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रविवार, जुलाई 04, 2021

"बच्चों की ऊंगली थामें, कल्पनालोक ले चलें" (चर्चा अंक- 4115)

  •   सादर अभिवादन 

    आज  की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। 

  • (शीर्षक और भूमिका आदरणीय संदीप जी की रचना से )

  • मोबाइल और आईपेड के जंजाल में उलझ बच्चें समझदार हो गए हैं...

  •  लेकिन क्या बचपना बाकी है उनका... 

  • एक गंभीर विषय की ओर ध्यान आकर्षित कर रहें है आ. संदीप जी 
  • बच्चों को उनकी कल्पना की दुनिया से बाहर लाकर हमनें सही किया या गलत 
  • एक बार विचार करना जरूरी है.... 
  • चलते हैं आज की कुछ खास रचनाओं की ओर... 
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  • गर्मी ने चारो तरफ त्राहि मचा रखा है अब ऐसे में शरीर को कैसे स्वस्थ रखे... 
  • समझा रहें हैं आ. शास्त्री सर... 

  • बालकविता "गर्मी को अब दूर भगाओ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री)

  • --
    कड़ी धूप को कभी न झेलो।
    भरी दुपहरी में मत खेलो।।
    --
    ताजा जल से रोज नहाओ।
    गर्मी को अब दूर भगाओ।।

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बच्चों की ऊंगली थामें, कल्पनालोक ले चलें



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जब दिल खुदा का आशियाना बन जाता है...

तो हर दर्द रुखसत हो जाता है...

आ. अनीता जी की लाजबाब अभिव्यक्ति...

दिल को अपने क्यों नहीं राधा करें


जिंदगी ने नेमतें दी हैं हजारों 

आज उसका शुक्रिया दिल से करें, 

चंद लम्हे ही सदा हैं पास अपने 

क्यों न इनसे गीत खुशियों के झरें !


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मन, क्यूँ भरा-भरा सा है...

गीत, सावन ने, अभी तो, गाया जरा सा है!
पुरुषोत्तम जी की बेहद खूबसूरत रचना....

 मन भरा-भरा





यकीं था कि, पाषाण है, ये मन मेरा!
सह जाएगा, ये चोट सारा,
झेल जाएगा, व्यथा का हर अंगारा,
लेकिन, व्यथा की एक आहट,
पर ये भर्राया सा है!


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कभी-कभी खामोशियाँ भी बहुत कुछ कह जाती है...
मनोज जी सुना रहे है.....

खामोशियाँ



खामोशियाँ कह गयी लब कह ना पाए जो बात l
लफ्ज अल्फाज बिखर उठे पा कायनात को पास ll 

खत नयनों के छलक पढ़ने लगे कलमों के अंदाज़ l
गूँज उठी अजान साँझ की लिए कई सिंदूरी पैगाम


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निमज्जित वोसभी जलपोत, जो कभी उभरन पाएंगे....
आ. शांतनु सान्याल जी की सुंदर रचना....

जलमग्न प्रासाद - -



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" महँगी, हाइटेक डिग्रियाँ ” क्या इस कलयुग में बेरोजगारी से मुक्ति दिला पा रही है...कलयुग की महिमा

रवि ने जैसे ही आलमारी बंद की तो अंदर से फुसफुसाहट सुनाई दी,

 “य..यह किसकी दस्तक है? कौन हो सकता है?” 




-----------------सावन तो ना जाने कब बरसेगा तब तक... आशा दी के इस सुंदर गीत से ही तन-मन भिगो ले...आगमन सावन का

सावन गीत में मधुर संगीत

ऊपर से ढोलक की थाप

खूबसूरत समा का एहसास कराती

 कजरी मन को भाती |

हरियाली चहु ओर धरा पर 


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इंटरटेनमेंट  वैल्यू पर एक बेहतरीन चर्चा करते आ. विजेन्द्रनाथ सर 

पाठकों से मन की बात भाग 2



अश्लीलता या इंटरटेनमेंट वैल्यू : भाग 2
मैं कथा साहित्य के बारे में चर्चा कर रहा हूँ।
पिछले लेख में मैंने एंटरटेनमेंट वैल्यू के नाम पर परोसी जाने वाली अश्लीलता का उल्लेख किया था। मैंने यह भी लिखा था कि पाठक या दर्शक जो भी चाहता है, उसे ही लिखा जाए क्या?



आज का सफर यही तक,अब आज्ञा दें 

आप सभी स्वस्थ रहें,सुरक्षित रहें 
कामिनी सिन्हा 

9 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात ...। आभारी हूँ कामिनी जी...। मेरे लेखन को मान देने के लिए आभार...। सोचता हूँ बहुत कुछ जो टूटा है उसमें की चटखन भी शामिल है... उसका शोर नहीं होता... अलबत्ता पूरी उम्र उसके किरचें आपको चुभते हैं...।

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभ प्रभात व सुन्दर सी इस विविधताओं से भरी प्रस्तुति हेतु बधाई।।।।।

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह!बेहतरीन प्रस्तुति आदरणीय कामिनी दी।
    सराहनीय अंदाज़ में।
    हार्दिक बधाई।
    समय मिलते ही सभी रचनाएँ पढूँगी।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. आदरणीया कामिनी जी, इस चर्चा मंच में अच्छी रचनाओं का चयन किया है आपने। जीवंत चर्चा के लिए साधुवाद!--ब्रजेंद्रनाथ

    जवाब देंहटाएं
  5. आप सभी को हृदयतल से धन्यवाद एवं सादर नमस्कार

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुन्दर और लाजवाब प्रस्तुति कामिनी जी ! सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
  7. सुंदर तथा रोचक रचनाओं का संकलन । सुंदर प्रस्तुति के लिए हार्दिक शुभकामनाएं प्रिय कामिनी जी।

    जवाब देंहटाएं
  8. देर से आने के लिए खेद है, सुंदर भूमिका और सार्थक रचनाओं से सजी सुंदर चर्चा, आभार मुझे भी इसका हिस्सा बनाने के लिए कामिनी जी !

    जवाब देंहटाएं

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