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सोमवार, जून 07, 2021

'शूल बिखरे हुए हैं राहों में' (चर्चा अंक 4089)

शीर्षक पंक्ति: आदरणीय डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।

( चर्चा अंक 4089) 

आइए पढ़ते हैं विभिन्न ब्लॉग्स पर प्रकाशित कुछ चुनिंदा रचनाएँ-

"अब तो मिलनें में भी लगे पहरे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

शूल बिखरे हुए हैं राहों में,

नेक-नीयत नहीं निगाहों में

पहले थीं खामियाँ सँवरने में,

अब उजड़ने में भी लगे पहरे।

*****

जिन्दगी चली ट्रेन सी

स्टेशन से आगे जाने के लिए

कुछ कर्तव्य निभाने के लिए

जहां तक संभव हो कोई कार्य अधूरा

नहीं छोड़ना चाहती जिन्दगी |

*****

बढ़ा दो दायरा | कविता |डॉ शरद सिंह

समय कहता है

बढ़ा दो  दायरा

आत्मीयता का

और समेट लो उन्हें भी

जैसे पनाह देता है

यूनाइटेड नेशंस

शरणार्थियों को

जो जीवित तो हैं

***** 

तत्क्षण पांडव तजो द्यूत।

त्याग दो एसी कायरता

और वीरों-सा शृंगार करो।

तत्क्षण पांडव तजो द्यूत

और कुरुक्षेत्र को कूच करो।

तत्क्षण पांडव तजो द्यूत

और कुरुक्षेत्र को कूच करो।

*****

छु कर देखू तुम्हे

वक़्त ने नमो निशान तो मिटा दिया

पर एक परछाई है जो

सुबह से रात तक साथ रहती है

मुझे मजबूर करती है

छु कर देखू  तुम्हे।

*****

कर दिया है तुम्हें मुक्त

इसलिये मैने आज खोल दिये हैं

तुम्हारी मुक्ति के प्रत्येक दरवाजे

अपने हृदय पर

कठोर पाषण़ खण्ड रखकर

जिसमें सुरक्षित रखा है

तुम्हारा प्रेम और सुनहरी स्मृतियों को

हमेशा हमेशा के लिए।

*****

गरीब, गरीबी और उनका धाम

एक ओर बहुधा लंबी कतारें लगवाकर

नए - पुराने वस्त्रदाल, चीनीगुड़,

केले, छाते का दान करने आई

बड़ी-सी कारों से उतरते सभ्य,

संभ्रांत, धनाढ्य दानवीर स्त्री-पुरुष ,

कहीं पुण्यार्जन की ललक,

कहीं अधिकाधिक पाने की लालसा,

*****

हादसा

"कितनों ने की,पर चोर चोर मौसेरे भाई गाँव वालों को ही डाँट कर भगा दिया जाता।हम लोगों ने दीना के परिवार को गाँव से निकाल दिया और आसपास के गाँवो में लोगों को अपने बच्चों को उसके साथ भेजने से मना कर दिया..!"

"फिर..एक दिन मधुपुर का बिरजू घायल अवस्था में कैसे भी गाँव तक पहुँचा और सच्चाई बयां कर दी।सच सुनकर गाँव वालों ने शोर मचा दिया। पुलिस को भी कार्रवाई करनी पड़ी।सबको गिरफ्तार करके जेल भेज दिया।

*****

'महरी' (लघु कथा)

सीधी-सादी जमना ने इस बात को ज्यों का त्यों सही मान कर आगे बढ़ कर नंदिनी के पाँव छूए। नंदिनी ने उसे ऊपर उठाया और स्टोर के भीतर से एक ताला लेकर आई। गठरी, ताला और पाँच सौ रुपये उसे दे कर मुस्कराते हुए बोली- "यह पैसे रख ले, तेरे काम आएँगे। गठरी वापस तेरे कमरे में रख देना। केवल अपना ज़रूरी सामान ले जाना और जब तेरे पति अच्छे हो जाएँ, वापस चली आना। मैं कोई दूसरी महरी नहीं रख रही हूँ, समझी।... और हाँ, कमरे पर यह नया ताला लगा कर जाना।"

 *****

ज़ल

मुझे अच्छी-बुरी जो भी, कहो यह है तेरी मर्जी,

चाहे अच्छी भले ना हूं,मगर बदतर नहीं हूं मैं।

 मैं बहती धार नदिया की,हो मदमस्त बहती हूं,

गिरूं पर्वत के ऊपर से,सुनो निर्झर नहीं हूं मैं।

*****

 आज बस यहीं तक 

फिर मिलेंगे अगले सोमवार। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

 


10 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात
    आज का अंक उम्दा है |मेरी रचना को स्थान देने के लिए धन्यवाद रवीन्द्र जी |

    जवाब देंहटाएं
  2. मंच पर उपस्थित सभी आदरणीयजनों को मेरा सादर प्रणाम 🙏
    लाजवाब लिन्कों से सुसज्जित सुंदर प्रस्तुति।
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।

    मंच पर मेरी रचना को शेयर करते हुए मेरा उत्साह बढ़ाने हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सर। यह रचना वर्तमान परिस्थितियों पर मेरी प्रतिक्रिया है। शोषित पांडव अर्थात् साधारण जनता के प्रति मेरा संदेश। पुनः आभार। सादर प्रणाम 🙏

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर प्रस्तुति। मेरी रचना को चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय।

    जवाब देंहटाएं
  4. रविंद्र सिंह यादव जी सुंदर,विचारोपयोगी,रोचक चर्चा संयोजन के लिए आपको हार्दिक साधुवाद 🙏

    जवाब देंहटाएं
  5. चर्चामंच में मेरी कविता को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार रवीन्द्र सिंह यादव जी 🙏

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही सुंदर संकलन।
    सभी को हार्दिक बधाई।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  7. मेरी कहानी 'महरी' को चर्चा मंच के प्रतिष्ठित पटल पर स्थान देने के लिए भाई संदीप जी का बहुत आभार! विलम्ब से पटल पर आ सका, खेद है। मंच-पटल पर आई सुन्दर रचनाओं के लेखकों को हार्दिक बधाई!

    जवाब देंहटाएं

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