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मंगलवार, जुलाई 20, 2021

"प्राकृतिक सुषमा"(चर्चा अंक- 4131)

सादर अभिवादन 

आज  की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। 

(शीर्षक और भूमिका आदरणीया मीना भरद्वाज जी की रचना से)

भोर की वेला

सुरभित कुसुम

मृदु समीर

हिमाद्रि आंगन में

नैसर्गिक सुषमा


भोर की बेला का आनंद उठाते हुए चलते हैं आज की कुछ खास रचनाओं की ओर.....


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प्राकृतिक सुषमा【ताँका】



सावन भोर

धरती के पाहुन

धूसर घन

उतरे अम्बर से

छम छम बरसे


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समय दरिया में

 

समय दरिया में डूब न जाऊँ माझी

पनाह पतवार में जीवन पार लगाना है 

भावनाओं के ज्वार-भाटे से टकरा

अंधकार के आँगन में दीप जलाना है।


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क्लांत सूरज



दिन चला अवसान को अब 

नील  नभ पर स्वर्ण घेरा 

काल क्यों रुकता भला कब 

रात दिन का नित्य फेरा ।।

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दीपशिखा

दमन वायु की निर्दयता ने,

दीपशिखा का तोड़ा दम है।

सूखा दीपक, बुझ गयी बाती

अब तो पसरा गहरा तम है।

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लुटाता सुवास रंग

 
तृप्ति की शाल ओढ़े 
खिलता है हरसिंगार, 
पाया जो जीवन से 
बाँट देता निर्विकार !

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कुछ भी नहीं बदला (वैधव्य और रूढ़ियाँ)



 हमारे समाज में स्त्री जीवन से जुड़ी तमाम कुरीतियों का धीरे धीरे अंत हो रहा है,परंतु आज भी वैधव्य जीवन से जुड़ी अनेकानेक कुरीतियाँ या कहें तो रूढ़ियाँ मौजूद हैं, उनमें से एक कुरीति "मुंडन संस्कार" से मेरा जब साक्षात्कार हुआ, जिसे मेरी जैसी स्त्रियाँ ही सही ठहराएँ तो ये सोचना मजबूरी बन जाती है,कि क्या सही है क्या ग़लत... ? ऐसी ही कुरीति से आहत स्त्री को समर्पित मेरी ये कविता...



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'एक पत्र दोस्तों के नाम'




  मेरे प्यारे दोस्तों, मैं अपने एक सहयोगी राजनैतिक मित्र के साथ मिल कर पिछले एक मा

ह से एक नई राजनैतिक पार्टी बनाने की क़वायद कर रहा था। आपको जान कर खुशी होगी कि हम अपने इस अभियान में सफल हो गए हैं, खुशी होनी भी चाहिए😊। न केवल पार्टी की संरचना को मूर्त रूप दिया जा चुका है, अपितु इसका नामकरण भी किया जा चुका है।


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जीतने वाले कोई अलग काम नहीं करते.



बेहद सामान्य पृष्ठभूमि से एवं ग्रामीण अंचल से निकलकर इस पद तक पहुँचना वाक़ई तारीफ़ के क़ाबिल है और सभी के लिए प्रेरणास्पद है, हम सबको इन से प्रेरणा लेने की जरूरत है कुछ ऐसे उदाहरण मैं आज अपनी इस पोस्ट के माध्यम से आप लोगों को अवगत कराना चाहता हूं जो कि प्रिंट मीडिया के माध्यम से हम तक पहुंचे हैं. सफलता की अलग-अलग कहानियां जिन्होंने विषम परिस्थितियों में भी सफलता प्राप्त की है।

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काले मेघ




कच्ची माटी के गाँव में , 

जब काले-काले मेघ आते हैं, 
कृषक  के मन में उम्मीदों का दिया जलाते है । 
जब रंग - बिरंगी फसलों पर, 
काली घटा छा जाती है। 
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नन्ही बुलबुल

कच्ची उमर के पकते सपने
महक जाफ़रानी घोल रही है। 
घर-आँगन की नन्ही बुलबुल
हौले-हौले पर खोल रही है।


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चर्चा मंच परिवार की ओर से 
प्यारी बुलबुल को जन्म दिन की असंख्य शुभकामनायें,
परमात्मा उसे उसके हिस्से का खुला आकाश दे। 
आपको भी बेटी के जन्म दिवस की बहुत-बहुत बधाई श्वेता जी। 

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  • आज का सफर यही तक,अब आज्ञा दें 

    आप सभी स्वस्थ रहें,सुरक्षित रहें 

    कामिनी सिन्हा 


15 टिप्‍पणियां:

  1. हमेशा की तरह सभी अंक बहुत ही उम्दा हैं सभी को बहुत बहुत बधाई और मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए आभार🙏🙏🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर संकलन कामिनी जी। आज की चर्चा का शीर्षक मेरे सृजन से चयनित करने के लिए हार्दिक आभार । श्वेता जी को
    नन्ही बुलबुल के जन्मदिन की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर तथा शानदार सूत्रों से सज्जित अंक के लिए हार्दिक शुभकामनाएं प्रिय कामिनी जी,मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार एवम नमन, सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह..

    जवाब देंहटाएं
  4. प्रिय कामिनी जी,
    आज के अत्यंत मधुर संकलन में सराहनीय रचनाओं के बीच मेरी बिटुआ को आशीष देना मन भावुक कर गया।
    सभी रचनाएँ बहुत सुंदर है। आपके भावों की कोमलता और बौद्धिकता महसूस कर पा रहे है।

    सस्नेह शुक्रिया।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  5. ऋतु सौंदर्य जैसा मोहक शीर्षक ,
    शानदार संकलन,सभी रचनाएं बहुत आकर्षक पठनीय,सभी रचनाकारों को बधाई।
    मेरी रचना को चर्चा प्रवाह में शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार।
    सादर सस्नेह।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही बढ़िया प्रस्तुति।
    मेरे सृजन को स्थान देने हेतु बहुत बहुत शुक्रिया।
    सभी को बधाई।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुंदर संकलन,
    मेरी पोस्ट को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आद. कामिनी जी

    जवाब देंहटाएं
  8. चर्चा मंच पर उपस्थित होकर उत्साहवर्धन करने हेतु आप सभी स्नेहीजनों को हृदयतल से धन्यवाद एवं सादर नमस्कार

    जवाब देंहटाएं
  9. नमस्कार आ. कामिनी जी! मेरी रचना 'एक पत्र दोस्तों के नाम' को इस सुन्दर पटल पर स्थान देने के लिए आपका बहुत आभार! विलम्ब से उपस्थित होने के लिए खेद है। अभी कुछ व्यस्तता होने से रचनाओं को पढ़ नहीं सका हूँ, लेकिन शीघ्र ही यह लाभ लेना चाहूँगा।

    जवाब देंहटाएं

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