सादर अभिवादन।
सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
उत्तर प्रदेश विभिन्न कारणों से चर्चा में बना हुआ है क्योंकि वहाँ अगले वर्ष मार्च में विधानसभा चुनाव होने हैं। सभी दलों का ज़ोर ज़्यादा से ज़्यादा विधानसभा सीटें जीतने का रहता। केन्द्र सरकार का लालच यह रहता है कि इस प्रदेश से विधायकों द्वारा चुने जाने वाले 31 राजयसभा सदस्य सभी उसकी झोली में आ जाएँ ताकि उसका बहुमत राज्यसभा में मज़बूत हो सके तो उसका विशेष दख़ल उत्तर प्रदेश के चुनावों में देखा जाता है।
बहरहाल पंचायत चुनाव के आख़िरी दौर में ब्लॉक-प्रमुख पद के चुनाव की प्रक्रियाओं के दौरान उम्मीदवारी का पर्चा दाख़िल करने गई महिला का चीरहरण सत्ताधारी पार्टी के उग्र असामाजिक तत्त्वों द्वारा किया गया किंतु एक औपचारिक चर्चा के बाद इस महिला उत्पीड़न से जुडी बेहद संवेदनशील घटना पर देश में ख़ामोशी है जो समाज की असहाय स्थिति को दिखाती है। हिंसा और सांप्रदायिक नफ़रत के साथ जातीय कट्टरता भी पाँव पसार रही है।
उत्तर प्रदेश पर मीडिया के एकतरफ़ा फ़ोकस ने अनेक ज़रूरी चर्चाएँ राष्ट्रीय संवाद के परिदृश्य से ग़ाएब कर दीं हैं। इनमें सबसे ज़रूरी चर्चा मानसून की चर्चा है जो अब तक दिल्ली नहीं पहुँचा है।
उमस और महँगाई की मार से जूझती जनता को अगले हफ़्ते से संसद में हंगामा देखने को मिलेगा।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
आइए पढ़ते हैं विभिन्न ब्लॉग्स पर प्रकाशित कुछ रचनाएँ-
"कोई नही सुनता पुकार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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नदिया के जैसे, तू तृष्णा को हर ले
बादल के जैसे, अहं रिक्त कर ले !
फूलों के जैसे, तू महका दे परिसर
वृक्षों के जैसे, स्थितप्रज्ञ बन ले !
तू अब मौन हो जा, मनन में तू खो जा,
प्रभु से लगा के लौ, हो जा सुखी !
मन तू, हो जा रे, अंतर्मुखी !!!
अशोक के पेड़ का सहचर होना
कोयल गौरेया का ढेरों शब्द भरकर लाना
मीठे स्वर में प्रतिदिन सुबह थमा जाना
मन की प्रवृत्ति ही है कि वह
रखता है शब्दों का लेखा-जोखा
शब्दों का संचय प्रेम को पाने जैसा ही है
भूल बैठे उस समय को
गागरी पर साज बजता
बालु के शीतल तटों पर
मंडली का कल्प सजता
चाँद की उजली चमक में
झूम उठता मन दिवाना।।
--स्मृतियां | कविता | डॉ शरद सिंह
बेसन वाली कुरकुरी हरी मिर्च दिखने में मिर्च के पकोडे के समान दिखती है। लेकिन पकोड़े तले हुए एवं नरम रहते है और ये बिना तली हुई और कुरकुरी रहती है।
नहीं, मैं नहीं जाना चाहती कल ऐसे इतवार में
बुला रही हैं 90 के दशक की कुछ शामें
जो यादों में ठहरी हुई हैं
सुबह उठते ही क्लास, कोचिंग, पढ़ाई
और खेल का जाना-पहचाना सा मैदान
इंटरवल पर घण्टे की बीट से भागते मन
नोट्स के लिए तक़रार, प्यार भाईचारा
--न टूटता जो हौसलाक्या नहीं है पास तेरे जो मेरे है
कौन सी कैसी ग़रीबी ये घेरे है
भार जो तेरे कपालों पे चढ़ा
जा रही किसका बनाने भौन हो
ऐ सखी तुम कौन हो ?
रोचक लिंक्स से सुसज्जित चर्चा..
जवाब देंहटाएंI request you 🙏
हटाएंस्वतन्त्र आवाज ब्लॉग की👇पोस्ट एक बार ज़रुर देखें।
क्यों नहीं मिलती खुशी किसी को ईसानियत का फर्ज़ अदा कर?
बहुत ही सुंदर भूमिका और सराहनीय प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमौसम दिल्ली भी आएगा जल्द ही आएगा।
मेरे सृजन को स्थान देने हेतु बहुत बहुत शुक्रिया सर।
समय मिलते ही सभी रचनाएँ पढ़ती हूँ।
सादर नमस्कार।
सुप्रभात!
जवाब देंहटाएंआदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी,आज के सुंदर तथा पठनीय रचनाओं से सज्जित सार्थक अंक के लिए बहुत बधाई, मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार, सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह.
जी बहुत बहुत आभारी हूं आपका। पत्रिका के इस अंक का विवरण और दो ब्लॉगर साथियों की रचनाओं के प्रकाशन की सूचना इस मंच पर शेयर करने के लिए आभार व्यक्त करता हूं आदरणीय रवींद्र जी। खुशी की बात है कि हमारे ब्लॉगर साथी बहुत ही गहन लेखन कर रहे हैं और इस मंच पर बेहतर रचनाओं को देखने का अवसर मिलता है। आभार आपका।
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा अंक में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, रविन्द्र भाई।
जवाब देंहटाएंI request to all of you 🙏
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क्यों नहीं मिलती खुशी किसी को ईसानियत का फर्ज़ अदा कर?
All post is nice👍👍👍👍
जवाब देंहटाएंBut I request to all of you 🙏
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क्यों नहीं मिलती खुशी किसी को ईसानियत का फर्ज़ अदा कर?
भूमिका में विचारणीय विषय...दिल्ली की गर्मी ने तो कोहराम मचा रखा है। बेहतरीन लिंकों से सजी लाजबाब प्रस्तुति आदरणीय सर,सभी को हार्दिक शुभकामनायें एवं सादर नमन
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंकों से सजी उम्दा प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा, मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाओं का संकलन। मेरी रचना को चर्चामंच पर लेने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक हैं रचनाओं के कामिनी जी , आभार !
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