शीर्षिक पंक्ति :आदरणीया मीना भारद्वाज जी।
सादर अभिवादन। बुधवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
काव्यांश आदरणीया मीना भारद्वाज जी की रचना से -
दोस्ती में मिला हमें बेमालूम सा एक नाम,
तोहफे में वहीं नाम उनका रख करके देखें ।
झील के उस पार फिर निकलेगा पूरा चाँद,
फुर्सत बहुत है आज जरा टहल करके देखें ।
कौमुदी की छांव और परिजात के फूल,
दिल अजीज मंज़र को जी भर करके देखें ।
की रचना से -
दोस्ती में मिला हमें बेमालूम सा एक नाम,
तोहफे में वहीं नाम उनका रख करके देखें ।
झील के उस पार फिर निकलेगा पूरा चाँद,
फुर्सत बहुत है आज जरा टहल करके देखें ।
कौमुदी की छांव और परिजात के फूल,
दिल अजीज मंज़र को जी भर करके देखें ।
आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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उच्चारण: दोहे "शुभ हो नूतन साल"
पानी कैसा भी रहे, गलती इनकी दाल।
आज राम के देश में, हैं सब जगह दलाल।।
रहते थे जिस ताल में, करते वहाँ बबाल।
घड़ियालों ने कर दिये, सारे मैले ताल।।
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जी करता है किसी से आज मिल करके देखें,
अपनों से दिल की बात हम करके देखें ।
खैर न खबर उनकी बीते जमाने से,
जा कर उन्हीं के पास हैरान करके देखें ।
फिर याद आए, वो सांझ के साए....
था कोई साया, जो चुपके से पास आया,
थी वही, कदमों की हल्की सी आहट,
मगन हो, झूमते पत्तियों की सरसराहट,
वो दूर, समेटे आँचल में नूर वो ही,
रुपहला गगन, मुझको रिझाए....
पुरातन अभिलेख देते हैं दस्तक, विलुप्त
दरवाज़ों का मिलता नहीं कोई भी
नामोनिशान, वही सीलन
भरी ज़िन्दगी, झूलते
हुए चमगादड़ों
की तरह
भीड़
भरी सांध्य लोकल लौट आती है कच्चे
रास्तों से हो कर सुबह के ठिकान,
दरवाज़ों का मिलता नहीं कोई भी
नामोनिशान, वही सीलन
भरी ज़िन्दगी, झूलते
हुए चमगादड़ों
की तरह
भीड़
भरी सांध्य लोकल लौट आती है कच्चे
रास्तों से हो कर सुबह के ठिकान,
एक से बढ़ लेखनी है
काव्य रचती भाव भी
कल्पना की डोर न्यारी
और गहरे घाव भी
गंध को भरले हृदय में
घ्राण रखना चाहिए।।
देर तक देखती हूं तो
चौंधिया जाती हैं आंखें
अकुलाकर
मूंदती हूं आंखें
दिखते हैं
काले-काले धब्बे
बदल जाता है धूप का चरित्र
आंखों में समाते ही
होंगे कामयाब, होंगे कामयाब
हम होंगे कामयाब एक दिन
हो, हो,
मन में है विश्वास
पूरा है विश्वास
हम होंगे कामयाब एक दिन
हम होंगे कामयाब एक दिन
हो, हो,
मन में है विश्वास
पूरा है विश्वास
हम होंगे कामयाब एक दिन
यह इंसान वही है
पर जहां एक ओर वह...
किसी के लिए बुरा नहीं होता
तो वहीं दूसरी ओर
किसी के लिए अच्छा नहीं होता।।
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घेर रही विपदा जब मानव,नाथ दयालु खड़े तब साथ है।
काट रहे सब बंधन संकट,दीन दुखी झुकते सिर माथ है॥
कंठ हलाहल पीकर शंकर,तारणहार बने जग नाथ है।
झूम उठे फिर लोक सभी तब,शीश सदाशिव का फिर हाथ है॥
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जन्म से ही उन्मुक्त जो बहती
अंधेरे हो या चाहे उजाले
सहम-सहम कर चलती सांसे
जन्म से ही उन्मुक्त जो बहती
वो स्पंदन भरती आहें.
उथल-पुथल सी मची हुई है
सहम-सहम कर चलती सांसे
जन्म से ही उन्मुक्त जो बहती
वो स्पंदन भरती आहें.
उथल-पुथल सी मची हुई है
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रावण मुस्कुराते हुए बोला,
"राम, मैं सिर्फ महादेव के प्रति ही मित्रता के भाव से भरा हुआ हूँ । महादेव के अलावा किसी भी अन्य का मेरे मित्रभाव में प्रवेश निषिद्ध है, फिर वह भले ही महादेव को ही क्यो न प्रिय हो इसलिये तुम्हे कभी भी रावण की मित्रता नहीं मिलती। मेरे निदान के लिये महादेव ने
तुम्हारा चयन किया है राम,क्योंकि महादेव अपने इस अतिप्रिय शिष्य को मृत्यु नहीं, मुक्ति प्रदान करना चाहते हैं।"
आज का सफ़र यहीं तक
फिर मिलेंगे
आगामी अंक में
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
शुभ प्रभात ...सुंदर सी इस प्रस्तुति हेतु अभिवादन। ।।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन व लाजवाब संकलन अनीता जी ।आज की प्रस्तुति के सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई । विविधरंगी प्रस्तुति में मुझे सम्मिलित करने के लिए बहुत बहुत आभार ।
जवाब देंहटाएंसुंदर संकलन
जवाब देंहटाएंमोहक शीर्षक ।
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार प्रस्तुति।
श्रमसाध्य!
खोज कर लाये गए सभी लिंक बेहतरीन।
सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
मेरी रचना को चर्चा में स्थान देने के लिए हृदय से आभार।
सादर सस्नेह।
बहुत सुंदर प्रस्तुति, मेरी रचना को चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार अनीता जी।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंएक से बढ़कर एक उत्कृष्ट रचनाओं का संकलन।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए हार्दिक आभार। सादर।
चर्चामंच में मेरी कविता शामिल करने के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं हार्दिक आभार अनीता सैनी जी 🙏
जवाब देंहटाएंरोचक रचनाओं से सजे रोचक मंच के लिए आपको साधुवाद अनीता जी 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर पठनीय तथा सराहनीय अंक के लिए आपको हार्दिक शुभकामनाएं अनीता जी,सादर नमन।
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