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मंगलवार, जुलाई 13, 2021

"प्रेम में डूबी स्त्री"(चर्चा अंक 4124)

 सादर अभिवादन 

आज  की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। 

(शीर्षक और भुमिका आदरणीया श्वेता सिन्हा जी की रचना से)

अनगिनत रूप धारण करती है
प्रेम के...

बाँधकर रखती है
अपने दुपट्टे की छोर से
भावनाओं की महीन चाभियाँ
और
बचाए रखती है
सृष्टि में प्रेम के बीज...।
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"स्त्री"
परमात्मा के बाद सृष्टि में यदि कही प्रेम बीज है तो वो नारी के हृदय में ही है...
 वो प्रेम जिसे वो सिर्फ देना जानती है....
श्वेता जी ने बड़ी बारीकी से "प्रेम में डूबी स्त्री की आत्मा" को उकेरा है 
अपनी इस सुंदर रचना में 
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 प्रेम में डूबी स्त्री----
 प्रसिद्ध प्रेमकाव्यों की
बेसुध नायिकाओं सी 
किसी तिलिस्मी झरने में
रात-रातभर नहाती हैं
पेड़ की फुनगियों पर टँकें
इंद्रधनुष की खुशबू 
समेटकर अंजुरी से
मलकर देह पर
मत्स्यगंधा सी इतराती हैं।

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प्रेम में डूबी "स्त्री की आत्मा" प्रेम तो सदैव बाँटती है और परन्तु 
स्वयं उसे हर पल प्रेम पाने के लिए प्रतीक्षारत रहना होता है 
प्रतीक्षा

हो जाने दो, पलों को, कुछ और संकुचित,
ये विस्तार, क्यूँ हो और विस्तृत!
हो चुका आहत, बह चुका वक्त का रक्त,
रहूँ कब तक, मैं प्रतीक्षारत!

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रत्ना की तरह जीवन भर पीड़ा ही सहती है... 

राग-विराग -15..



भौजी ,भौजी हो ...कहाँ गईं ? ..देखो तो तुम्हारे लिये क्या आया है ? साड़ी के पल्ले से भीगे हाथ पोंछती रत्नावली आते-आते बोली,'बड़े उछाह में हो देवर जी ,ऐसा क्या ले आये हो? देखा, दुआरे नन्ददास खड़े ,दोनों हाथों में ग्रंथ सँभाले ,रत्ना की गति में वेग आगया - 'तैय्यार हो गई ,वाह देवर जी कब से आस लगाए हूँ ..कुछ अंश पढ़े थे,टोडर भैया ने कहा था,प्रतियाँ तैयार करवा रहा हूँ पूरी होने पर ,पहले मुझे भेजेंगे ...'कहती-कहती वह आगे बढ़ आई ,


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प्रेम,तपस्या त्याग करने के वावजूद अपने ही पति द्वारा श्रापित भी होती है ऋषिवर को ग्लानि हुई भी तो क्या 
उसके मान-सम्मान और सुख के दिन तो उससे      छीन  लिये गये....

गौतम की आत्म-ग्लानि



यादों में उतरी अहल्या,

शापित इंद्र सहस्त्र-योनि तन।

गहन ग्लानि में गड़ा चाँद था,

कलंक से कलुषित कृष्ण गगन।


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"छोड़ा यहाँ बाँधा वहाँ 
मुक्ति से डरता है जहां"

विचारणीय.....मुक्ति तो परमात्मा के पास ही है 

तो क्यूँ ना प्रेम की लौ उन्ही से लगाए... 

चंद ख़्याल



पाया हुआ है सब जो खोजते हैं हम 

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नहीं तो आखिरी में पछता कर यही कहना होगा......

ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है . . .

हर एक जिस्म घायल, हर एक रूह प्यासी; निगाहों में उलझन, दिलों में उदासी 
ये दुनिया है या आलम-ए-बदहवासी, ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है 

यहाँ इक खिलौना है इंसां की हस्ती, ये बस्ती है मुरदापरस्तों की बस्ती 
यहाँ पर तो जीवन से है मौत सस्ती, ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है 

ये दुनिया जहाँ आदमी कुछ नहीं है; वफ़ा कुछ नहीं, दोस्ती कुछ नहीं है 
जहाँ प्यार की कद्र ही कुछ नहीं है, ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है

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मैं धीमी आवाजों को अभिव्यक्ति दिलाने लिखता हूँ -



आज सुबह दौड़ते हुए मेरे पास से एक नौजवान आगे निकला गया उसके हावभाव से लग रहा है कि वह दौड़ने में नौसिखिया है , नतीजा थोड़ी देर बाद ही वह हांफने लगा और वाक करने लगा ! तब मैंने उसे समझाया कि हांफते हुए दौड़ना जान ले सकता है , हांफने का मतलब तुम्हें सही पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिल पा रही अतः हृदय पर अधिक दवाब पड़ रहा है ! मेरे साथ दौड़ो और दौड़ते हुए मेरी तरह साँस लो , हर गिरते उठते कदम पर सांस खींचना और छोड़ना शामिल होना चाहिए जिस दिन कदम ताल के साथ सांस लेना और छोड़ना सीख गए उस दिन तुम कितनी ही दूरी दौड़ोगे , थकोगे नहीं !
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  आज की नारी का एक रूप. ‌




बचपन से घर में सब काम किए तो कभी कोई काम करने से परहेज नहीं रहा। 
चाहे गाय - भैंस दुहना हो या उनका गोबर हटाना हो,उपले थापना हो या संजा बनाना हो।
राजदूत चलाकर पिता के साथ खेत जाना हो या भाई के साथ गाड़ी रिपेयरिंग के लिए झुकानी हो। 
पापड़ के गोले के लिए घन चलाना हो या छत पर दौड़ दौड़ कर आलू चिप्स फैलाना हो।

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आज का सफर यही तक,अब आज्ञा दें 

आप सभी स्वस्थ रहें,सुरक्षित रहें 

कामिनी सिन्हा 

12 टिप्‍पणियां:

  1. चर्चा,सीमित और विविधता पूर्ण रही - आपको धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. प्रिय कामिनी जी,
    स्नेहिल नमस्कार।
    आपके स्नेह से अभिभूत हूँ। मेरी रचना को मान देने के लिए बहुत बहुत आभारी हूँ।
    सभी रचनाएँ पढ़ी। बेहतरीन रचनाओं से सजी अपनत्व भरा अंक बहुत अच्छा लगा।
    सस्नेह शुक्रिया।

    जवाब देंहटाएं
  3. संकलन वैविध्यपूर्ण है। मेरे आलेख को स्थान देने हेतु आपका आभार आदरणीया कामिनी जी।

    जवाब देंहटाएं
  4. एक से बढ़कर एक सुंदर पठनीय रचनाओं से सजा मंच, आभार कामिनी जी!

    जवाब देंहटाएं
  5. सुंदर भूमिका से आगाज करता अत्यंत सुन्दर संकलन। बधाई और आभार।

    जवाब देंहटाएं
  6. सुंदर भूमिका के साथ बहुत ही सुंदर प्रस्तुति।
    सभी को बधाई एवं शुभकामनाएँ।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  7. बेहतरीन लिंकों से सजी उम्दा प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  8. लाजवाब तथा विविधतापूर्ण रचनाओं से सजा आज का अंक मन मोहक और पठनीय लगा प्रिय कामिनी जी,आपको बहुत सारी शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।

    जवाब देंहटाएं
  9. चर्चा मंच पर उपस्थित होकर उत्साहवर्धन करने हेतु आप सभी स्नेहीजनों को तहेदिल से शुक्रिया एवं सादर नमस्कार

    जवाब देंहटाएं
  10. अभिभूत हूँ इस विविधतापूर्ण विश्लेषणात्मक प्रस्तुति को पढकर.....

    जवाब देंहटाएं

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