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शनिवार, जुलाई 17, 2021

'भाव शून्य'(चर्चा अंक- 4128)

शीर्षिक पंक्ति :आदरणीया कुसुम कोठारी जी। 

सादर अभिवादन। 
शनिवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है। 

 काव्यांश आदरणीया आदरणीया कुसुम कोठारी जी की रचना से। 

भाव शून्य हैं पाथर जैसे
गर्म तवे ज्यों बूंद गिरी
संवेदन सब सूख गये हैं
मानवता अवसाद घिरी
कण्टक के तरुवर को सींचा
पुष्प महकता कब उपवन।।

आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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भाव शून्य हैं पाथर जैसे
गर्म तवे ज्यों बूंद गिरी
संवेदन सब सूख गये हैं
मानवता अवसाद घिरी
कण्टक के तरुवर को सींचा
पुष्प महकता कब उपवन।।
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*2.कलरव*
कलरव चिड़ियों का सुने,
बालक नन्हा झाँकता।
कौतुक आँखों में भरा,
खोले मूँदे ढाँकता।
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जाने क्यों मन मचलता है
जाने क्यों दिल नहीं लगता है 
कैसी बही बयार
मन का पाल नहीं खुलता है 
रेत-ही-रेत नदी में जाने क्यों
अब इधर से पानी नहीं बहता है
--
बादल बने डाकिए फिरते
 बिना पते की चिट्ठी लेकर
मीलों चल आते दरवाज़े
जाते खाली गागर देकर

सबेरे अब उठकर पढ़ता नहीं अखबार


शुरू से आखरी पन्ने तक


सांझ होते ही बैठता नहीं चाय का प्याला लेकर


इडियट बॉक्स के आगे


भोगता नहीं घंटों तक ट्रैफिक की पीड़ा


दो पैग मार कर जल्द ही लौटती गाड़ी में


पहुँचता नहीं घर।

 

 


बादल में रहने से बिसर जाती हैं

आलोक रश्मियां धुंधली सी,

मेरे अन्तस् का तम हरतीं ।

निर्बल क्षण में संबल बनती,

मुझ में विलीन ये मुझ जैसी।।

--

कल हरसूद, आज बक्सवाहा, कल जीवन स्वाहा

दोस्तों राष्ट्रीय मासिक पत्रिका ‘प्रकृति दर्शन’ पर अगला विषय है- ‘पहले हरसूद, अब बक्सवाहा, कल जीवन स्वाहा’ आखिर महत्वकांक्षाएं कितने जंगलों को ठूंठ बनाकर उन्हें तबाह करेंगी। हरसूद एक ऐसा नगर जो सालों पहले हमेशा के लिए जलमग्न हो गया क्योंकि एक बांध बनना था, बन भी गया और हरसूद बैकवाटर में डूब भी गया...। मानव आबादी कहीं बसा दी गई, लेकिन क्या उस क्षेत्र के जीव, वन संपदा, पौधे, वृक्ष, पक्षी...जमीन के भीतर रहने वाले और प्रकृति के चक्र के महत्वपूर्ण हिस्सेदार रेंगने वाले
मेरी रचना "जिंदगी की शाम" जिसको अमर उजाला की सप्ताहिक पत्रिका रुपायन में 14 मई  को प्रकाशित किया गया । जिसे अगर आप देखना चाहते हैं तो लेबल-  अकेलापन पर क्लिक करके देख सकते हैं! 
प्रकाशित हुए तो महीनों हो गयें पर मुझे जानकारी अभी  हाल ही में मिली क्योंकि उस वक्त अखबार वाले चाचा जी बिमार थे इसलिए अखबार नहीं आ पा रहा था और जिस फोन से मैंने रचना को प्रकाशित करने के लिए ई -मेल किया था वो फोन भी खराब था! 
खैर, 

हमने चर्चा की थी “ मसाला सीरीज ” में कबाबचीनी, स्याह जीरा और स्टार एनीज की। उसी क्रम में आगे बढ़ते हैं और बात करते हैं “ पत्थर के फूल ” की।पुरानी दीवारों,खंडहरों में और पत्थरों पर बरसात के दिनों में छोटे-छोटे पौधे अपनेआप उग आते हैं। ये देखने में फूल जैसे लगते हैं। इसी कारण इन्हें शिलापुष्प भी कहते हैं। यह एक प्रकार की वनस्पति/ लाइकेन ही है। इसके पीछे वाला भाग काला-स्लेटी रंग का और नीचे का भाग सफेद रंग का होता है।दगड़ फूल में अनेक गुण हैं। इसमें एन्टी इंफ्लेमेटरी, एन्टी फंगल, एन्टी बैक्टरियल, एन्टीइंफ्लेमेट्री, एन्टी वायरल और एन्टी माइक्रोबियल गुण होते हैं। यह औषधि फूल होने के साथ साथ गरम मसलों में प्रयोग किया जाने वाला मसाला हैं। 
पर मैं ज़्यादा देर चुप नहीं रह सकती, तुमसे बात करने को मचल उठती हूँ....
एक बात कहूँ?"
फिरकहा  पैदल चलते वक्त चुप रहा करो...
बस एक...." मैं मनुहार कर उठती हूँ।
कहो
मुझसे प्यार करते हो?" 
बहुत...” तुम हँसते हो, “पैंतालीस सालों में यह वाक्य कितनी बार दोहराई होयाद है ?" 
असंख्य बारफिर भी  पेट भरता है  मन.... चलो अब चलते हैं
चलोतुम मोबाइल में समय देखते हो.... अभी तीस मिनट पूरे नहीं हुए हैं” 
कितने हुए?"
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वर्तमान में सबसे अधिक लघुकथा पढ़ीं जा रही है । यहीं सबसे बड़ी उपलब्धि है । लघुकथा पर विभिन्न कार्य हो रहें हैं । सभी की अपनी सफलता है । अभी हाल में भारतीय लघुकथा विकास मंच के माध्यम से श्रृंखला शुरू की है । जिसमें मध्यप्रदेश के प्रमुख लघुकथाकार ( ई लघुकथा संकलन ) , हरियाणा के प्रमुख लघुकथाकार ( ई लघुकथा संकलन ) , मुम्बई की प्रमुख हिन्दी महिला  लघुकथाकार ( ई लघुकथा संकलन ) की सफलता के बाद " हिन्दी की प्रमुख महिला लघुकथाकार " (ई लघुकथा संकलन ) तैयार किया है । जिसमें इक्कीस लघुकथाकारों की , प्रत्येक की ग्यारह लघुकथाएं  दी गई है । इस प्रकार से इक्कीस परिचय के साथ 231 लघुकथाएं हैं । जो बारह राज्यों की हिन्दी की इक्कीस महिला  लघुकथाकार हैं । जो अब तक के मेरे सम्पादन में सबसे बड़ा लघुकथा संकलन है ।
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आज का सफ़र यहीं तक 
फिर मिलेंगे 
आगामी अंक में 

10 टिप्‍पणियां:

  1. अनीता जी, आज के वैविध्यपूर्ण तथा पठनीय सूत्रों से सजे संकलन संयोजन के लिए हार्दिक आभार, आपके श्रमसाध्य कार्य के लिए नमन एवम वंदन।

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  2. बेहद गहन और अच्छा संकलन। आभार आपको अनीता जी। पत्रिका के अंक की पोस्ट पर कहना चाहता हूं कि ब्लॉगर साथी यदि इसमें लिखना चाहते हैं तो स्वागत है...अधिक जानकारी संदेश में है और यदि कोई पत्रिका की पीडीएफ चाहता है तो उसे अपना व्हाटसऐप नंबर मेरे नंबर पर सेंड करना होगा उसे तत्काल अब निकले अंक प्रेषित कर दिए जाएंगे...। यह पत्रिका प्रकृति के संरक्षण और संवर्धन पर 2018 से आरंभ होकर यहां तक आ पहुंची है...लिखिये क्योंकि प्रकृति संरक्षण हमारे नैतिक जिम्मेदारी है। अधिक जानकारी के लिए आप चर्चा भी सकते हैं, मेल भी कर सकते हैं।

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  3. सदैव की भांति लिंक्स का बहुत सुंदर संयोजन...आपके श्रम को साधुवाद अनीता जी ! इस सुन्दर सी प्रस्तुति में मेरे सृजन को मान देने के लिए असीम आभार ।

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  4. सुंदर और पढनीये सूत्रों से सजी चर्चा अंक अनीता जी,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनायें

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  5. बहुत सुंदर चर्चा अंक। मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार अनीता जी।

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  6. बेहतरीन संकलन अनिता जी ।
    तकरीबन सभी लिंक्स पढ़े । बस अंतिम लघुकथा संकलन सेव कर लिया है । आभार ।

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  7. पठनीय संकलन की सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई ।

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  8. बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति

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  9. मेरे लेख को चर्चा मंच के योग्य समझने के लिए आपका तहेदिल दिल से धन्यवाद🙏

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  10. भाव शून्य बहुत ही उम्दा रचना है

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