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रविवार, जून 27, 2021

'सुनो चाँदनी की धुन'(चर्चा अंक- 4108 )

आदरणीय ब्लॉगर साथियों आज की चर्चा के साथ हाज़िर हूँ आपके बीच कुछ जाने कुछ अनजाने लिंक के साथ … ब्लॉगिंग की दुनिया के समुन्दर में इतने नगीने हैं की सब को उठा पाना मेरे लिए सम्भव नहीं हो पाया तो कुछ मोती आप सब के लिए … कृपया जितना हो सके कुछ न कुछ कमेंट ज़रूर करें इन पर, नए लिंकों पर … सबका उत्साह बना रहेगा तो हिन्दी ब्लॉगिंग का भविष्य उज्ज्वल रहेगा …


-दिगम्बर नासवा

आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-

730. योग

हजारों सालों की विद्या   
क्यों लगती अब ढोंग   
आओ करें मिलकर सभी   
पुनर्जीवित ये योग।   

साँसे कम होतीं नहीं   
जो करते रहते योग   
हमको करना था यहाँ   
अपना ही सहयोग। 
--
”तुम्हें फ़ख़्र करना नहीं आता।”
कहते हुए -
स्नेहवश अपनी माँ के पैरों से लिपट जाती है।
”नहीं!  मैं अनपढ़ हूँ ना।”
कहते हुए मेनका अपनी ही साँस गटक जाती है।
--

 मेरे लिए सब से बड़ी परेशानी पीने के पानी

 की थी । हॉस्टल में मेरे जैसी चार-पाँच लड़कियों को छोड़ कर तमाम लड़कियाँ पीने के पानी को लेकर सहज थी वही हमारे लिए वह पानी बहुत खारा था । अत्यल्प बारिश के कारण रेतीले इलाकों में वर्षा के जल को संग्रहित करने की परम्परागत प्रणाली कुंड या टांके हैं  जिनमें संग्रहित जल का मुख्य उपयोग वहाँ के निवासी पेयजल के लिए करते हैं। प्रदूषण और दुर्घटना को रोकने हेतु इस प्रकार के जल स्रोत ढक्कन सहित तालों से बंद होते हैं।  इनका  निर्माण संपूर्ण मरूभूमि में लगभग हर घर में किया जाता है, क्योंकि मरूस्थल का अधिकांश भू जल लवणीयता से ग्रस्त होने के कारण पेयरूप में काम में लेना असंभव है । अतः वर्षा के जल का संग्रहण यहाँ के निवासियों के लिए दैनिक जल आपूर्ति के लिए अनिवार्य है ।

--

भारतीय मसालों का अदभुत संसार है। खुशबू, रंगत से लेकर स्वाद बढ़ाने में इन्ही छुपे रुस्तमों का हाथ होता है। मसाले न हों तो दावत ज्यौनार का आधे से अधिक रुतबा फ़ीका पड़ जाये। हमारे मसाले सिर्फ व्यंजनों की आब और ज़ायका ही नहीं बढ़ाते बल्कि हमारे स्वास्थ्य के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कहते हैं न कि , “ दवा के साथ दुआ ही काम आती है। ” ये मसाले उन्हीं दुआओं में शामिल होते हैं।

इससे पहले हम लोगों ने स्याह जीरे की बातचीत का विषय बनाया था। आज चर्चा में है “ कबाबचीनी ”

--

कविता "जीवन कलश": अभिमान 

उठाए शीष इतना, खड़े हो दूर क्यूँ?
कोई झूलती सी, शाख हो, तो झूल जाऊँ,
खुद को तुझ तक, खींच भी लाऊँ,
मगर, कैसे पास आऊँ!
खो चुके हो, वो मूल आकर्षण,
सादगी का, वो बांकपन,
जैसे बेजान हो चले रंग, इन मौसमों संग,
बदल चुके हो, इतने तुम क्यूँ?
--
झाँक घरों में चंदा पूछे
कहाँ छुपी है मानवता।
क्रोध दामिनी का फिर फूटा
देख आज की दानवता।
जीवन काँप रहा है थर-थर
छोड़ प्राण भी भागे तन।
प्रेम नगरिया……
--

काव्य संसार

मुझे जिंदगी से अपनी है, ना शिकवा ना कोई गिला 

संतुष्टि है मुझको उससे ,जो कुछ भी है मुझे मिला 
एक प्यारी सुंदर पत्नी है, प्यार लुटाने वाली जो 
मेरे जीवन में लाई है, खुशहाली, हरियाली जो 

--

मुक्तिबोध की कविताओं की मुख्य विशेषता | हिन्दीकुंज,

--

प्रतिभा की दुनिया ...: ख़्वाब जो बरस रहा है

कुछ रुकी हुई रुलाइयां हैं, कुछ भिंची हुई मुठ्ठियाँ हैं, कुछ रातों की जाग है कुछ बारिशों की भागमभाग है. कुछ ख़्वाब हैं अनदेखे से कोई खुशबू है बतियाती सी. कविताओं का पता नहीं लेकिन मन की कुछ गिरहें हैं जिन्हें कागज पर उतारकर जीना तनिक आसान करने की कोशिश भर है. ये 'ख़वाब जो बरस रहा है' ये आपको भी मोहब्बत से भिगो दे यही नन्ही सी इच्छा है.
--

क्या है गलत और क्या है सही

जानने  को अति उत्सुक होना

कहाँ हुई चूक मुझे समझाना

कहीं बाधा तो न आएगी कार्य सिद्धि में |

--

Sharad Singh: धर्म और प्रेम | कविता | डॉ शरद सिंह 

प्रशंसा करते हैं लोग
उसकी
वह मुस्कुराती
अपने भीतर की
रिक्तता छिपाती 
जी रही है
लौकिक और अलौकिक के
द्वंद्व में फंसी
कहे-सुने जाने से
भयभीत
--
एक बड़े हास्य कवि की किताब देख ,  
बक्से में बंद हमें, 
अपनी हास्य कविताओं की याद आई,
तो हमने फ़ौरन प्रकाशक महोदय को कॉल लगाईं।  
--
मेरी बहुत प्रिय, बहुमुखी प्रतिभा-सम्पन्न सखी    Sheetal Maheshwari की पेन्टिंग  ने मुझे आज इस कदर आन्दोलित कर दिया कि आज के चित्र पर कविता बह निकली ।लगता है शीतल ने आजकल कायनात को ही ओढ़- बिछा रखा है…वो ही हमजोली है , और वही गुरु। ध्यान से देखिए इन चित्रों में शीतल की रूह साँस लेती सुनाई पड़ेगी…एक रूहानी अहसास गुनगुनाता है इनमें।काली-सफेद इन डिजिटल पेंटिंग्स में आपको रात की कालिमा पर चाँदनी की ,निराशा पर आशा की , मौन पर संगीत की विजय दिखाई देगी।

आओ,बैठें 

किसी सूखी डाली पर,

जीवंत कर दें ठूँठ को,

महसूस करें 

कि इस डाली से उस डाली तक 

हमारे फुदकने में 

अब कोई बाधा नहीं है,

पत्तों की भी नहीं.

--

मन की वीणा - कुसुम कोठारी। : किरीट सवैया छंद 

ये जग भंगुर जान अरे मनु, नित्य जपो सुख नाम निरंजन।
नाम जपे भव बंधन खंडित, दूर हटे  चहुँ ओर प्रभंजन।
अंतस को रख स्वच्छ अरे नर, शुद्ध करें शुभता मन मंजन।।
उत्तम भाव भरे नित पावन, सुंदर प्रेषित हो अभिव्यंजन।।
--
आज का सफ़र यहीं तक 
-दिगम्बर नासवा

19 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात ...
    आदरणीय नसवा जी की विहंगम दृष्टि में मैं भी समा पाया, शुक्रिया। ।।।। इस सम्मान हेतु आभारी हूँ।।।।।
    बहुत ही सुंदर सी इस प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकारें। ।।। नमन।

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात
    उम्दा अंक आज का |मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सहित धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं
  3. अतिथि चर्चाकार के रूप में आ.नासवा जी
    द्वारा प्रस्तुत अति सुन्दर सूत्रों से सजा पुष्पगुच्छ सा
    चर्चा संकलन । चर्चा में मेरे सूत्र को स्थान दे कर सम्मान देने के लिए हृदयतल से असीम आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  4. उम्दा लिंको से सुसज्जित ये चर्चा मंच ।
    रचनाओं का कलेवर ही सुंदर और स्पष्ट ।
    सभी को बधाई
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  5. सुंदर ,पठनीय सूत्रों से सज्जित चर्चा अंक,सभी को बहुत शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत रंग- बिरंगा , विविधता से भरा सफर रहा …कल से सबके ब्लॉग पर जाकर पढ़ कर कमेन्ट करने की कोशिश की …कुछ ब्लॉग पर प्रथम बार गई…चर्चा अंक खूब रोचक व पठनीय है…बधाई आपको और सभी रचनाकारों को…मेरी रचना का चयन करने के लिए आभार🙏😊

    जवाब देंहटाएं
  7. बेहतरीन प्रस्तुति। मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय ‌।

    जवाब देंहटाएं
  8. अतिथि चर्चाकार के रूप में आ.दिगंबर जी को देख बेहद ख़ुशी हुई,बेहतरीन रचनाओं से सुशोभित लाजबाब चर्चा अंक,थोड़ी व्यस्तता के कारण सभी लिंकों पर नही जा पाई हूँ मगर कल जरूर पढूंगी। आपको सादर नमन दिगंबर जी

    जवाब देंहटाएं
  9. शानदार रही आज की चर्चा,नासवा जी की भूमिका और चयन बहुत ही आत्मीयता पूर्ण है। स्वागत है आजकी चर्चा का हृदय से।
    सभी ब्लागर बहुत ही शानदार प्रस्तुति के साथ कई नये ब्लागर दिखे, ये एक अविस्मरणीय अनुभव रहा सभी रचनाकारों को बधाई।
    मेरी रचना को इस उत्कृष्ट चर्चा में जगह देने के लिए हृदय से आभार।
    सादर।

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  10. बेहतरीन संकलन नासवा जी...👏👏👏

    जवाब देंहटाएं
  11. आदरणीय सर बहुत बहुत आभार इतनी सुन्दर प्रस्तुति पढ़वाने तैयार करने हेतु । बहुत बहुत आभार चर्चा मंच के अतिथि चर्चाकार का निमन्त्रण स्वीकार करने के लिए 🙏🙏
    अत्यंत हर्ष हुआ।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  12. बेहतरीन संकलन में मुझे भी स्थान देने हेतु दिल से आभार।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  13. उम्दा लिंकों से सजी लाजवाब चर्चा प्रस्तुति नासवा जी!
    भी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं।

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  14. सुंदर प्रस्तुति.मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार.

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  15. विभिन्न लिंकों से सजी शानदार चर्चा ।
    जाते हैं ब्लॉग लिंक्स पर ।

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  16. झाँक घरों में चंदा पूछे
    कहाँ छुपी है मानवता।
    क्रोध दामिनी का फिर फूटा
    देख आज की दानवता।
    जीवन काँप रहा है थर-थर
    छोड़ प्राण भी भागे तन।
    प्रेम नगरिया……
    इस कविता के लिए बेनी चाहिए तालियां
    Thanks
    Study Root !

    जवाब देंहटाएं
  17. आओ,बैठें
    किसी सूखी डाली पर,
    जीवंत कर दें ठूँठ को,
    महसूस करें
    कि इस डाली से उस डाली तक
    हमारे फुदकने में
    अब कोई बाधा नहीं है,
    पत्तों की भी नहीं.
    Great 👍
    Ayur Mart

    जवाब देंहटाएं

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