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बुधवार, जून 02, 2021

"ऐसे ही घट-घट में नटवर"(चर्चा अंक 4084)

 सादर अभिवादन 

आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है

(शीर्षक और भूमिका आदरणीया अनीता जी की रचना से )

"दीप की लौ में जो बसा है 

वह प्रकाश चहुँ ओर बिखरता, 

प्रेम, शांति, आनंद की ज्योति 

उस से पाकर जगत सँवरता !"


नटवर नागर के चरणों में सत-सत नमन करते हुए..

आईये, आज की रचनाओं का आनंद उठाते है....



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ऐसे ही घट-घट में नटवर



अग्नि काष्ठ में, नीर अनिल में 

प्रस्तर में मूरत इक सुंदर, 

सुरभि पुष्प में रंग गगन में 

ऐसे ही घट-घट में नटवर !


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हाँ , सुन रही हूँ मैं ......



बन्द खिड़कियों के पीछे से

मोटी दीवारों को भेद

जब आती है कोई

मर्मान्तक चीख

तो ठिठक जाते है 

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वैदिक वांगमय और इतिहास बोध-२३



कहने का तात्पर्य यह है कि इस बात में कोई जान नहीं है कि ३००० साल ईसा पूर्व दक्षिण रूस के मैदानी भागों को छोड़कर आने वाले ‘आर्यों’ के साथ घोड़ों का प्रवेश यहाँ हुआ। चाहे पूरी तरह से घरेलू और पालतू पशु के रूप में हों या फिर पालतू और घरेलू बनाने की प्रक्रिया में हों – अफ़ग़ानिस्तान के उत्तरी क्षेत्र में बसी सभ्याताओं में  ये घोड़े ईसा से ६००० साल पहले से ही पाए जाते रहे हैं।


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उदास पाम



पहली नजर में भा गया

फिर घर मेरे ये आ गया

रौनक बढ़ा घर की मेरी 

सबका ही मन चुरा गया

माना ये भी सबने कि इससे शुद्ध साँस है

लगता नहीं है मन कहीं इसी के पास है

जब से मेरा ये पाम इस कदर उदास है


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मैं कर्जदार हूँ




बारह हजार किलोमीटर पार  तक 

उस मिट्टी के गंध की बेचैनी थी 

रात में,  दिन में, जागते हुए, नींद में सोये हुए 

आसान नहीं था , सबकी  अनुसनी करना 

आसान नहीं था, डॉलर की गठरी पर 

चुपचाप, सर छुपा कर सो जाना 


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बुलबुल और बिल्ली



ऐसे तो घर के आस-पास चील, कौआ, मैना, गौरैया, कबूतर, फाख्ता से लेकर शकरखोरा (फूलचुही), दहियर, बुलबुल, नाचन (चकदिल), सतभैयों और जलमुर्गियों तक का बसेरा है, मगर बुलबुल और नाचन के जोड़े ने पिछले कुछ समय से हमारा ध्यान आकर्षित कर रखा है। इन दोनों का बसेरा घर के नैऋत्य कोण वाले झुरमुट (दो-तीन बड़े पेड़ भी हैं) में है।


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. सिगरेट


क्यों कहते हो कि उसे छोड़ दूँ   
अदना-सी, वह क्या बिगाड़ती है तुम्हारा?   
मैंने समय इसके साथ ही गुज़ारा   
इसने ख़ुद को जलाए दिया मुझको सहारा   
इसके साथ मेरा वक़्त बेफ़िक्र रहता है   
तन्हाइयों में एक वही तो है जो साथ रहती है  


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बलदेव वंशी: मुलतान में जन्‍मे कव‍ि की आज जयंती, पढ़‍िए उनकी कुछ कव‍िताऐं




भारतीय भाषाओं को उनका हक दिलाने के आंदोलन में भी अग्रणी भूमिका निभाने वाले बलदेव वंशी इतने अच्छे कवि और लेखक थे कि उनके शब्दों की गूंज से हिंदी साहित्य जगत आज भी जाज्वल्यमान है. उनका जन्म 1 जून 1938 को मुलतान में हुआ था. उनकी कविताओं में स्वातंत्र्योत्तर भारत के मनुष्य की तकलीफ, संघर्ष और संवेदना को हृदयग्राही अभिव्यक्ति मिली है. 



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अरेंज मैरिज की एक खास बात होती है "यहाँ हम एक दूसरे से बिलकुल अनभिज्ञ होते।एक दूसरे से प्यार होने की बात तो दूर एक दूसरे को ठीक से देखे तक नहीं होते हैं और ऐसे में एक दिन हमें एक डोर में बांध दिया जाता है और आज्ञा दी जाती है कि -तुम्हे साथ रहना भी है और निभाना भी। हमारे समय में ऐसी स्थिति में कोई विकल्प नहीं होता था तो पहले ही दिन से मानसिकता ही यही होती थी " तन-मन समर्पण की " तो आधी समस्या यही सुलझ जाती थी। 


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आज का सफर यही तक,अब आज्ञा दे...

कामिनी सिन्हा 










6 टिप्‍पणियां:

  1. पठनीय सूत्रों का संकलन। अत्यंत आभार!!!

    जवाब देंहटाएं
  2. एक से बढ़कर एक लिंक्स से सुसज्जित चर्चा मंच, बधाई और आभार कामिनी जी !

    जवाब देंहटाएं
  3. सभी लिंक्स पर जाना हुआ । बेहतरीन संकलन । शुक्रिया।

    जवाब देंहटाएं
  4. उम्दा एवं पठनीय लिंकों से सजी लाजवाब चर्चा प्रस्तुति... मेरी रचना को स्थान देने हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार कामिनी जी!

    जवाब देंहटाएं
  5. सुंदर तथा पठनीय सूत्रों से सजा अंक । आपको बहुत बहुत शुभकामनाएं कामिनी जी ।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत खूबसूरत चर्चा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं

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