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मंगलवार, जून 29, 2021

"मन की बात नहीं कर पाया"(चर्चा अंक- 4110 )

  सादर अभिवादन 

आज  की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है

(शीर्षक आदरणीय शास्त्री सर जी की रचना से) 

बिना किसी भूमिका के चलते है,

 आज की कुछ खास रचनाओं की ओर....

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गीत "मन की बात नहीं कर पाया" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


अपने जीवन साथी से जो, मन की बात नहीं कर पाया।।

दीन-दुखी के मन की पीड़ा, कैसे वो हर पायेगा।।

सूखे जीवन-उपवन को जो, नहीं नीर से भर पाया।

नयी पौध को वो खेतों में वो, अब कैसे रोपायेगा।।

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एक पन्ना डायरी का




मुहब्बत  का फ़रमान, अपनेपन का एहसास
 समा लेता  दर्द-ए-गम , जताता न कोई अहसान ।।

प्यार  का  अफ़साना, दर्दभरी  कहानी
सहेज  लेता  दिल  में, उसी  की  ज़ुबानी ।।

झूठ  को  बढ़ाता  न  सच   को  छिपाता,
 दिल  बहुत साफ़, जताकर देखो हर बात।

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"अन्तर"






बचपन में स्कूल से आकर अपना बैग पटकते हुए मैनें शिकायती लहज़े में माँ से कहा - “तुम मुझ में और भाई में भेद-भाव रखती हो , उसको शाम तक भी घर से बाहर आने-जाने की छूट और मुझे नही.” माँ ने निर्लिप्त भाव से मेरी ओर देखते हुए पूछा-”आज यह सब कहाँ से भर लाई है कूड़ा-कबाड़ दिमाग में।’


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रंगबिरंगे पक्षी (बाल कविता)



छोटे छोटे होंठ रसीले छोटे छोटे टोंट 
देख देख के हुआ मगन मैं होकर लोटपोट 
कुतर कुतर ये आम गिराए मेरे ही बाग़ान में 
उनकी कुतरन से गुलशन है भरा भरा

ये इतनी गौरैया कहाँ से आईं हैं, मेरे दालान में 
चिड़ियाघर है दिखता आँगन आज मेरा 


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"आई..!"निर्मला ने सलाद काट लिया था तो वो सलाद की प्लेट लेकर आ गई। मेघना के कॉलेज लौटने पर ही निर्मला मेघना साथ में बैठकर खाना खाते थे।मनोहर तो सुबह ही ऑफिस चले जाते थे तो दोनों सास बहू इधर-उधर की बातें करके टाइमपास करते थे।

"देवकी से बात हुई आपकी ?"


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फ़िक्रमंद और मेहरबान भाभीजियाँ

मैं अपने कैंपस का मोस्ट एलिजिबिल बैचलर था.
अब इस सवाल का उठना लाज़मी है कि तीस साल से महज़ बारह दिन छोटा शख्स अपने तबक़े का मोस्ट एलिजिबिल बैचलेर कैसे हो सकता है !
इस सवाल का जवाब मेरे दूसरे कीर्तिमान से जुड़ा है.

अल्मोड़ा कैंपस में मेरे नाम दूसरा कीर्तिमान यह था कि अपनी मित्र-मंडली में मैं अकेला ही अविवाहित बचा था.
मुझ से तीन-चार साल क्या, पांच साल छोटे भी, अपने सर पर सेहरा बाँध चुके थे और उन में से कईयों ने तो मुझे ताउजी कहलवाने का सम्मान भी दिलवा दिया था.

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अन्तोन चेखोव: पेश है उनकी ल‍िखी कहानी "ग‍िरग‍िट" जो आज भी उतनी ही प्रासंग‍िक है, पढ़‍िए



 एंटोन चेखोव का जन्म सेंट एंथनी द ग्रेट (17 जनवरी पुरानी शैली) के त्योहार के दिन 29 जनवरी 1860 को दक्षिणी रूस में अज़ोव सागर पर एक बंदरगाह टैगान्रोग में हुआ था। वह छह जीवित बच्चों में से तीसरा था। उनके पिता, पावेल एगोरोविच चेखोव, एक पूर्व सर्फ और उसकी यूक्रेनी पत्नी के बेटे, गांव ओलोवात्का (वोरोनिश गवर्नर) से था और एक किराने की दुकान से भाग गया।
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सुशील सर, आपको इतनी बड़ी उपलब्धि के लिए बहुत-बहुत बधाई ,आपका सफर यूँ ही जारी रहें...

बकवास-ए-उलूक एक और मील के पत्थर के पार पचास लाख से ऊपर आकर देख गये पन्ना चिट्ठा-ए-उलूक सबका दिल से आभार




लिखते लिखते
कहाँ से कहाँ पहुँचा गया
 बकवास-ए-उलूक

पढ़ने
कौन आया कौन नहीं
पता नहीं चला
देखने वाला
आ कर देख गया
घड़ी की सूईं
कुछ आगे को जरा सा खिसका गया


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आज का सफर यही तक,अब आज्ञा दें 

आप सभी स्वस्थ रहें,सुरक्षित रहें 

कामिनी सिन्हा 









9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुंदर सराहनीय संकलन आदरणीय कामिनी दी।
    आदरणीय सुशील जोशी जी सर को हार्दिक बधाई।
    यों ही उपलब्धियाँ उनके क़दम चूमे।
    मेरी भूली बिसरी रचना को स्थान देने हेतु दिल से अनेको आभार।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर रोचक अंक के लिए आपका बहुत बहुत आभार कामिनी जी,मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका बहुत शुक्रिया.. बहुत शुभकामनाएं.. जिज्ञासा सिंह।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय जोशी जी, ऐसे नए मुक़ाम हासिल करते रहें और हमें प्रेरित करते रहें,उनको मेरी तरफ़ से हार्दिक शुभकामनाएँ एवं बधाई।

      हटाएं
  3. बेहतरीन व लाजवाब संकलन कामिनी जी । आ. सुशील सर को उनकी उपलब्धियों पर बहुत बहुत बधाई । विविधरंगी प्रस्तुति में मुझे सम्मिलित करने के लिए बहुत बहुत आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर प्रस्तुति, मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार सखी।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत खूबसूरत चर्चा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  6. चर्चा मंच पर उपस्थित होने के लिए आप सभी स्नेहीजनों को तहेदिल से शुक्रिया एवं सादर नमस्कार

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत शानदार प्रस्तुति कामिनी जी श्रमसाध्य संकलन।
    सभी रचनाएं उत्कृष्ट।
    सभी रचनाकारों को हृदय से बधाई।
    सादर सस्नेह।

    जवाब देंहटाएं

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