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शुक्रवार, फ़रवरी 26, 2021

"कली कुसुम की बांध कलंगी रंग कसुमल भर लाई है" (चर्चा अंक- 3989)

सादर अभिवादन ! 

शुक्रवार की प्रस्तुति में आप सभी विज्ञजनों का पटल पर हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन !

आज की चर्चा प्रस्तुति का शीर्षक आदरणीया अनीता सैनी जी के सृजन "ऋतु वसन्त" से लिया गया है । 

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आइए अब बढ़ते हैं अद्यतन सूत्रों की ओर -

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आँसू यही बताते हैं,-

डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’

दुख आने पर नयन बावरे,

खारा जल बरसाते हैं।

हमें न सागर से कम समझो,

आँसू यही बताते हैं।।


हार नहीं जो कभी मानता,

पसरे झंझावातों से,

लेकिन हुआ पराजित मनवा,

अपनों की कटु बातों से,

***

ऋतु वसंत

शाख़-शाख़ बजती शहनाई 

सौरभ  गंध उतर आई  है

मंद मलय मगन लहराए

पात झांझरी झनकाई है ।।


कली कुसुम की बांध कलंगी

रंग कसुमल भर लाई है 

बन उपवन सजी बल्लरियाँ

ऋतु वसंत ज्यों बौराई है। ।

***

"ह्यूमन साइकोलॉजी"

साइकोलॉजी पढ़ा तो बहुत था मैंने मगर,  इन दिनों मैं ह्यूमन  साइकोलॉजी के कुछ खास थ्योरी को अच्छे से महसूस कर पा रही हूँ। आप कितने भी निस्वार्थी हो जाओं, कही ना कही एक छोटा सा स्वार्थ छुपा ही रहता है......आप कितने भी त्यागी बन जाओं मगर, कही ना कही उस त्याग की कसक दिल में बनी ही रहती है..... दूसरे की ख़ुशी में कितने भी खुश हो जाओं मगर, हल्की सी जलन आपको जलाती ही है।

***

किस तरह -डॉ. वर्षा सिंह -

संग्रह - सच तो ये है

जिसकी सूरत हृदय में समायी हुई

पूरी दुनिया से वो है अलग सर्वथा


बात मेरी समझ में न ये आ सकी 

प्यार को लोग लेते हैं क्यों अन्यथा !


बन के "वर्षा" झरीं, कुछ सिमट कर थमीं 

चंद बूंदों की स्थिति यथा की यथा

***

स्वप्नों का इतिहास

स्वप्नों का इतिहास सजीला

कहाँ कहाँ नहीं पढ़ा मैंने

इतिहास तो इतिहास है

मैंने भूगोल में  भी पढ़ा है|

प्रतिदिन जब सो कर उठती हूँ

अजब सी खुमारी रहती है

***

अब तो आ जाओ

अब तो आ जाओ 

युग युगांतर से   

तुम्हारा इंतज़ार करते करते 

तुम्हें ढूँढ़ते ढूँढते न जाने 

कितनी सीढ़ियाँ चढ़ कर 

आ पहुँची थी मैं फलक तक

***

धर्मग्रन्थों में ही किस्सा रह गया परिजात का

कैक्टस से इन दिनों इतनी मोहब्बत आपको

धर्म ग्रन्थों में ही किस्सा रह गया परिजात का


आजकल सब भीड़ में शामिल हुए जाते हैं बस

पूछते भी हैं नहीं जलसा यहाँ किस बात का


तर्क से मिल बैठ के मसलों का हल होता रहे

अब तमाशा बन्द होना चाहिए जज़्बात का

***

अपना बना के देखेंगे

है अंधेरे का तोहफ़ा, तो दिल का

दीया जला के देखेंगे, इक

चश्म ए शबनम मिल

जाए, रूह में छुपा

के देखेंगे,

हर

एक मोड़ पर खड़े हैं, कई शुब्ह

चेहरों की मजलिस, अंजाम

ए दोस्ती जो भी हो, फिर

हाथ मिला के देखेंगे,

***

हकीकतों ने पाला है

हम पले घास के मैदानों में ।

ऊँची नीची टेढ़ी मेंढ़ी पगडंडियों ,

और गर्म रेगिस्तानों में ।।

कंकड़ पत्थरों पे चलते हुए,

 कई बार पड़ा पैरों में छाला है 

सच हमें हक़ीक़तों ने पाला है..

***

नाम...

नाम के लिए मरते हैं ये.

नाम के लिए मरते हैं वो..

मगर नाम की गति यही है..

नाम का बटवारा हो जाता है !!

नाम की गहराई खोखली है..

या कि ऊँचाई असीम है..

***

वह

किस तरह करें शुक्रिया ! कैसे जताएं ?

कुछ किया ही नहीं काम यूँ कर जाता है


दिल मान लेता जिस पल आभार उसका 

वह निज भार कहीं और रख के आता है 


कौन है  सिवाय उसके या रब ! ये बता 

वही भीतर वही बाहर नजर आता है 

***

प्रेमबाण

एक बार एक गुरु और उनका शिष्य घूमते-घमते बस्ती से  बहुत दूर ऐसे स्थान पर निकल आए जहां जंगल ही जंगल थे। दोनों को प्यास लगने लगी थी। लेकिन कहीं पानी  का कोई स्रोत दिखाई नहीं दे रहा था।  गुरु ने शिष्य से कहा कि अगर ज्यादा आगे जाएंगे तो हिंसक जानवरों से सामना हो सकता है। इसलिए अब लौट चलते हैं।

***

रश्मियों के रथ का सवार

'रश्मिरथी' की आलोचना तो भारत के सर्वश्रेष्ठ तथा सर्वमान्य आलोचक नामवर सिंह भी नहीं कर पाए, ऐसे में मैं दिनकर जी की इस महान रचना की समीक्षा भला क्या करूं ? मैं तो इस रचना पर विमर्श के बहाने कर्ण के जीवन एवं धर्म की उसकी व्याख्या पर ही कुछ कहना चाहूंगा । मैंने 'रश्मिरथी' के आद्योपांत पारायण में उसके एक-एक छंद का आनंद उठाया एवं पाया कि दिनकर जी ने कर्ण के उस उदात्त चरित्र को प्रकट किया है.।

***

आपका दिन मंगलमय हो..

फिर मिलेंगे 🙏

"मीना भारद्वाज"

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14 टिप्‍पणियां:

  1. प्रिय मीना भारद्वाज जी,
    अनीता सैनी जी के सृजन "ऋतु वसन्त" से लिया गया शीर्षक वसन्त ऋतु के सौंदर्य का उपाख्यान बोध कराता है... साधुवाद 🙏
    मेरी पोस्ट को शामिल कर आपने मुझे अनुगृहीत किया, इस हेतु आप प्रति हृदय से आभार 🙏
    शुभकामनाओं सहित,
    सस्नेह,
    डॉ. वर्षा सिंह

    जवाब देंहटाएं
  2. अनुगृहीत हूं मीना जी जो आपने मेरे लेख को स्थान दिया । सभी संकलित रचनाएं पठनीय एवं सराहनीय हैं ।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सहित धन्यवाद मीना जी |

    जवाब देंहटाएं
  4. हार्दिक आभार आपका अदरणीया मीना जी |सभी लिंक्स खूबसूरत

    जवाब देंहटाएं
  5. एक से बढ़कर एक रचनाओं का चयन, बहुत बहुत आभार मीना जी 'मन पाए विश्राम जहाँ' को आज की चर्चा में स्थान देने के लिए ।

    जवाब देंहटाएं
  6. आदरणीय मीना जी, नमस्कार!
    आपकी चयनित सभी रचनाएं रोचक एवं पठनीय हैं. सुन्दर संकलन की प्रस्तुति भी शानदार है..मेरी रचना को चर्चा में शामिल करने के लिए हृदय से आभार..

    जवाब देंहटाएं
  7. सुन्दर और सार्थक लिंक संयोजन के आदरणीय मीना भारद्वाज जी बधाई की पात्र हैं। इस चर्चा में मुझे भी शामिल करने के लिये आपका बहुत-बहुत आभार।

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत ही सुंदर और पाठनीये लिंकों से सजा लाज़बाब प्रस्तुति मीना जी,मेरी रचना को भी स्थान देने के लिए सहृदय धन्यवाद आपका

    जवाब देंहटाएं
  9. सुन्दर सार्थक सूत्रों को समेटे आज का यह संकलन निश्चित रूप से संग्रहणीय है ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार मीना जी ! सप्रेम वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत खूबसूरत चर्चा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  11. वाह!सराहनीय प्रस्तुति।
    प्रिय मीना दीदी सादर आभार आपका मेरी रचना को मान देने के लिए।अत्यंत हर्ष हुआ शीर्ष पर पंक्तियाँ देखर। बहुत सुंदर प्रस्तुति तैयार की है आपने आज। कुछ देर से आई सो माफ़ी चाहती हूँ।
    सभी रचनाएँ एक से बढ़कर एक.. समय मिलते ही पढूंगी।
    सभी को बधाई।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  12. उत्कृष्ट लिंकों के साथ सुन्दर चर्चा।
    --
    आपका आभार आदरणीया मीना भारद्वाज जी।

    जवाब देंहटाएं

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