शीर्षक पंक्ति : आदरणीय ओंकार जी।
सादर अभिवादन। बुधवारीय प्रस्तुति में आपका हार्दिक स्वागत है।
चर्चा प्रस्तुति निर्बाध चल रही है परंतु आदरणीय शास्त्री जी की कमी सदा महसूस होती है ईश्वर से प्रार्थना है वो यथा शीघ्र स्वास्थ्य लाभ कर मंच पर हमारे बीच सक्रिय हो।
पिछले रविवार अतिथि चर्चा कार के रूप में हमारे बीच आदरणीया अनिता सुधीर जी रही,आगे भी रविवारीय अंक अतिथि चर्चा कार के साथ आप सबके साथ।
साथ ही सभी साथियों से अनुरोध है कि किसी रविवार के दिन स्वैच्छिक प्रस्तुति हमारे साथ देने को सहर्ष आमंत्रित हैं।
जो भी साथी ब्लागर प्रस्तुति देना चाहें कृपया बताएं पूरा सहयोग और दिशा निर्देश मंच करेगा बस आप की पसंद के ब्लाग चुनकर हमारे साथ चर्चा का लुत्फ उठाएं।
सादर ।
आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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आओ, दौड़कर आओ,
जल्दी से आकर
क़तार में खड़े हो जाओ,
लम्बी क़तार है,
कुछ अच्छा ही बँट रहा होगा,
सोचने में समय मत गंवाओ,
बस शामिल हो जाओ.
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इसका लिखना
उसके लिखने से कुछ ज्यादा सफेद है
काला कौआ लिखता है कबूतर
लिखे
कह दे गलत लिख दिया खेद है
जो उतरता है आसमान से
उसे लिखने की हिम्मत करें
किसी की जमीन खोद कर
निकले हुऐ कुछ पत्थर लिखना फरेब है
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यादों की गुल्लक फोड़ूँ तो ,
बचपन ज़िन्दा हो उठता है
माँ का आँचल लहराता है ,
इक छाँव मेरे सँग चलती है
हजारों सालों की विद्या
क्यों लगती अब ढोंग
आओ करें मिलकर सभी
पुनर्जीवित ये योग।
साँसे कम होतीं नहीं
जो करते रहते योग
हमको करना था यहाँ
अपना ही सहयोग।
तुम चलो, सारथी मैं हूँ
थोड़ा सा तो चलो, डगर पर कदम बढ़ाओ
उन कदमों से कदम मिलाते चलते जाओ
अपने कदमों का दो सच्चाई से साथ,सारथी मैं हूँ
तुम चलो...
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२-है बदलाव
हमारी सुरक्षा से
परिवर्तित
ग्रसती सभी खुशियाँ
कालिमा रात की काली।
छुपती दिखे रजनी
मौत की देख दीवाली।
आहत हुआ अम्बर
और व्याकुल हुई धरणी।
टूटे हुए तारे......
कुछ वर्ष पूर्व मैंने 'क़त्ल की आदत' नाम से एक हिन्दी उपन्यास लिखा था। कथानक सर्वथा मौलिक था क्योंकि वह मेरे निजी अनुभवों पर आधारित था। आजकल लिखने से भी अधिक दुस्साध्य कार्य पुस्तक को प्रकाशित करना (या करवाना) होता है। जैसे-तैसे वह पुस्तक इंटरनेट पर ई-पुस्तक के रूप में कुछ स्थानों पर उपलब्ध करवाने में तो मैं सफल हो पाया लेकिन उसका काग़ज़ पर प्रकाशित हो पाना स्वप्न-सदृश ही रहा। मैंने स्वयं भी इस दिशा में अधिक रुचि नहीं ली।
6 जून को प्रसिद्ध अभिनेता सुनील दत्त की जन्मतिथि थी। फ़िल्म इंडस्ट्री के ये उन चंद नामों में है जिनके जीवन की कहानी भी पूरी फ़िल्मी यानी रोचक और प्रेरक है। मात्र 5 वर्ष की अल्पायु में पिता का साया सर से उठ गया, 18 की उम्र में बंटवारे के बाद बड़ी कठिनाईयों से पाकिस्तान से भारत पहुंचे, पढ़ाई पूरी की, रेडियो प्रस्तोता बने, उसी दौरान निर्देशक रमेश सैगल के संपर्क में आये और उनके साथ पहली फ़िल्म 'रेलवे प्लेटफॉर्म' मिली। फिल्मों में उतार-चढ़ाव देखे, नायक, खलनायक, चरित्र अभिनेता होते राजनीति में पहुंचे, नर्गिस से प्रेम, विवाह, उनकी कैंसर से मृत्यु... और इन सबके बाद बेटे संजय दत्त को लेकर परेशानियां... एक फ़िल्म तो सिर्फ़ उनके ऊपर बननी चाहिए...
पत्ते झड़ने का मौसम है मगर उम्र के चिन्ह नदारद. एक जवान का दिल और सेहत सुभान अल्लाह. उमंगों का सागर ठाठें मारता अंगड़ाईयाँ भरता जवानी के जोश से भरपूर. ऐसा व्यक्तित्व जहाँ उम्र के चिन्ह तरसते हैं अपनी पहचान पाने को. खुशमिजाज़, सह्रदय और सुलझा हुआ इंसान. एक इंसान में इतने सारे गुण एक साथ होने उसे विशिष्ट तो बनायेंगे ही और दूसरों के लिए ईर्ष्या का पात्र भी. बस ऐसे ही तो थे राहुल सिन्हा.
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आज का सफ़र यहीं तक
फिर मिलेंगे
आगामी अंक में
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
बहुत सुन्दर. आपका बहुत बहुत आभार.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका अनीता जी। संकलन में विविधता, रोचकता एवं उपयोगिता सभी का ध्यान रखा गया है जो निश्चित रूप से सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंसभी सूत्र बहुत सुन्दर और रोचकता से परिपूर्ण । विविधता लिए अति सुन्दर चर्चा प्रस्तुति। शास्त्री सर स्वास्थ्य लाभ कर मंच संचालित करें उनके संकलनों की प्रतीक्षा सदैव बनी रहती है ।
जवाब देंहटाएंआज के संकलन में सृजन को सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार अनीता जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति। मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार अनीता जी।
जवाब देंहटाएंअति सुंदर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत आभार अनीता जी
जवाब देंहटाएंबहुत आभार अनीता जी
जवाब देंहटाएंThanks for the p o st
जवाब देंहटाएंसराहनीय प्रस्तुति प्रिय अनीता जी, मेरी रचना को भी स्थान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद आपका
जवाब देंहटाएंआभार आनीता जी बकवास को जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंआज का अंक भावपूर्ण |मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद |
बहुत सुंदर तथा भावभरी रचनाओं से सज्जित अंक,मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार,सादर शभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।
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