सादर अभिवादन। बुधवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
आज प्रस्तुति की शीर्षक पंक्ति व काव्यांश आ.कल्पना मनोरमाजी की रचना से -
आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
क्या पता लिखते लिखते लिखने को समझ आ जाये
खुद ही अपने आप सही सपाट और सीधा सच्चा सा
लिखने लिखाने लायक
निकल कर दौड़ ले पन्ने पर सफेद
बनाते हुऐ ओल वैदर रोड टाईप की सरकार की
महत्वाकाँक्षी सड़क जैसा कुछ
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शायद दूर था, उसकी आशाओं का घर!
बांध रखी थी, उम्मीदों की गठरियाँ,
और, ये सफर, काँटों भरा....
राहों में, वो ही कहीं, अब गौण था!
बड़ा ही मौन था!
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कितना मुश्किल ये अपनी ज़िन्दगी से मिलना है
अजनबी को जो किसी अजनबी से मिलना है
ऐ उम्मीद तूने तो देखा ज़रूर होगा उसे
मुझको एक बार किसी भी खुशी से मिलना है
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बढ़ी चली आ रही हैं
मेरी ओर धीरे-धीरे
दो चमकती आँखें,
मौत के डर से
पसीना-पसीना
हुआ जा रहा हूँ मैं.
मैं जलनिधि हूँ, मैं सागर हूँ (विश्व महासागर दिवस)
अपने मासूम से हाथों से, प्रकृति का दोहन कर डाला
मुझको भी नहीं छोड़ा तुमने, मेरा उदर प्रदूषित कर डाला
अब फिर से मेरी बात सुनों,मैं जलनिधि हूँ, मैं सागर हूँ
मैं पूरी धरा पे फैला हूँ, मैं जाता समा एक गागर हूँ
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बादल हवा के दोश पे उड़ते फिरें मगर
प्यासी ज़मीं कहे तो ठहर जाना चाहिए
दोश: कंधे
दिन ढल गया तो मौत है इक जश्ने बेबसी
सूरज चमक रहा हो तो मर जाना चाहिए
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सामने हो मगर हाथ आते नहीं
तुम हमारे लिए आसमां हो गए
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अपनी बेबसी का एहसास भी था मुझे और अपने हालात पर अब उतना अफसोस भी नहीं था । वो भी सारे सितम से बेखबर होके अपनी मासूमियत को समेटने में लग गई ।
अक्सर होता ये था कि पूरे साल में गर्मी का मौसम कब बीत जाता था पता ही नहीं चलता था क्योंकि घर के सामने रास्ते के दूसरी ओर नीम का घना वृक्ष था और उसकी छांव में गर्मी का अहसास ही नहीं होता था, वह वृक्ष और उसकी पत्तियां उस गर्मी को, तपिश को सहकर छांव पहुंचाया करती थी और तो और दादी के नुस्खे के क्या कहने किसी को चोट आती तो वह नीम की छाल निकालकर घिसती और पैर पर लगा देती, बस अगले दिन सब ठीक हो जाया करता था। रोज की तरह आज भी बंशी ने अपना दरवाजा अपने आप पर झुंझलाते हुए खोला और बोला ये रात तो काटनी मुश्किल है,
आज का सफ़र यहीं तक
फिर मिलेंगे
आगामी अंक में
@अनीता सैनी 'दीप्ति
बहुत सुंदर संकलन अनीता जी! सभी लिंक्स अत्यंत सुन्दर । चयनित रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteपठनीय रचनाओं के सूत्रों से सजा चर्चा मंच, बधाई और शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteशानदार संकलन और गहरी रचनाएं। आभारी हूं आपका मेरी लघुकथा को सम्मान देने के लिए। सभी रचनाओं पर प्रतिक्रिया अध्ययन के बाद। आभार अनीता जी।
ReplyDeleteअभी हालात सुधरते जरूर नज़र आ रहे हैं, पर अब और भी सावधानी की जरुरत है ! सभी सावधान रहें, सुरक्षित रहें, यही कामना है
ReplyDeleteसुंदर संकलन.आभार
ReplyDeleteअनिताजी,नमस्कार !
ReplyDeleteबहुत सुंदर तथा सारगर्भित रचनाओं से सज्जित अंक । मेरी रचना को स्थान देने हेतु आपका हार्दिक धन्यवाद । सभी रचनाकारों को मेरी हार्दिक बधाई...जिज्ञासा सिंह ..
बढ़िया संकलन हेतु बधाई अनीता जी !
ReplyDeleteआभार अनीता जी।
ReplyDeleteबेहतरीन रचनाओं का संकलन,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
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