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सोमवार, फ़रवरी 22, 2021

"शीतल झरना झरे प्रीत का" (चर्चा अंक- 3985)

 मित्रों!
मेरा चर्चा का दिन बुधवार और रविवार होता है।
किन्तु कल अपरिहार्य कारणों से 
अपनी प्रस्तुति नहीं दे सका था।
अनीता सैनी 'दीप्ति' जी का आभारी हूँ,
कल रविवार की चर्चा लगाने के लिए।
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साथी  

शीतल झरना झरे प्रीत का
बहता अनुराग हूँ साथी
सींचू सुमन समर्पण से 
कभी न बग़िया सूखे साथी।
अनीता सैनी, गूँगी गुड़िया
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वातावरण कितना विषैला हो गया है।
मधुर केला भी कसैला हो गया है।।
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लाज कैसे अब बचायेगी की अहिंसा,
पल रही चारों तरफ है आज हिंसा
सत्य कहने में झमेला हो गया है।
मधुर केला भी कसैला हो गया है।।
उच्चारण  --

पुस्तक संवाद |  ग़ैर ऑनलाइन साहित्यिक आयोजन |  डॉ. वर्षा सिंह 
पुस्तक की समीक्षा करते हुए एनडीटीवी डॉट  कॉम पोर्टल के एडीटर और सागर निवासी वरिष्ठ पत्रकार सूर्यकांत पाठक ने कहा कि खिलाड़ियों व विद्यार्थियों के लिए यह बहुत उपयोगी पुस्तक है। महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. जीएस रोहित ने कहा कि देश में खेल प्रतिभाओं की कमी नहीं है बस उन्हें तलाशने और तराशने की जरूरत है। खेल प्रतिभाएं जरूर मिलेंगी।
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बदलाव की बेहद अच्छी शुरुआत हैं  सुप्रीम कोर्ट के ये दो न‍िर्णय… 

कानूनी पचड़ेबाजी में पड़े व्यक्त‍ि के ल‍िए न्याय की अंत‍िम आस सुप्रीम कोर्ट होता है, सो उसके ये न‍िर्णय न‍िश्च‍ित ही पूरे देश को बड़ा लाभ पहुंचाने वाले हैं। 

Alaknanda Singh, अब छोड़ो भी 
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मन का व्याकरण ... 

शुक्र है कि 

होता नहीं

कोई व्याकरण

और ना ही 

होती है 

कोई वर्तनी ,

भाषा में

नयनों वाली

दो प्रेमियों की  

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मन पलाश 
बदला तो नहीं
कुछ भी ऐसा 
फिर - 
क्यों हो रहा 
भला ये बसन्त ? 
बस मैंने
भरे घट से 
उलीच दिए थे
दो अंजुर भर 
कसैले शब्द ,
और मन 
पलाश  हो गया । 
संगीता स्वरुप ( गीत ), बिखरे मोती  
--
खोज में हूँ एकांत की 
खोज में हूँ एकांत की 

 पर यह सुख मेरे नसीब में कहाँ 

जंगल की  राह जब भी  पकड़ी

प्रकृति  ने खोले  दरवाजे सभी चराचरों  के लिए |

इतना कोलाहल वहां दिखा मन घबराया

 वहां से जा बैठा कलकल करते झरने पर

कुछ समय आनंद आया

 झरने के कलकल की आवाज सुन |  

--
एक प्रेमगीत- बाँसुरी मैं छोड़ दूँगा गीत अधरों पर सजाकर 

आलमारी में

कहीं फिर

भागवत रख दो सजाकर ।

पास में 

बैठो हमारे 

नेह का कम्बल बिछाकर । 

जयकृष्ण राय तुषार, छान्दसिक अनुगायन  
--
दर्द का अहसास 
 दर्द का अहसास : संवेदनाओं का संकलन
'औरतों से बातचीत 'रही होगी कभी ग़ज़ल की परिभाषा।शायद उस वक़्त जब ग़ज़ल के पैरों में घुँघरू बँधे थे,जब उस पर ढोलक और मजीरों का क़ब्ज़ा था,जब ग़ज़ल नगरवधू की अपनी ज़िम्मेदारियों का निर्वाह कर रही थी,जब ग़ज़ल के ख़ूबसूरत जिस्म पर बादशाहों-नवाबों का क़ब्ज़ा था।लेकिन,आज स्थितियाँ बिल्कुल उलट गई हैं।आज की ग़ज़ल पहले वाली नगरवधू नहीं बल्कि कुलवधू है,जो साज-श्रृंगार भी करती है और अपने परिवार और समाज का ख़याल भी रखती है।आज की ग़ज़ल कहीं हाथों में खड़तालें लेकर मंदिरों में भजन -कीर्तन कर रही है तो कहीं झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का रूप धारणकर समाज के बदनीयत ठेकेदारों पर अपनी तलवार से प्रहार भी कर रही है।यानी समाज को रास्ता दिखाने वाली आज की ग़ज़ल 'अबला'नहीं'सबला'है और हर दृष्टि से सक्षम है। 
Onkar Singh 'Vivek', मेरा सृजन  
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शायद फिर किसी आंदोलन की  जरूरत नहीं पड़ेगी 

सोचता हूँ कि अगर यही जागरूकता आमजन में भी आ गई तो वो दिन दूर नहीं, जब सिर्फ चुनाव के वक्त दिखने वाले निष्क्रिय नेताओं को जनता अनफ्रेंड करने में कतई न हिचकिचाएगी और मनमाफिक नेता ही चुनाव जीत कर जाएगा। सक्रियता ही नेता बने रहने का पैमाना होगी।

इन्तजार है इस जागरूकता आंदोलन का- फिर शायद किसी अन्य आंदोलन की जरूरत ही न पड़े।

-समीर लाल ‘समीर’

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अंतःसलिला 
उन
स्रोतहीन पलों में जीवन चाहता है, -
अचानक, किसी सोते की तरह
फूट पड़ना, न कोई पूर्व
अनुमान, न कोई
आवाज़ 
शांतनु सान्याल, अग्निशिखा  
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कह दो कान्हा 

पत्थर की मूरत से पीड़ा कौन कहे
न के दावानल की ज्वाला कौन सहे 
सारे जग की पीर तुम्हें यदि छूती है
तो कान्हा क्यों मेरे दुःख पर मौन रहे !
Sadhana Vaid, Sudhinama 
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किसानों की बेहतरी के लिए  प्रधानमंत्री मोदी का दुस्साहस 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुस्साहस के लिए जाने जाते हैंलेकिन किसान आंदोलन के बीच में किसानों के मुद्दे पर इतना बड़ा दुस्साहस करने की कल्पना शायद ही किसी ने की होगी। सोमवार को राज्यसभा में बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट तौर पर कह दिया कि कृषि क़र्ज़ माफ़ी किसानों के भले का नहींसिर्फ़ चुनावी कार्यक्रम है। माना जाता है कि 2009 में यूपीए के दोबारा सत्ता में आने की सबसे बड़ी वजह 2008 के बजट में की गई कृषि क़र्ज़ माफ़ी ही रही औरसरकारी बैंकों की बैलेंसशीट बिगाड़ने में 2008 के बजट में वित्त मंत्री पी चिदंबरम की कर्जमाफी का एलान भी महत्वपूर्ण रहा और कमाल की बात इससे छोटे और सीमांत किसानों को कोई लाभ ही नहीं हुआ। 
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देश विरोधी तत्वों से सावधान रहे 
अरे लगता है ये उलुल - जुलुल बयान देने वाले सुधरेंगे नहीं। बिना सोचे समझे जो मन में आता है वहीं बक देते है। फिर वो देश के पूर्व प्रधामंत्री राजीव गांधी की हत्या को लेकर ही क्यों न हो। इनका पुत्र कहता है "मैं अपने पिता के हत्यारो को माफ करता हूं।" सत्ता पाने के लिए ये लोग न जाने कितना गिरेंगे। 
शिवम् कुमार पाण्डेय, राष्ट्रचिंतक 
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आज का उद्धरण 
विकास नैनवाल 'अंजान', एक बुक जर्नल  
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आज के लिए बस इतना ही..!
बुधवार को फिर मिलूँगा।
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13 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति। आपका बहुत आभार मेरे ब्लॉग को इस प्रतिष्ठित मंच पर स्थान देने के लिए।🌻

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  2. श्रमसाध्य बेहतरीन चर्चा अंक आदरणीय सर,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं सादर नमस्कार

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  3. आदरणीय शास्त्री जी,
    आपकी पारखी दृष्टि ब्लॉग भंडार में से एक से एक नायाब पोस्ट निकाल कर चर्चा के माध्यम से सामने रख देती है। साधुवाद 🙏
    मेरी पोस्ट को भी आपने शामिल किया, यह मेरे लिए अति प्रसन्नता का विषय है। मैं उपकृत हूं आदरणीय, आपके इस औदार्य हेतु। हार्दिक आभार 🙏
    सादर,
    डॉ. वर्षा सिंह

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  4. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति।
    मेरे सृजन को स्थान देने हेतु बहुत बहुत शुक्रिया सर।
    सादर

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  5. नायाब रचना संकलन, बहुत सुंदर चर्चा

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  6. सभी रचनाएँ अपने आप में अद्वितीय हैं मुग्ध करता हुआ चर्चामंच,मुझे शामिल करने हेतु असंख्य आभार आदरणीय - - नमन सह।

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  7. बहुत ही सुन्दर संकलन अनुपम सूत्रों आज का चर्चामंच ! दो दिन से इंटरनेट बाधित होने के कारण यथासमय धन्यवाद ज्ञापन नहीं कर पाई इसका खेद है एवं क्षमाप्रार्थी हूँ ! आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !

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