी मंच पर शोभायमान हो रही है।" सञ्चालक महोदय ने घोषणा की
"दोनों शब्दों के जादूगर साहित्य जगत के सिरमौर। बेबाकी से आलोचना करने में सिद्धस्त। दोनों एक दूसरे के घटाटोप प्रशंसक।""दोनों कूटनीतिज्ञ अन्य के तिजोरी से हाथ सफाई दिखलाकर अपने सृजन का सिक्का जमाने में सफल।"
"समरथ को नहीं..." हर बार दर्शक दीर्घा में अण्डा और टमाटर गप्प करते तथा मायूस रह जाते..।
रात
एक शब्द मात्र नहीं
है एक ब्लैक होल
जिसमें
विचार भी
खो बैठते हैं
अपनी परछाई
और खिंचती चली जाती है
कर क्रीड़ा कोई हरि सुंदर,
मन तप जावे,होवे कुंदन।
बास न हो विकार की मन में,
चंदन-धर्म सुवासित तन पे।
वृद्ध आदमी
अपना अतीत देखता है
पानी की रवानी संग
बहता हुआ
दरअसल
अपने लंगोटिया यारों को
यही फूक-तापकर
आज का सफ़र यहीं तक ..
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
सुप्रभात
ReplyDeleteआभार सहित धन्यवाद आज की चर्चा मंच पर मेरी रचना को स्थान देने के लिए |उम्दा पठनीय लिंक्स |
सुप्रभात !
ReplyDeleteउम्दा रचनाओं से परिपूर्ण सराहनीय अंक ।
मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार ।
बहुत बहुत शुभकामनाएं अनीता जी ।
बेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
ReplyDeleteएक से बढ़कर एक उत्कृष्ट रचनाओं का संकलन ।
ReplyDeleteसादर।
प्रेरक एवं सदेशप्रद भूमिका,विविधापूर्ण सूत्रों से सुसज्जित सुगढ़ और सरस आज के अंक में मेरी रचना शामिल करने के लिए अत्यंत आभार अनु।
ReplyDeleteशुक्रिया
सस्नेह।
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति|
ReplyDeleteआपका बहुत-बहुत आभार अनीता सैनी दीप्ति जी!
बहुत ही शानदार प्रस्तुति...
ReplyDeleteआभार🙏