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बुधवार, जुलाई 07, 2021

'तुम आयीं' (चर्चा अंक- 4118)

शीर्षिक पंक्ति :आदरणीय कविव केदारनाथ सिंह।

सादर अभिवादन। 
बुधवारीय  प्रस्तुति में आपका स्वागत है।

पढ़ते हैं  कविवर केदारनाथ सिंह जी की रचना से काव्यांश-

तुम आयीं
जैसे छीमियों में धीरे- धीरे
आता है रस
जैसे चलते - चलते एड़ी में
काँटा जाए धँस
तुम दिखीं
जैसे कोई बच्चा
सुन रहा हो कहानी
तुम हँसी
जैसे तट पर बजता हो पानी
तुम हिलीं
जैसे हिलती है पत्ती
जैसे लालटेन के शीशे में
काँपती हो बत्ती !
तुमने छुआ
जैसे धूप में धीरे- धीरे
उड़ता है भुआ। 

आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-

--

तुम आयीं - केदारनाथ सिंह

और अन्त में
जैसे हवा पकाती है गेहूँ के खेतों को
तुमने मुझे पकाया
और इस तर
जैसे दाने अलगाये जाते है भूसे से
तुमने मुझे खुद से अलगाया ।
--
3. पेट्रोल और डीज़ल –
प्रजा के आंसू
बहते हों तो बहें
दाम बढ़ाओ
--
पावस सदा आता
करें सब लोग अगवानी
धागे बिना देखो
प्रकृति सिलती वसन धानी
है व्योम भी चंचल
पहनता पाग सतरंगी।।
--
स्नेह दीप्ति सा
प्रज्ज्वलित हृदय 
सूर्य  से लिए कांती ,
चन्द्र से लिए शांति,
दृढ़ता मन में ,
कोमलता आनन में
नारी की पहचान
दिशा बोध संज्ञान
पग अपना धरे चलो ,
ऐसे ही बढ़े चलो ...
--
मा
की आंखें उम्र के पहले
धंस जाती हैं 
चिंता के भंवर में।
--
स्मृति के, इस गहराते पटल पर,
अंकित, हो चले वो भी!
यूँ, आसान नहीं, इन्हें सहेजना,
मनचाहे रंगों को, अनचाहे रंगों संग सीना,
यूँ, अन्तःद्वन्दों से, घिर कर,
स्मृतियों संग, जीना!
--
अब कहाँ छुपे हो कन्हैया
हे मुरली के बजवैया ।
मैं वन वन तुमको ढूंढूं
दो पंखों की गौरैया ।।
--
जब सार्थक हो मौन
तो माप आता है
आकाश गंगा से लेकर
पृथ्वी की बूँदों का घनत्व,
समझ आता है
दिव्य भाव-भंगिमाएँ,
तुला पर रख गुज़रता है
अकाट्य तर्क
--
अँखियों की सरहद से बाहर
क्या मोल है कोई सपनों का ?
जब तक आँखों में रहता है,
हर सपना अपना लगता है। 
--
सांसों की खड़ियां लेकर 
ज़िंदगी की दीवार पर 
एक-एक दिन की
लकीरे खींचते हुए 
सोचती हूं
एक क़ैदी की तरह 
आख़िर
कब ख़त्म होगी 
जीने की ये सज़ा?
--
वो किसी अनाम फूल की ख़ुश्बू,
बिखरती, तैरती, उड़ती,
नीले नभ और रंग
भरी धरती के
बीच,
कोई पंछी जाए इन्द्रधनु से
मिलने लाए सात सुरों
में जीवन के गीत,
वो कोई अबाध
नदी कभी
इस
--
प्रतिष्ठित अखबार के संपादक महोदय बार-बार किसी को फोन लगा रहे थे। लेकिन फोन आउट ऑफ कवरेज ही आ रहा था। वे बहुत ज्यादा परेशान हो रहे थे। ऐसा लग रहा था मानो सामनेवाले व्यक्ति से उन्हें कोई बहुत ही जरूरी बात करनी थी। 
''क्या बात है सर? आप इतने परेशान क्यों है? आप किसको फोन लगा रहे है?'' अधिनस्थ कर्मचारी ने पूछा। 
''शर्मा जी को। उन्होंने कल के अंक के लिए अभी तक राशिफल नहीं भेजा है।'' 
''ये तो वास्तव में परेशानी की ही बात है क्योंकि अब हमारे पास समय बहुत ही कम है।'' 
इतने में शर्मा जी का फोन लग गया। 
--
आज का सफ़र यहीं तक 
फिर मिलेंगे 
आगामी अंक में 

17 टिप्‍पणियां:

  1. इस बेहतरीन प्रस्तुति का हिस्सा बनाने हेतु आदरणीया अनीता सैनी जी का हृदय से आभार।।।।।
    सारी रचनाएँ बेहतरीन हैं ....

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत-बहुत धन्यवाद अनीता जी! अनमोल संकलन में मेरी रचना को स्थान दिया!

    जवाब देंहटाएं
  3. आभारी हूंं अनीता जी..। मेरी रचना को मान देने के लिए आभार...।

    जवाब देंहटाएं
  4. विविधता से परिपूर्ण उत्कृष्ट रचनाओं से सजा सुंदर अंक, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार, शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत शानदार प्रस्तुति ऊपर से अंत तक एक एक रचना पठनीय सुंदर।
    सभी रचनाकारों को बधाई।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभार।
    सादर सस्नेह।

    जवाब देंहटाएं
  6. विविधरंगी सूत्रों से सजी लाजवाब प्रस्तुति अनीता जी ! सभी रचनाएँ अत्यन्त सुन्दर हैं । रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुंदर एवं शिक्षाप्रद रचनाएँ जिनको पढ़कर चुनकर लाना आसान काम नहीं है। बहुत सारा वक्त लगता है।
    चर्चामंच पर अपनी रचना को देखना सुखद अनुभूति देता है। हृदय से आभार अनिताजी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभारी हूँ आदरणीया मीना दी जी।
      स्नेह बनाए रखे।
      सादर

      हटाएं
  8. उम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, अनिता।

    जवाब देंहटाएं
  9. वाह बेहद सुंदर चर्चा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  10. सभी रचनाएँ अपने आप में अद्वितीय हैं मुग्ध करता हुआ चर्चामंच, मुझे शामिल करने हेतु असंख्य आभार आदरणीया - - नमन सह।

    जवाब देंहटाएं

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