सादर अभिवादन
सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
आइए पढ़ते हैं आज की चंद चुनिंदा रचनाएँ-
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दोहे "ढकी ढोल की पोल" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
शैल शिखर उत्तुंग पर, जब पड़ती है धूप।
हिमजल ले सरिता बहें, ले गंगा का रूप।।
नष्ट करे दुर्गन्ध को, शीलन देय हटाय।
पूर्व दिशा के द्वार पर, रोग कभी ना आय।
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हमारे बाबा स्वर्गीय श्री लाडली प्रसाद जैसवाल के लिए ग्रेट विशेषण का प्रयोग किया जाना सर्वथा आवश्यक है.
बाबा ग्रेट थे. भगवान ने उनका जैसा पीस न तो उन से पहले बनाया था और न ही उनके बाद बनाया.
हमारे बाबा पुख्ता रंग के गंजे प्राणी थे लेकिन उन्हें दूसरों के रंग-रूप की खिल्ली उड़ाने में बहुत मज़ा आता था.
किसी काली रंगत वाले को ही क्या, वो तो सांवली रंगत वाले को भी उल्टा तवा कहा करते थे.
बाबा जब पिताजी की बारात लेकर हमारी ननिहाल एटा पहुंचे तो समधियाने में उनके रूप का वर्णन कई गीतों में गुंजायमान हुआ.
बाबा ने –
‘मेरो समधी कित्तो कारो
पर ख़ुद हंस-हंस कर ताल दी थी.
लेकिन जब महिलाओं ने हमारे सादाबादी (आगरा-अलीगढ़ के बीच एक क़स्बा) खानदान की शान में
फिजाओं में शोर बहुत है
मौन की चादर अपने वजूद से
लपेट मन किसी कोने में
गहरी नीन्द में सो रहा है
गहरी नीन्द में सो रहा है
तुझे ही, देखते हैं वो सारे!
सभी सीखें सही बातें पढ़ें अच्छी पढ़ाई को,
चलो जीते सभी के मन लड़े सच की लड़ाई को,
मिले सबको यहाँ खुशियाँ हमें ये काम करना है,
मिटाना है दिलों से अब सदा कड़वी बुराई को।
वह दृश्य
अदृश्य
हो ही नहीं रहा
जब उन्होंने मुझसे कहा
अब क्या है
जीवन बीत चुका है
और मैं बुढ़ापे के आनंद में हूँ
आजकल परमानंद में हूँ
पिता अभिमान होता है,
पिता अरमान होता है।
सृजन के जान पे आयी
पिता कुर्बान होता है।।
जवानी धूप में खोता,
बुढापा तन्हा ढोता है।
बच्चों की याद आये तो
सदा चुपके से रोता है।।
रोज़ रात को
जब पड़ती हैं बिस्तर पर
सिलवटें
मेरी करवटों से
जागता है रतजगे का अहसास
नापती हूं अपनी चादर को
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वे जाते कहाँ हैं
वे तो बस, बस जाते हैं
हमारी यादों में
नीदों में, बातों में
हर छोटी-छोटी चीजों में
वे पलट कर नहीं आते
पर उनके अक्स पलटते हैं
हमारे बच्चों में
नाती-पोतों में
उनकी हंसी में
उनकी बातों और आदतों में
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सुप्रभात!
जवाब देंहटाएंआज के सुंदर संकलन के श्रमसाध्य प्रस्तुति के लिए आपका बहुत बहुत आभार रवींद्र सिंह यादव जी,मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद..सादर जिज्ञासा सिंह..
रवीन्द्र सिंह जी बहुत आभार मेरी रचना को शामिल करने के लिए। वक्त मिलते ही पढती हूँ सबकी रचनाएं 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और श्रमसाध्य प्रस्तुति । आज की प्रस्तुति में मेरी रचना को मान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार । सभी चयनित रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति,आप सभी को योग दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति। मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय।
जवाब देंहटाएंबहुत बढियां चर्चा संकलन
जवाब देंहटाएंआभार रवीन्द्र जी।
जवाब देंहटाएंचर्चा का सुंदर संयोजन करने के लिए आपको साधुवाद रवीन्द्र सिंह यादव जी 🙏
जवाब देंहटाएंमेरी कविता को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार रविंद्र सिंह यादव जी 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार चर्चा, हर रचना पठनीय,
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
शीर्षक बहुत कुछ कह रहा है।
सादर।