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शनिवार, जुलाई 10, 2021

'माटी'(चर्चा अंक- 4121)

शीर्षिक पंक्ति :आदरणीया शुभा मेहता जी। 

सादर अभिवादन। 
शनिवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है। 

 काव्यांश आदरणीया शुभा मेहता जी 
की रचना से -
बरसात ..आहा.....
नन्ही -नन्ही फुहारों का 
  वो स्पर्श ...कितना अद्भुत !!
  मन आनंद मगन 
    माटी की खुशबू ..
     अपनी ही खुशबू 
       तू भी माटी ,
      मैं भी माटी ,
      मिल जाना है 
      तुझमें ही 
       फिर काहे इतना झमेला 
       तेरा -मेरा ,इसका -उसका 
       सब माया का खेला ।

आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-

 --

उच्चारण: "उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचन्द का जीवनवृत्त" 

प्रेमचन्द का जन्म ३१ जुलाई सन् १८८० को बनारस शहर से चार मील दूर लमही गाँव में हुआ था। आपके पिता का नाम अजायब राय था। वह डाकखाने में मामूली नौकर के तौर पर काम करते थे।जीवन धनपतराय की उम्र जब केवल आठ साल की थी तो माता के स्वर्गवास हो जाने के बाद से अपने जीवन के अन्त तक लगातार विषम परिस्थितियों का सामना धनपतराय को करना पड़ा। पिताजी ने दूसरी शादी कर ली जिसके कारण बालक प्रेम व स्नेह को चाहते हुए भी ना पा सका।
--
बरसात ..आहा.....
नन्ही -नन्ही फुहारों का 
  वो स्पर्श ...कितना अद्भुत !!
 माटी की खुशबू ..
  अपनी ही खुशबू 
 मन आनंद मगन 
--

 सूखी रेत के
 ढूह पर…,
तुम्हारा मन है कि

तुम बनाओ

एक घरौंदा

तो बनाओ ना…,

रोका किसने है

छागल में अभी भी

 बाकी है 

--

रुख मोड़ दो

बेखबर, ये अनमना सा, अन्तहीन सफर,
हर तरफ, बस, एक ही मंज़र,
बेतहाशा भागते सब, पत्थरों के पथ पर,
परवाह, किसकी कौन करे?
पत्थरों से लोग हैं, वो जियें या मरे!
अनभिज्ञ सा, ये काफिला,
अपनी ही, पथ चला!
--
मैं हर बार तपी कुंदन बन निखरी
कंटक बन में घिर,पुष्प बनी निखरी
फिर भी कदम थके नही रुके नही..... 
बियाबान में चलती रही चलती ही रही।।
--
पुराना शहर
पुरानी गलियां
पुराने दोस्त
 पुराने दिन, 
पुरानी यादें, 
पुराना भवन, 
पुराना पेड़,
पुराने लोग,
--
यदि जोश है उमंग है, तो कायनात तुम्हारी है। 
जिन्दादिली के आभाव में, जीना भी बेकार है।। 

प्यार अंधा प्यार गूंगा और प्यार बहरा होता है। 
शोख़ उमर क्या-क्या कर बैठे कौन जानता है।।
--
जब दिन में ही हर ओर क्रंदन है
तो वो रात कितनी खौफनाक होगी
हर गली सूनी हर घर में अँधेरा छाया 
दिन खाने को दौरता है तो रात काटे नहीं कटती 
--
चॉकलेट राहत देती है
मन को खुश करती है
लो बीपी में मदद करती है
कमजोरी में ऊर्जा देती है
चॉकलेट डोपामाइन होती है
जो शरीर में खुशी की तरंग को छेड़ देती है
चॉकलेट मुहँ में यूँ पिघलती है

हमारे भारत में अभिनय सम्राट’ कहते ही लाखों-करोड़ों के दिलो-दिमाग में एक ही नाम कौंध जाता हैऔर वो है दिलीप कुमार का.दिलीप कुमार ने फ़िल्म देवदास’ में पारो से बिछड़ने के गम में शराब क्या पी लीलोगबाग जानबूझ कर अपनी-अपनी प्रेमिकाओं से बिछड़कर उनके गम में शराब पीने लगे. तमाम टैक्सी ड्राइवर्स ने फ़िल्म नया दौर’ देख कर टैक्सी चलाने का धंधा छोड़ कर तांगा चलाना शुरू कर दिया.
सुबह-सुबह बहुत बैचेनी से खगिया को सड़क की ओर जाता देखा था।आज वह हवा की झिकों सी उड़ी जा रही थी उसको गोद में था नन्हा रामपाल।
आज का सफ़र यहीं तक 
फिर मिलेंगे 
आगामी अंक में 

9 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन भूमिका और पुष्पगुच्छ सी प्रस्तुति में मेरे सृजन को सम्मिलित कर मान देने के लिए हृदय से आभार अनीता जी ।

    जवाब देंहटाएं
  2. आभार आपका अनीता जी...मेरी रचना को सम्मान देने के लिए साधुवाद...।

    जवाब देंहटाएं
  3. सभी प्रस्तुति एक से बढ़ कर एक है। इसके साथ ही ह्रदय से धन्यवाद अनिता जी मेरी रचना को शामिल करने के लिए।

    जवाब देंहटाएं
  4. प्रिय अनीता ,मेरी पंक्तियों से चर्चा का आरंभ करने के लिए हृदयतल से आभार 🙏खूबसूरत प्रस्तुति ।सभी रचनाएँ एक से बढकर एक ..।

    जवाब देंहटाएं
  5. भूमिका में लिखी शुभा जी की पंक्तियाँ ठंडी फुहारों से लगी,बेहतरीन रचनाओं से सुशोभित सुंदर चर्चा अंक
    ,सभी को हार्दिक शुभकामनायें एवं नमन

    जवाब देंहटाएं

  6. बेहद रोचक लिंक्स से सुसज्जित चर्चा।

    जवाब देंहटाएं
  7. खूबसूरत वैविध्यपूर्ण सूत्रों से सजा अंक,बहुत शुभकामनाएं अनीता जी,सादर नमन।

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत खूबसूरत चर्चा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं

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