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शनिवार, फ़रवरी 13, 2021

'वक्त के निशाँ' (चर्चा अंक- 3976)

 शीर्षक पंक्ति: आदरणीया अँजना जी की रचना से। 

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सादर अभिवादन। 

शनिवासरीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।

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आज भूमिका में वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीया अँजना जी की रचना का काव्यांश--
जंगो से तबाह शहरों को देखो, 
बिखरी हुई इमारतों को देखो 
सूनी बदरंग सड़कों को देखो,  
इंसाफ़ को चिल्लाती लाशों को देखो,  
माँ की गोद के ख़ाली ख़ज़ानों को देखो, 
बाप के हारे हुए इरादों को देखो 
लूटे हुए बचपन की आँखों को देखो, 
हारे हुए सैनिक के ज़ख़्मों को देखो
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आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ- 
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अपनाओ निज सभ्यताछोड़ विदेशी ढंग।
आलिंगन के साथ होजीवनभर का संग।।
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पश्चिम के परिवेश कीले करके हम आड़।

प्रणय दिवस के नाम परकरते हैं खिलवाड़।।

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रंगों से भरे, आज़ाद नज़ारों को देखो,
गहरी साँस ले कर अपने ख्वाबों को देखो,
देखो, अमन और दंगों के फर्कों को देखो,
नफरत और मोहब्बत के मुख़्तलिफ़ ठिकानों को देखो,
टटोलो खुद को, दिल के ख्यालों को देखो,
किस तरफ जा रहे हैं, कदमों को देखो,
चल रहे हो जिन पर, उन रास्तों को देखो,
--

संगदिल 

तुम तो पत्थर की मूरत हो
नज़र आते , अजंता की सूरत हो ,
जहां प्रेम तो झलकता बखूबी
पर अहसास नही जिन्दा कही भी ,
हर बात बेअसर है तुम पर
जो समझ से मेरे है ऊपर
--
किसी की
आँखों में उंगलियाँ डालने का
कोई इरादा नहीं है
कानों पर जमें पहाड़ों को
सरकाने का भी कोई इरादा नहीं है
नाकों में उगे घने जंगलों की
छंटाई का भी कोई इरादा नहीं है
--
सारी रात अरण्य जागता
रहा, सो गई नदी, सो
गया सुदूर तलहटी
का गांव, कुछ
जुगनुओं
की
बस्ती यूँ ही जलती बुझती
रही, तुम आते जाते
रहे, सांसों को, न
मिल सका, पल
भर का भी
ठहराव,
--
बहुत सारी चिड़ियाँ 
तार पर बैठी हैं क़तार में,
जैसे सुस्ता रही हों 
एक लम्बी उड़ान के बाद
या तैयारी में हों 
एक लम्बी उड़ान की
--

मन के आंगन में अंधेरों की जमी है काई 

धूप आ कर न फिसल पाए, यही कोशिश हो 


बीज की देह में पलती है हंसी जंगल की 

फूल कोई न मसल पाए, यही कोशिश हो 

--

काश, पूछता कोई मुझसे | 

डॉ (सुश्री) शरद सिंह | 

ग़ज़ल संग्रह | 

पतझड़ में भीग रही लड़की 

काश, पूछता कोई मुझसे, सुख-दुख में हूं, कैसी हूं?

जैसे पहले खुश रहती थी, क्या मैं अब भी  वैसी हूं?


भीड़ भरी दुनिया में  मेरा  एकाकीपन  मुझे सम्हाले

कोलाहल की सरिता बहती,  जिसमें मैं ख़ामोशी हूं।

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टूटने और जुड़ने में 

टूटने 
और 
जुड़ने में
समय
बहुत प्रमुख 
हो जाया करता है।
--
कमीज़ पर लगा दाग हम जितना छुपाते हैं
वो उतना ही गाढ़ा होता जाता है
किशोरावस्था में आई मोच को
हम जवानी में नज़रअंदाज जरूर करते हैं
पर उसका दर्द बुढ़ापे में जीना दूभर कर देता है
--
मोह का जंजाल ऐसा
जाल पंछी फड़फड़ाए
काल का आघात कैसा
प्राण जिसमें भड़भडाए
सूखता हिय का सरोवर
प्रेम किससे माँगना है।।
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रंग भी तराशे गए होंगे कुछ कोरी आंखों से 

झरोखे सच कहते हैं... मन में दबा हुआ सच उन्हें महल का दरबान बना देता है... । मन से जिस्म तक घूरती आंखें अक्सर झरोखे की तहजीब पर उंगली उठाती हैं... लेकिन झरोखा विचलित नहीं होता... वो शर्म ओढ़े खड़ा रहता है...। 

--
पुस्तक समीक्षा के तहत कल 
संजय कौशिक "विज्ञात" जी की एक समीक्षा पढ़ने को मिली ,और संयोग से वो पुस्तक मैंने पढ़ी है।
पुस्तक "मन की वीणा कुण्ड़लियाँ" जो ब्लाॅग "मन की वीणा" की कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा' जी द्वारा लिखा गया संग्रह है।
आ0 विज्ञात जी ने पुस्तक पर बहुत सुंदर और विस्तृत समीक्षा दी है । विज्ञात जी एक उत्कृष्ट साहित्यकार,रचनाकार ,समालोचक और समीक्षक हैं।
उनकी ये समीक्षा सभी पाठक वर्ग को जरूर पसंद आयेगी।।

कवयित्री कुसुम कोठारी प्रज्ञा द्वारा रचित मन की वीणा कुण्डलियाँ एकल संकलन जिसमें कवयित्री द्वारा100 रचनाएं ली गई हैं लेखन कौशल, शब्द चयन, छंद शिल्प, भाव पक्ष सहित समीक्षक के दृष्टिकोण से देखें तो यह एक अनुपम संग्रह निर्मित हुआ है। अतुकांत कविता से छंद की और पग बढ़ाना तथा इतने कम समय में छंद विधा को आत्मीयता तथा गहनता से अपना लेना  किसी चमत्कार से कम नहीं है प्रज्ञा ने अपने नाम की सार्थकता को सिद्ध कर दिखाया है।  साधारण पाठक के दृष्टिकोण से देखें तो पाठक रचनाओं को पढ़ते समय रचना प्रति रचना एक लेखन कौशल के मोहिनी मंत्र से सम्मोहित हुआ 
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आज का सफ़र यहीं तक 
फिर फिलेंगे 
आगामी अंक में 

14 टिप्‍पणियां:

  1. अनीता सैनी जी,
    चर्चा मंच में मेरी ग़ज़ल को शामिल करने के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं आभार 🌹🙏🌹
    - डॉ शरद सिंह

    जवाब देंहटाएं
  2. चर्चा मंच को सुंदर लिंक्स से सुसज्जित करने के लिए आपको साधुवाद अनीता जी ❗🙏❗

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रणय सप्ताह में चर्चा मंच की बहुत सुन्दर और आकर्षक चर्चा प्रस्तुति।
    आपका आभार अनीता सैनी दीप्ति जी।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर चर्चा। सभी लिंक्स शानदार।

    जवाब देंहटाएं
  5. प्रिय अनीता सैनी 'दीप्ति' जी,
    ओहो...बहुत दिलचस्प !
    वीकेंड में आज शनिवार का चर्चा अंक ढेरों बेजोड़ लिंक्स ले कर आया है... यह आपकी ही मेहनत का फल है। बधाई और असीम शुभकामनाएं 🙏
    अपनी पोस्ट की लिंक को भी यहां देखना यकीनन अत्यंत सुखद अनुभव है।
    सस्नेह,
    डॉ.वर्षों सिंह

    जवाब देंहटाएं
  6. कल-कल नाद सी प्रस्तुति के लिए हार्दिक आभार एवं शुभकामनाएँ ।

    जवाब देंहटाएं
  7. बाप के हारे हुए इरादों को देखो,
    लूटे हुए बचपन की आँखों को देखो...वाह अनीता जी, इतनी खूबसूरत शुरुआत आज के चर्चामंच की...वाह..सभी ब्लॉगपोस्ट एक से बढ़कर एक हैं..

    जवाब देंहटाएं
  8. सुन्दर और आकर्षक चर्चा प्रस्तुति।
    आपका आभार अनीता जी...

    जवाब देंहटाएं
  9. "इंसाफ़ को चिल्लाती लाशों को देखो,
    माँ की गोद के ख़ाली ख़ज़ानों को देखो, "

    मार्मिक,सोचने पर मजबूर करती पंक्तियों के साथ बेहतरीन लिंकों का चयन,शानदार चर्चा अंक प्रिय अनीता जी,
    सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं सादरनमन

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  10. खूबसूरत एवं रोचक रचनाओं से सज्जित संकलन..आपका आभार एवं अभिनंदन..सादर सप्रेम जिज्ञासा सिंह .

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  11. बेहतरीन संकलन, खूबसूरती के साथ जमा किये गए है सभी लिंक, आपका हार्दिक आभार , और धन्यबाद भी अनिता जी नमन आपकी कोशिश को

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  12. Meri rachna ko bhi itne achche sankalan mein shaamil karne ke liye bahut shukriya, Anita ji.

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