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Saturday, June 05, 2021

'बादल !! तुम आते रहना'(चर्चा अंक- 4087)

 शीर्षक पंक्ति: आदरणीया सुनीता अग्रवाल 'नेह' जी। 


सादर अभिवादन। 

शनिवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है। 


आज प्रस्तुति की शीर्षक पंक्ति व काव्यांश आ.सुनीता अग्रवाल 'नेह' जी की रचना से 

सुनो न बादल

तुम आते रहना

मानवता का हास देखकर

काल का निर्मम त्रास देखकर

पाषाण होते हृदय खंड पर

संवेदना की बौछारें बरसाते रहना

सुनो न बादल

तुम आते रहना

--

बादल !! तुम आते रहना

शुष्क न हो हृदय की भाव भूमि
पर दुःख में रोना पर सुख में हरियाना
भूल न जाएँ रिश्तों को निभाना
करुण धार बरसाते रहना
सुनो न बादल
तुम आते रहना
--

आफताब को छू कर
आफताब हुआ
अंधेरा था छाया
उजाला मेहरबाँ हुआ
--
अंकुरित हो बीज नन्हा
चीरता आँचल धरित्री
और लहराके मटकता
कुश बनता है पवित्री
और कितने रंग अद्भुत
पंक में नलिनी गमकती।।
--

गूँथ डाली तेरे गुलाबों से महकते पैगाम ने l
जुल्फों में उलझे उलझे गजरे के प्याम ने ll

लावण्य यौवन करवटें बदलती रातों में l
घूँघट में ना हो नूर बहकते आफ़ताब के ll
--
बादलों के झुरमुट से झाँकते हो भानु तुम,
ऊर्जा का जग में संचार किए जाते हो
काले भूरे बादलों की चीर देते छाती यूँ 
किरणों की रंगीन प्रभा दिए जाते हो
--

एक जिस्म और बेहिसाब खरोचों की
निशानी, किसी आदिम सुरंग से
गुज़री है रात, एक सरसराहट
के साथ, टूटे हैं खिड़कियों
के कांच, किसी दूरगामी
रेल की तरह है ये
ज़िंदगानी, एक
जिस्म और
बेहिसाब
खरोचों
की
--
दीवार के उधड़े हुए प्लस्तर से
झांकती हुई ईटों की तरह
बीते हुए सुखद पल
झांकते हैं
रुलाते हैं
अहसास कराते हैं
उनकी पीड़ाओं का-
--

मैं सौ साल पहले की 

वही विधवा बहू हूँ,

जो सिर्फ़ इसलिए पिट जाती थी 

कि उसने किसी को देखकर 

थोड़ा-सा मुस्करा दिया था

या तेज़ हवा में सरक गया था 

उसका आँचल ज़रा-सा

--

कुछ शेर हैं 

दूर से शायर दिख रहे हैं 

कुछ भीगे बिल्ले बेचारे बिल्लियाँ लिख रहे हैं 

कुछ
प्रायश्चित कर रहे हैं

कुछ
सच में
सच लिख रहे हैं

कुछ
बकवास के पन्ने
कई दिन हो गये
कहीं नहीं दिख रहे हैं

--

इस्मत चुगताई - संस्मरण :04


शाहिद साहब के साथ मैं भी एम. असलम साहब के यहाँ ठहर गयी. सलाम व दुआ भी ठीक से नहीं हुई थी कि उन्होंने झाड़ना शुरू कर दिया. मेरे अश्लील लेखन पर बरसने लगे. मुझ पर भी भूत सवार हो गया. शाहिद साहब ने बहुत रोका, मगर मैं उलझ पड़ी.
“और आपने जो ‘गुनाह की रातें’ में इतनी गन्दी-गन्दी पंक्तियाँ लिखी हैं. सेक्स एक्ट का वर्णन किया है, सिर्फ़ चटखारे के लिए.”
“मेरी और बात है, मैं मर्द हूँ.”
“तो इसमें मेरा क्या कुसूर है.”
“क्या मतलब?” वह गुस्से से लाल हो गये.
“मतलब ये कि आपको खुदा ने मर्द बनाया है इसमें मेरा कोई दखल नहीं और मुझे औरत बनाया है इसमें आपका कोई दखल नहीं. मुझसे आप जो चाहते हैं, वह सब लिखने का हक आपसे नहीं माँगा, न मैं आज़ादी से लिखने का हक आपसे माँगने की ज़रूरत समझती हूँ.”
“आप एक शरीफ मुसलमान खानदान की पढ़ी-लिखी लड़की हैं.”
“और आप भी पढे-लिखे और शरीफ खानदान से हैं.”
“आप मर्दों की बराबरी करना चाहती हैं?”
“हरगिज़ नहीं. क्लास में ज्यादा नम्बर पाने की कोशिश करती थी और अक्सर लड़कों से ज्यादा नम्बर ले जाती थी.” मैं जानती थी मैं कठदलीली की अपनी खानदानी आदत पर उतारू हूँ. मगर असलम साहब का चेहरा तमतमा उठा और मुझे डर हुआ कि या तो वह मुझे थप्पड़ मार देंगे या उनकी दिमाग़ी नस फट जायेगी.
--
आज का सफ़र यहीं तक 
फिर मिलेंगे 
आगामी अंक में 

@अनीता सैनी 'दीप्ति

16 comments:

  1. हमेशा की तरह श्रमपूर्वक एकत्र की गई सभी सुंदर चर्चाओं के लिए बहुत बहुत बधाई अनीता सैनी जी 🙏

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  2. चर्चा मंच में मेरी कविता को स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद प्रिय अनीता सैनी जी 🙏
    हार्दिक आभार🙏🙏 - डॉ शरद सिंह

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  3. हमेशा की तरह बेहतरीन प्रस्तुति।

    ReplyDelete
  4. बेहतरीन चर्चा अंक,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनायें एवं सादर नमन

    ReplyDelete
  5. आप सभी को पर्यावरण दिवस की हार्दिक शुभकामनायें,

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  6. बेहतरीन प्रस्तुति। मेरी कविता को स्थान देने के लिए धन्यवाद

    ReplyDelete
  7. सारी रचनाएं बहुत ही सुंदर, भावपूर्ण एवम संदेशपरक हैं,आपका बहुत बहुत आभार प्रिय अनीता जी, इस सुंदर संकलन में मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका बहुत धन्यवाद व्यक्त करती हूं, सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।

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  8. बेहतरीन व सार्थक चर्चा प्रस्तुति। सभी लिंक्स बहुत बढ़िया हैं ।

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  9. बेहतरीन लिंक संयोजन । बहुत समय बाद ब्लॉग की दुनिया की सैर करने निकली हूँ । सुशील जोशी जी मेरे प्रिय लेखकों में शुमार हैं । इस्मत चुग़ताई जी का संघर्ष पढ़ने पर आज लेखन की आजादी के मतवालों से मिलना हुआ । सौ साल पहले की विधवा ने भी दिल को झकझोरा। मेरी रचना को स्थान देकर अनुगृहीत करने हेतु हार्दिक आभार

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  10. नमस्‍कार अनीता जी, सभी ल‍िंक एक से बढ़ कर एक लगाए हैं आपने बहुतखूब

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    Replies
    1. सादर नमस्कार आदरणीय दी।
      सादर

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  11. आभार अनीता जी। सुनीता जी के उत्साहवर्धन करते शब्दों के लिये उन्हें धन्यवाद।

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  12. इतने दिनों बाद अनिता जी को सक्रिय देख मन बाग बाग हो गया।
    शानदार संयोजन, सुंदर गुलदस्ता सजाया है आपने बहुरंगी फूलों से ,सभी फूल मनभावन।
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
    मेरी रचना को इस फूलदान में स्थान देने के लिए हृदय से आभार।
    शानदार ।
    सादर सस्नेह।

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    Replies
    1. दिल से आभार दी ।
      स्नेह आशीर्वाद बनाए रखे।
      सादर

      Delete
  13. सभी रचनाएँ अपने आप में अद्वितीय हैं मुग्ध करता हुआ चर्चामंच, मुझे शामिल करने हेतु असंख्य आभार आदरणीया - - नमन सह।

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