सादर अभिवादन।
शुक्रवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है
शीर्षक व काव्यांश आ.कल्पना मनोरमा जी की रचना 'मत कहो अंतिम महीना' से-
मत कहो अंतिम महीना मुझे प्यारे
नए का निस्तार देकर जाऊँगा ।।
इस बरस की खूबियों
को याद रखना
स्वा भूल से लेना सबक
अवशेष लिखना
आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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गीत "जनसेवक खाते हैं काजू, महँगाई खाते बेचारे!!"
किसी का ख़ून बहाना हो,
तो भीड़ जमा हो जाती है,
किसी की जान बचानी हो,
तो मैं अकेला रह जाता हूँ.
लिख़ने को बस तेरा एक नाम बाक़ी है..
आग सब बुझ गयी बस राख बाक़ी है
तुम कैसे कहते हो रगो में इंक़लाब बाकी है
कोई कत्ल कोई जेल गया कोई डर के भाग गया
कौन अब शहर में इनके ख़िलाफ़ बाकी है,
यह सृष्टि बनी है क्रीडाँगन
दिव्य चेतना शुभ मेधा की,
नित्य नवीन रहस्य खुल रहे
है अनंत प्रतिभा दोनों की !
अपनी साँसों को तुम्हारे पास
गिरवी रखके मैं समंदर की
ख़ाक छान रहा हूँ
अपनी प्यास बुझाने को
समंदर दूर भाग रहा है
रेत के टीले बन रहे हैं
दिल बंजर होता जा रहा है
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किसी का ख़ून बहाना हो,
जवाब देंहटाएंतो भीड़ जमा हो जाती है,
किसी की जान बचानी हो,
तो मैं अकेला रह जाता हूँ.
वाह क्या खूब कहा है।
धन्यवाद अनिता जी इस खूबसूरत चर्चा के लिए।
बहुत सुंदर चर्चा। मेरी रचना शामिल करने के लिए विशेष आभार।
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा.आभार
जवाब देंहटाएंसुप्रभात🙏🙏
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा प्रस्तुति!
आग सब बुझ गयी बस राख बाक़ी है
जवाब देंहटाएंतुम कैसे कहते हो रगो में इंक़लाब बाकी है
कोई कत्ल कोई जेल गया कोई डर के भाग गया
कौन अब शहर में इनके ख़िलाफ़ बाकी है
वेहतरीन रचना। बहुत अच्छी लगी।
बहुत सुंदर, सराहनीय अंक, मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार एवम अभिनंदन प्रिय अनीता जी, आपको और सभी रचनाकारों को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं एवम बधाई 💐💐
जवाब देंहटाएंबेहद सुंदर प्रस्तुति
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