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रविवार, फ़रवरी 28, 2021

"महक रहा खिलता उपवन" (चर्चा अंक-3991)

 मित्रोंं!
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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गीत "गाता है ऋतुराज तराने" 

वासन्ती मौसम आया है,
प्रीत और मनुहार का।
गाता है ऋतुराज तराने,
बहती हुई बयार का।।
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पंख हिलाती तितली आयी,
भँवरे गुंजन करते हैं,
खेतों में कंचन पसरा है,
हिरन कुलाँचे भरते हैं,
टेसू हुआ लाल अंगारा,
बरस रहा रँग प्यार का।
गाता है ऋतुराज तराने,
बहती हुई बयार का।।

उच्चारण 

 --

हूक

पीर हृदय को मथती रहती
 तपता रहता है ज्यों फाग
 सूनी अँखियाँ राह देखतीं 
 जाग रहा मन का अनुराग
 विरह हूक-सी ऐसी उठती
 सूर्य ताप से जलधर कारे।। 

अनीता सैनी, गूँगी गुड़िया  
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चंद रुमानी एहसास 

तेरे इश्क पर हम ऐतबार करते हैं

कहें ना कहें तुमसे प्यार करते हैं

मौसम कोई हो, चलेगें साथ तेरे

मूंद आंखें अभी इकरार करते हैं 

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"बहर-हाल..." 

  उसी "कारवाँ" का एक छोटा-सा विडियो-

   जयदीप शेखर, कभी-कभार   

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हाईकू 

१-मेरे दुलारे
मन मोहन प्यारे
माँ मन हारे
२-तुझे देखती
तन मन भूलती
मेरी अखियाँ
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एक ग़ज़ल  पहाड़ों में कोई रस्ता कहाँ आसान दिखता है 

पहाड़ों में कोई रस्ता कहाँ आसान दिखता है 

वहीं पर बाढ़ आती है जहाँ मैदान दिखता है 

तरक्की की कुल्हाड़ी ने हजारों  पेड़ काटे हैं 

जरूरत को कहाँ कोई नफ़ा -नुकसान दिखता है  

जयकृष्ण राय तुषार, छान्दसिक अनुगायन 
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उठो,जागो और तब तक नहीं रुको  जब तक लक्ष्य प्राप्त ना हो जाए 

स्वामी विवेकानंद 39 वर्ष के अपने जीवन काल में ही आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण काम कर गए । उनकी इस सफलता की सबसे बड़ी वजह उनका वह मंत्र था जिसे वह हर एक को देते थे- उठो,जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त ना हो जाए । उनका कहना था कि जिसे तुम पाना चाहते हो उसे अपने प्राण ही बना लो, हर क्षण उसी के लिए काम करो। हम असफल अगर होते हैं, तो इसलिए क्योंकि हमारा ध्यान लक्ष्य से भटक जाता है हम दूसरी चीजों और और दूसरे लोगों पर ध्यान देने लगते हैं। ध्यान न भटके, तो कोई शक्ति हमें लक्ष्य पाने से नहीं रोक सकती।

🚩 वंदेमातरम  

Sawai Singh Rajpurohit, AAJ KA AGRA  
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कुरकुरी तीसीऔड़ियाँ / रुमानियत की नमी ... 

जानाँ ! ...

तीसी मेरी चाहत की 

और दाल तुम्हारी हामी की

मिलजुल कर संग-संग , 

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अंदर का अमावस 
ज़रा भी
न बदला, 
चेहरे का
उजाला बदल के
देख लिया 
शांतनु सान्याल, अग्निशिखा  
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समस्या 
बुद्धिमान लोग संदेह से भरे हैं जबकि
मूर्ख लोग आत्मविश्वास से।
: वुकोव्स्की :
अब आपकी समझ आपके हाथ  जो समझो 
सधु चन्द्र, नया सवेरा  
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आज का उद्धरण 
विकास नैनवाल 'अंजान', एक बुक जर्नल  
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"अभिनंदन ऋतुराज" संगीत के बहाने 
हाल ही में मुझे आकाशवाणी रामपुर(उ0प्र0) की ओर से आयोजित  "अभिनंदन ऋतुराज वसंत" संगीत संध्या में आमन्त्रण पर जाने का अवसर मिला तो अनायास ही वहाँ संगीत का आनंद लेने के पश्चात व्यक्ति के जीवन में संगीत की महत्ता को लेकर कुछ  लिखने की सूझी सो इसी बहाने मैंने आप लोगों से बातचीत का अवसर  तलाश  लिया।उस बहुत ही सफल कार्यक्रम की कुछ यादें आप लोगों के साथ साझा कर रहा हूँ। 
Onkar Singh 'Vivek', मेरा सृजन  
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आज के लिए बस इतना ही..
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14 टिप्‍पणियां:

  1. सभी रचनाएँ अपने आप में अद्वितीय हैं मुग्ध करता हुआ चर्चामंच, मुझे शामिल करने हेतु असंख्य आभार आदरणीय - - नमन सह।

    जवाब देंहटाएं
  2. उम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन लिंकों से सजा सुंदर चर्चा अंक ।

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर लिंक्स से सुसज्जित चर्चा...आभार....

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति आदरणीय सर, सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं सादर नमस्कार

    जवाब देंहटाएं
  6. उत्कृष्ट रचनाओं का संकलन।
    शुभकामनाएँ व सादर नमस्कार।

    जवाब देंहटाएं
  7. सभी रचनाएँ अपने आप में अद्वितीय हैं मुग्ध करता हुआ चर्चामंच, मुझे शामिल करने हेतु असंख्य आभार आदरणीय - - नमन सह।

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति आदरणीय सर।
    मुझे स्थान देने हेतु दिल से आभार।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  9. सुंदर रोचक रचनाओं का संकलन ..सुंदर प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति आदरणीय शास्त्री जी मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत बढ़िया चर्चा आदरणीय शास्त्री जी ,
    साधुवाद 🙏
    हार्दिक शुभकामनाओं सहित,
    सादर,
    डॉ. वर्षा सिंह

    जवाब देंहटाएं

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