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रविवार, जुलाई 11, 2021

"कुछ छंद ...चंद कविताएँ..."(चर्चा अंक- 4122)

रविवारीय प्रस्तुति में आप सभी का बहुत बहुत स्वागत ।

आज हमारी  प्रस्तुति के अतिथि चर्चाकार हैं 
जाने-माने ब्लॉगर आदरणीय श्री पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा जी हैं । 

जानते हैं उनका का परिचय उन्हीं की जुबानी -

प्रथमतः मैं मंच के सभी नियमित चर्चाकारों व मंच संस्थापक को नमन करता हूँ,  
जिन्होंने आज की अतिथि चर्चाकार के रूप में मुझे आमंत्रित किया तथा पटल पर अपने पसंद की चंद रचनाएँ प्रस्तुत करने की स्वतंत्रता प्रदान की।
अत्यंत दुष्कर होता है, स्वतंत्रता प्राप्त होने कै बाद, उन सिद्धांतों व उपस्पकरों पर अमल करना। मेरे लिए भी, यह आसान नहीं था। किस रचना को चुनें किसी और को क्यूँ ना चुनें।अतः अन्य सभी रचनाकारों से क्षमा मांगते हुए, अपनी पसंद की अनेकों रचनाओं में से, मैं चंद रचनाएँ इस पटल पर रख रहा हूँ। वैसे बता दूँ कि मैं कोई साहित्यकार या विशेषज्ञ कवि नहीं हूँ और न ही मुझे कविताओं की विभिन्न विधाओं की कोई खास जानकारी है।मन में जो उपजता है, वही कागज पर उतर आता है। इसे आप कविता समझें ता कुछ और.....मूलतः मैं एक सरकारी बैंक में सहायक महाप्रबंधक के रूप में कार्यरत हूँ, अतः एकांटिंग व बैंकिग मेरी पहली रुचि है। दोनों बेटियाँ,  इंजीनियर हैं और कार्यरत भी, अतः बचे समय का अपनी क्रियात्मकता में उपयोग कर लेता हूँ। आपलोगों से प्रशंसा व प्यार पाकर, नियमित लिखता भी रहता हूँ, साथ ही आपकी रचनाओं को पढ़ता भी हूँ। जीवन के विविध रंगों को बुन कर खुश हो लेता हूँ और चाहता हूँ सभी खुश रहें।
--
बीसवीं सदी के महानतम दार्शनिक बर्टांड रसेल का कथन है कि.....
'एक उत्तम संसार हेतु ज्ञान, दयालुता, एवं साहस की आवश्यकता होती ह। इस हेतु भूत के लिए अनावश्यक प्रलाप, अथवा बहुत पहले अल्पज्ञानी व्यक्तियों द्वारा कहे गए शब्दों में अपनी सोच की स्वतंत्रता को बाँधे रखने की आवश्यकता नहीं है।'
अतः हम उन्मुक्त ख्याल से सार्वभौमिक सत्य को अपनाते हुए, एक स्वच्छ समाज को बनाने में अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान देते रहें।  यही हमारी मानवीय भूमिका का दायित्व है।
--
 "कुछ छंद ...चंद कविताएँ..." आ. रागिनी जी के ब्लॉग पर दिनांक 20.01.2012 को लिखी गई,  उनकी अन्तिम पोस्ट....मुझे आज भी विस्मित करती है.... कारण आप स्वयं पढ़ कर अंदाज लगा सकते हैं ......पेश है उनकी वही प्रस्तुति ..

पन्ना 

मैं लिखती थी.. जब तुम पढ़ते थे ..
ये सोचकर कि जो कह नहीं पाती.. वो बातें पन्नो पर पड़ी मिल जाए तुमको..
वो शब्द जो बन नहीं पाते.. जब बोलती हूँ बहुत.. पर कह नहीं पाती..
वो सब सुन लोगे मेरी चुप्पी कि आवाज़ में तुम..
अब न बातें हैं.. ना शब्द .. ना कोई किस्से.. 
अब लिखना भी क्या लिखना.. न रही मैं.. न हम ...
--
न जाने क्यूँ ऐसा प्रतीत होता है कि अवश्य ही कोई दुर्घटना घटी होगी कि लेखिका ने लिखना ही बन्द कर दिया।।।।। ईश्वर ही जाने.....
--
एक और बात : 
दिनांक 11.05.2012 को, उक्त रचना पर एक प्रतिक्रिया और भी अद्भुत लगी....
One of the Replies, on this poem....that touched me most....
प्रतिक्रिया अंग्रेजी के अक्षरों में अंकित है, और उसे इसी रूप में उद्धृत करना सही लग रहा है। आप भी पढ़िए.....और महसूस कीजिये। 
Na tum sun paye, na main kah paaya...
sawaal kar na sake, jawaab bhi mil na paaaya...
socha...kisi anjaan se hi pooch lenge sawaal apna...
dekha ki door koi khada tha, shayad sach, shayad sapna...
Koi dekh raha tha meri or, bhag k pahuncha paas uske...
Aur fir maine apne aap ko apne saamne khada paaya...
ab na sawaal hai, na jawaab hai...
bas mai hun...aur mera aks (reflection) hai :)
और फिर रागिनी जी की आखिरी प्रतिक्रिया कुछ इस तरह आती है.....
Ragini - May 15, 2012 at 8:33 AM
ohho ho :) dtz some reply!!!
jawab dhoondte hain kahin aur desh mein..
tu khud tere har ek sawal ka jawab hai..
इसके बाद उन्होंने उक्त ब्लॉग पर कुछ भी नहीं लिखा......
http://kavyarag.blogspot.com/2012/01/blog-post_20.html?m=1

पेश हैं  इनकी पसंद के कुछ लिंक्स -
--
रविवार की प्रस्तुति हेतु मेरी पहली पसंद

 "एकलव्य" ब्लॉग से....

मैं 'निराला' नहीं 
प्रतिबिम्ब ज़रूर हूँ 
'दुष्यंत' की लेखनी का 
गुरूर ज़रूर हूँ 
'मुंशी' जी गायेंगे मेरे शब्दों में 
कुछ दर्द सुनायेंगे 
सवा शेर गेहूँ के 
एक बार मरूँगा पुनः 
साहूकार के खातों में 
भूखा नाचूँगा नंगे 
तेरे दरवाज़ों पे 
अपनी ही लेखनी का 
एक फ़ितूर ज़रूर हूँ   
--
"मकरंद" ब्लॉग से आ. निश्छल जी की रचना...
छवि की छवि, छवि से परिभाषित
मानक कुछ ऐसे निश्चित हैं,
सोलह आने छवि निर्मल हो
मगर, विभूषित अत्यंचित हैं।

आभूषण का मेल नहीं यदि, सौम्य नहीं गर संरचना हो
संज्ञाओं के जप करने की, नहीं महत्ता है हमदम...।
--
 "क्षितिज" ब्लॉग से आ. रेणु जी की प्यारी सी रचना....
क्यों मोह रहे विश्व वैभव का 
जग में अब विशेष रहा क्या ?
नहीं कामना भीतर कोई 
पा तुम्हें पाना शेष रहा क्या ?
मैं अकिंचन हुई बडभागी 
क्यों रहूँ विकल अधीर सखा !
--
 "गूंगी गुड़िया" ब्लॉग से 
आ. अनीता सैनी जी की प्यारी सी रचना.....
थक-हारकर
 जब सो जाती है पवन
कुछ भूली-बिसरी स्मृतियाँ 
तुषार बूँदों में भींगे 
मिलने आ ही जाते हैं 
कुछ अविस्मरणीय दृश्य 
हाथों पर धरे अपने 
 अनमोल उपहार 
सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरे लिए।
--
 "मन की वीणा" ब्लॉग से
 आ. कुसुम कोठारी "प्रज्ञा" जी की श्रेष्ठ रचनाओं में से एक...
ओ गगन के चँद्रमा , मैं शुभ्र ज्योत्सना तेरी हूँ ,
तू आकाश भाल विराजित, मैं धरा तक फैली हूँ।

ओ अक्षुण भास्कर, मै तेरी उज्ज्वल प्रभा हूँ ।
तू विस्तृत नभ आच्छादित, मैं तेरी प्रतिछाया हूँ।

ओ घटा के मेघ शयामल, मैं तेरी जल धार हूँ,
तू धरा की प्यास हर , मैं तेरा तृप्त अनुराग हूँ ।
--
 "चिड़िया" ब्लॉग से
 आ. मीना शर्मा जी की बेहतरीन रचना...
जीवन की लंबी राहों में
पीछे छूटे सहचर कितने !
कितनी यात्रा बाकी है अब ?
कितना और मुझे चलना है ?

कितना और अभी बाकी है, 
इन श्वासों का ऋण आत्मा पर !
किन कर्मों का लेखा - जोखा,
देना है विधना को लिखकर !
अभी और कितने सपनों को,
मेरे नयनों में पलना है ?
कितना और मुझे चलना है ?
--
 "विश्वमोहन उवाच" से ली गई यह रचना...
कई दिनों से रूठी मेरे,
अंतर्मन की कविता।
मनहूसी, मायूसी, मद्धम,
मंद-मंद मन मीता।

शोर के अंदर सन्नाटा है,
शब्द, छंद सब मौन।
कांकड़-पाथर-से भये आखर,
भाव हुए हैं गौण।
--
 "सुनहरे एहसास" पर
 निवेदिता दिनकर जी की सारगर्भित रचना...
कहाँ हर बार फसल पक पाती है ??!! 
कहाँ मुरादें ??!!
और 
हर बार क्या पंक्तियाँ पूरी हो पाती हैं ? 
चाय के ... 
भाप पर तुम्हारी आकृति बनाने की मिथक कोशिश ...
--
और आज की प्रस्तुति के अंत में ... 
एक बोर आदमी का रोज़नामचा ब्लॉग से एक प्रेरक ख्याल लिए, 
मुकेश इलाहाबादी जी की बेहतरीन रचना...
 मैं
कोई सूरज थोड़े ही हूँ 
कि दिन भर की थकन के बाद 
रात मुझे ओढ़ के सो जाए 
मुझे तो चमकना होता है 
हर रोज़ 
हर रात 
आकाश के उत्तरी ध्रुव पे 
और निहारना होता है 
अपनी धरती को 
जो लाखों प्रकाशवर्ष की दूरी पे 
नाच रही होती है 
अपना सतरंगी आँचल ओढ़े 
मस्ती से 
आवारा चाँद के लिए 
--
 एक खास बात....
कि अपनी आत्मा को मृत न होने दें,  
क्योंकि आत्मा मरती नहीं, सिर्फ, भटकती है....
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः ।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ।।

अतः आत्मा के निकलते
आत्मा को खुश करने वाले कार्यों को छोड़कर शरीर को खुश करने वाले 
कार्यों को प्राथमिकता न दें ।

 सहयोग व मार्गदर्शन वांछित है
 सादर नमस्कार सर।

@पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 

22 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ख़ूब
    यह तरीक़ा भी बहुत बढ़िया लगा
    अतिथि चर्चाकार के रूप में पुरुषोत्तम जी का स्वागत है

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अपनी टिप्पणी द्वारा इस चर्चा को और रोचकता प्रदान करने व जीवन्त बनाने हेतु हृदयतल से आभारी हूँ।

      हटाएं
  2. अतिथि चर्चाकार के रूप में आदरणीय पुरूषोत्तम सिन्हा जी
    द्वारा प्रस्तुत अति सुन्दर सूत्रों से सजा लाजवाब व बेहतरीन
    चर्चा संकलन ।

    जवाब देंहटाएं
  3. नमस्कार पुरुषोत्तम जी,
    चर्चा मंच पर हृदयतल से स्वागत है आपका
    "अत्यंत दुष्कर होता है, स्वतंत्रता प्राप्त होने के बाद, उन सिद्धांतों व उपस्पकरों पर अमल करना.... किस रचना को चुनें किसी और को क्यूँ ना चुनें"
    सहमत हूँ आपके इस कथन से।
    आज की चर्चा में बेहतरीन चुनिंदा रचनाओं का संग्रह किया है आपने....इसके लिए आपको बहुत-बहुत शुभकामनायें....सभी रचनाकारों को भी हार्दिक बधाई।
    भूमिका से आपका व्यक्तिगत परिचय पाकर अच्छा लगा। "रगिनी जी "के ब्लॉग तक ले जाने के लिए भी शुक्रिया। हमारे इस ब्लॉग जगत के राह में चलते-चलते कब कोई कहाँ और क्यों रूक जाता है पता ही नहीं चलता.....और उस अनजान दोस्त के साथ क्या गुजरा ये जानने को भी मन बेचैन हो जाता है। लेकिन इस आभासी दुनिया की एक हद है जहाँ से हम कुछ नहीं कर पाते।
    एक बार फिर से इन चुनिंदा रचनाओं को साझा करने के लिए हृदयतल से धन्यवाद एवं नमन

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. वस्तुतः रागिनी जी के ब्लॉग की अन्तिम रचना या लेखन कहें, मुझे झकझोर कर रख देती है। ऐसा महज संयोग नहीं हो सकता।

      ब्लॉग जगत में हो रही इस तरह की अद्भुत घटनाएँ, अविस्मरणीय हैं तथा ये इस तरफ भी इंगित करती हैं कि ब्लॉग की प्रविष्टियाँ महज शब्दों का समेकन ही नहीं, मन का अवलोकन भी है......

      अपनी टिप्पणी द्वारा इस चर्चा को और रोचकता प्रदान करने व जीवन्त बनाने हेतु हृदयतल से आभारी हूँ।

      हटाएं
  4. "हम उन्मुक्त ख्याल से सार्वभौमिक सत्य को अपनाते हुए, एक स्वच्छ समाज को बनाने में अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान देते रहें। यही हमारी मानवीय भूमिका का दायित्व है।" बहुत सुंदर संदेश को अपनी भूमिका में समेटती आज की आपकी प्रस्तुति सराहना से परे और आपके मन में बसी मेरी रचना मेरे लिए एक मोहक उपहार!बधाई और आभार!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपसे हुई एक संक्षिप्त मुलाकात और रचनाओं के माध्यम से जुड़ाव अविस्मरणीय है। आपकी लेखनी को नमन है हमारा, जो कि आंचलिक खुश्बू भी ले आती है कभी-कभार।

      अपनी टिप्पणी द्वारा इस चर्चा को और रोचकता प्रदान करने व जीवन्त बनाने हेतु हृदयतल से आभारी हूँ।

      हटाएं
  5. बहुत ही सुंदर रचनाओं से सुसज्जित मंच सभी रचनाएँ सराहनीय।
    मेरे सृजन को सम्मिलित करने हेतु बहुत बहुत शुक्रिया सर।
    सभी को हार्दिक बधाई।
    आपका बहुत बहुत आभार सर मंच की शोभा बढ़ाने हेतु।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मैं आपकी सरस राजस्थानी कविता को शामिल नहीं कर पाया, परन्तु आपकी उपर्युक्त रचना में आपसे अपने प्रियतम की मौलिक व नैसर्गिक प्रेम की अभिव्यक्ति को मैं छोड़ न पाया।।।।।

      अपनी टिप्पणी द्वारा इस चर्चा को और रोचकता प्रदान करने व जीवन्त बनाने हेतु हृदयतल से आभारी हूँ।

      हटाएं
  6. आदरणीय पुरुषोत्तम सिन्हा जी, आपकी अतिथि रचनाकार के रूप में बनाए गए प्रभावशाली रचनाओं के संकलन के लिए बहुत बहुत बधाई।
    मेरी यह रचना आपको स्मरण रही, इससे अभिभूत भी हूँ और आनंदित भी। आज चर्चामंच पर इसे पाना सुखद आश्चर्य रहा। हृदयपूर्वक आभार !
    एक और बात,अधिकतर ब्लॉगर साथियों के जीवन एवं कार्य, सुख दुःख के बारे में हमें पता नहीं चलता। इस प्रस्तुति के बहाने आपके परिवार एवं कार्य के बारे में जानकर अच्छा लगा। शुभकामनाएँ।
    अकाउंटिंग के अंकों और आँकड़ों को सँभालते हुए, आप इतनी सुंदर और भावनाओं से ओतप्रोत रचनाओं का सृजन कैसे कर लेते हैं यह मेरे लिए किसी रहस्य से कम नहीं है।
    अपने को तो अंकों से एलर्जी है, गणित हमेशा कच्चा रहा। स्कूल में भी, जीवन में भी।
    इस यादगार अंक हेतु पुनः बहुत बहुत धन्यवाद।

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    1. आदरणीया, आपकी उपर्युक्त रचना ने मुझे अत्यधिक प्रभावित किया है। जब भी पढ़ता हूँ , सिहर उठता हूँ कि "कितना और मुझे चलना है"... एक अनन्त राह या उम्र की दहलीज तक मात्र..?

      अपनी टिप्पणी द्वारा इस चर्चा को और रोचकता प्रदान करने व जीवन्त बनाने हेतु हृदयतल से आभारी हूँ।

      हटाएं
  7. आत्मा को खुश करने वाले कार्यों को छोड़कर शरीर को खुश करने वाले
    कार्यों को प्राथमिकता न दें ।
    यह पंक्ति याद रखने लायक है। काश ! हम ऐसा कर पाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  8. विशेष अतिथि पुरुषोत्तम जी की विशेष प्रस्तुति में स्वयं की रचना देख अभिभूत हूँ ,
    बहुत बहुत आभार आपका मुझे इस यात्रा में शामिल करने के लिए।
    बहुत सार्थक विस्तृत भूमिका सह परिचय मनाभिराम ।
    सभी सूत्र बेहतर से बेहतरीन।
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
    आज का सफर शानदार रहा।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीया, आपकी रचनाओं पर टिप्पणी करना मेरे जैसे साधारण व्यक्तित्व के बस की नहीं है। सिर्फ, पढ़ता हूँ और कुछ सीखता हूँ। ।।।

      अपनी टिप्पणी द्वारा इस चर्चा को और रोचकता प्रदान करने व जीवन्त बनाने हेतु हृदयतल से आभारी हूँ।

      हटाएं
  9. बहुत ही सराहनीय प्रस्तुति

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    उत्तर
    1. आदरणीया भारती जी, समयाभाव की वजह से आपकी रचनाएँ शामिल न कर सका , हमें खेद है। अन्यथा, यह अंक और भी रोचक होता।

      अपनी टिप्पणी द्वारा इस चर्चा को और रोचकता प्रदान करने व जीवन्त बनाने हेतु हृदयतल से आभारी हूँ।

      हटाएं
  10. आदरणीय पुरुषोत्तम जी , सस्नेह अभिवादन और अतिथि चर्चाकार के रूप में इस सुंदर प्रस्तुति के साथ आपका अभिनन्दन |आपके शानदार प्रस्तुतीकरण के आगे निशब्द हूँ |जीवन दर्शन को उद्घाटित करती सुंदर भूमिका सहित , साथी रचनाकारों की कुछ रचनाओं में अपनी रचना पाकर खुश भी हूँ हैरान भी | आपके परिवार और जीवन उपलब्धियों के बारे में जानकार अच्छा लगा | एक सुदक्ष कवि होने के साथ, समीक्षात्मकता का हुनर लिए , दायित्वपूर्ण और उच्च पद गरिमा बढाते हुए अपनी रचनात्मकता को शिखर तक ले जाना आसान काम नहीं | एक संतुलन के साथ ऐसा करना निसंदेह सराहनीय है | आज की प्रस्तुत सभी रचनाएँ सुंदर और भाव पक्ष की धनी हैं | युवा कवियत्री रागिनी जी के ब्लॉग पर पहुंचकर अच्छा लगा पर , इस थमे ब्लॉग ने मायूस किया | कितना अच्छा हो ये ब्लॉग फिर से सक्रिय हो | एक और सक्रिय ब्लॉग पर आजकल सूनापन व्याप्त है | मकरंद की सुगंध बिखेरने वाले हमारे प्रिय कवि अमित निश्छल भी गायब हैं | उनका लेखन अपनी मिसाल आप है | उम्मीद है आपके बहाने वे ब्लॉग पर जल्द वापसी करेंगे बाकि दिग्गजों की क्या कहूँ वे सदाबहार हैं |आपको ढेरों शुभकामनाएं और बधाई इस अविस्मरनीय चर्चा के लिए |

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    उत्तर
    1. आदरणीया रेणु जी, सच तो यह है कि "शब्दनगरी" पटल से ही आप मेरी गुरु व प्रेरणाश्रोत रहीं हैं। मुझे याद है, जब गूगल+ बन्द हो रहा था तब आपने अपनी कुछ टिप्पणियों को मेरे ब्लॉग पर, यह कहते हुए, पुनः उद्धृत किया था कि एक कवि हेतु उनकी रचनाओं पर प्राप्त टिप्पणी, किसी पुरस्कार व निधि के समान होती है।
      और इससे भी अलग कि, आपकी रचनाएँ एक मील कै पत्थर की समान हैं, इसे कैसे भूल सकते हैं हम।
      और सबसे बड़ी बात कि ब्लॉग जगत में कवि ब्लॉगर को, अपनी टिप्पणियों व आलेख के माध्यम से, आपसे ज्यादा शायद ही किसी और ने प्रेरित किया हो।

      पुनः आज भी अपनी टिप्पणी द्वारा इस चर्चा को और रोचकता प्रदान करने व जीवन्त बनाने हेतु हृदयतल से आभारी हूँ।

      नमन है आपको

      हटाएं
  11. एकसे बढ़कर एक सुंदर,रोचक रचनाओं से सज्जित सराहनीय और पठनीय अंक, बहुत शुभकामनाएं पुरुषोत्तम जी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अपनी टिप्पणी द्वारा इस चर्चा को और रोचकता प्रदान करने व जीवन्त बनाने हेतु हृदयतल से आभारी हूँ आदरणीया जिज्ञासा जी।

      हटाएं

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