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शुक्रवार, जुलाई 16, 2021

"चारु चंद्र की चंचल किरणें" (चर्चा अंक- 4127)

सादर अभिवादन ! 

शुक्रवार की चर्चा में आप सभी प्रबुद्धजनों का पटल पर हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन !

आज की चर्चा का आरम्भ स्मृति शेष मैथिलीशरण गुप्त जी की लेखनी से निसृत "पंचवटी" के

काव्यांश से -

"चारुचंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में,

स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बरतल में।

पुलक प्रकट करती है धरती, हरित तृणों की नोकों से,

मानों झीम रहे हैं तरु भी, मन्द पवन के झोंकों से॥"


【 चर्चा का शीर्षक "चारु चंद्र की चंचल किरणें" 】

--

आइए अब बढ़ते हैं आज की चर्चा के सूत्रों की ओर-

गीत "मेरा नमन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

जो हैं कोमल-सरल उनको मेरा नमन।

जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन।। 


पेड़ अभिमान में थे अकड़ कर खड़े,

एक झोंके में वो धम्म से गिर पड़े,

लोच वालो का होता नही है दमन।

जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन।।

***

पगलां माही कांकर चुभया 

कुआँ जोहड़ा ताल-तलैया

बावड़ थारी जोव बाट

बाड़ करेला पीला पड़ ग्यो 

 सून डागल डाली खाट

मिश्री बरगी  बातां थारी 

नींद  होई गैर पीया।

***

सुखदाई सावन के साथी, कुछ दुखदाई पाहुन

* इस मौसम में जठराग्नि मंद पड़ जाती है। रोज एक चम्मच अदरक और शहद की बराबर मात्रा लेने से पेट को भोजन पचाने में सहायता मिल जाती है। दुआ देता रहेगा !    


* बदलते मौसम और पल-पल बदलते तापमान के कारन सर्दी-खांसी-जुकाम आम बात होती है, इसके लिए एक चम्मच हल्दी और शहद गर्म पानी के साथ लेने से बहुत राहत मिलती है। 

***

संस्मरण पौड़ी के #2: और पत्थर बरसने लगे

इन खेतों को देखता हूँ तो इनसे जुड़ी कई यादें मन में ताज़ा हो जाती हैं। एक याद ऐसी भी जब आसमान से पत्थर बरसने लगे थे। यह सब हुआ कैसे यह बताने से पहले इन खेतों का परिचय आपको दे दूँ।

यह सभी खेत मेरे घर के नीचे हैं और आस पास के गाँव जैसे कांडे, पौड़ी गाँव के लोगों के  हैं।

***

"ऐसा क्यों" (लघुकथा)

आकाश में उड़ रही दो चीलों में से एक जो भूख से बिलबिला रही थी, धरती पर पड़े मानव-शरीर के कुछ लोथड़ों को देख कर नीचे लपकी। उन लोथड़ों के निकट पहुँचने पर उन्हें छुए बिना ही वह वापस अपनी मित्र चील के पास आकाश में लौट आई।  

***

हाइकु-१

जेठ मध्याह्न ~ 

बंजर भू पे खड़ी

वज्रकंटका

जुहू चौपाटी~

गोल गप्पे से आई

पुदीना गंध

***

यदि हो जाये ऐसी #बगावत !

सुबह का पता न शाम का ,

खाने की सुध न आराम का ,

लगातार सर झुकाये बैठे हो ,

#स्क्रीन पर नजर गड़ाये बैठे हो ,


कभी दर्द की शिकायत ,

तो उससे निजात की कवायद ,

***

दृष्टि, ईश्वर की सबसे अनमोल देन...!

कुछ दिन पहले एक फिल्म देखी थी। दृष्टिहीन बेटी, ब्रैल में कुछ पढ़ रही है। तभी माँ बेटी के कमरे में प्रवेश करती है, और उसे पढ़ता देख लौटने लगती है। बत्ती जली छोड़कर जा ही रही थी, कि तभी, रुककर बेटी को देख, एक नि:श्वास छोड़ बत्ती बुझा देती है।

***

जीवन के अंग

यह दुबली पतली काया श्री जय जय राम निवासी ग्राम उरली वि0ख0 टोडरपुर हरदोई की है। मेरे जीवन से यदि इस व्यक्ति को हटा दें तो शायद मैं ही न रहूँ न रहेगा माँ भारती विद्या मन्दिर पूर्व माध्यमिक विद्यालय अयारी, हरदोई। 1998 में मुझसे और मेरे विद्यालय से जुड़कर हम दोनों का जो पथ प्रदर्शन किया है वह अनवरत जारी है।

***

टाई की नॉट

रिश्ते

टाई की नॉट की तरह

अंदर से तुड़े-मुडे

और बाहर से

सुंदर और व्यवस्थित 

दिखते हैं

सरका दो तो ढीले

खींच दो तो कस जाते हैं----

***

चाँद उतरा, बर्फ पिघली, ये जहाँ महका दिया …

प्रेम का सच आँख से झरता रहा आठों पहर,

और होठों के सहारे झूठ था, बुलवा दिया I  

 

पेड़ ने पत्ते गिराए पर हवा के ज़ोर पे,

और सारा ठीकरा पतझड़ के सर रखवा दिया I

 

एक चरवाहे की मीठी धुन पहाड़ी से उठी,

चाँद उतरा, बर्फ पिघली, ये जहाँ महका दिया 

***

सात रंगों में सिमटी सृष्टि

सात रंगों  में सिमटी सृष्टि 

आज प्रातः काल व्योम  में देखा

एक आकर्षक  सतरंगा इंद्र धनुष 

था इतना बड़ा कि छूने लगा

सड़क  के दोनो किनारों  को |

***

छूट गए पीछे | कविता | डॉ शरद सिंह

दिन जब चवन्नी थे

मीठे थे

दिन जब अठन्नी थे

नमकीन थे

दिन जब रुपैया हुए

खटमिट्ठे हुए

दिन अब रुपये को

कुचलते हुए 

हो चले हैं कड़वे

***


अपना व अपनों का ख्याल रखें…,

आपका दिन मंगलमय हो...

फिर मिलेंगे 🙏

"मीना भारद्वाज"



19 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात
    आभार सहित धन्यवाद मीना जी मेरी रचना लिंक को स्थान आज के अंक में देने के लिए |

    जवाब देंहटाएं

  2. श्रमसाध्य प्रस्तुति।
    भूमिका में स्मृति शेष मैथिलीशरण गुप्त जी की मन को शीतल करती पंक्तियाँ पढ़वाने हेतु बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय मीना दी।
    सभी को बधाई एवं शुभकामनाएँ।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. मारवाड़ी में लिखे मेरे नवगीत 'पगलां माही कांकर चुभया'को स्थान देने हेतु दिल से आभार।
    सादर

    जवाब देंहटाएं

  4. "चारुचंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में,

    स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बरतल में।"

    मैथिलीशरण गुप्त जी की की लिखी ये पंक्तियाँ जहाँ मन को शीतलता प्रदान कर रही है
    वही शास्त्री सर की लिखी ये पंक्तियाँ जीवन का शिक्षण दे रही है

    पेड़ अभिमान में थे अकड़ कर खड़े,

    एक झोंके में वो धम्म से गिर पड़े,

    लोच वालो का होता नही है दमन।

    जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन।।
    बहुत सुंदर भूमिका के साथ बेहतरीन लिंकों का चयन किया है आपने मीना जी,सभी को हार्दिक शुभकामनायें एवं नमन

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. चारुचंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में,
      स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बरतल में।"
      मेरी पंसदीदा पंक्तियों में एक ! जब भी खूबसूरत
      चाँदनी रात देखती हूँ तो
      मेरे मन में मात्र यही पंक्ति आती रहती है
      सच में बहुत ही खूबसूरत रचना है ये!

      हटाएं
  5. रचना को सम्मिलित कर मान देने हेतु हार्दिक आभार !

    जवाब देंहटाएं
  6. चर्चा मंच में मेरी कविता को स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं आभार मीना भारद्वाज जी 🌹🙏🌹

    जवाब देंहटाएं
  7. सदा की भांति लिंक्स का बहुत सुंदर संयोजन...आपके श्रम को साधुवाद मीना जी 🙏🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत ही अच्छी प्रस्तुति!
    सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ

    जवाब देंहटाएं
  9. इस प्रतिष्ठित मंच पर मेरी लघुकथा 'ऐसा क्यों' को स्थान सुलभ कराने हेतु आदरणीया मीना जी का आत्मिक आभार! सभी रचनाकारों को भी उनकी सुन्दर प्रस्तुतियों के लिए हार्दिक बधाई!

    जवाब देंहटाएं
  10. आदरणीय भारद्वाज मेम ,
    मेरी रचना की चर्चा "चारु चंद्र की चंचल किरणें" (चर्चा अंक- 4127) पर शामिल करने के लिए सादर धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  11. अति सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत अच्छी भूमिका के साथ
    सुंदर सूत्र संयोजन
    सभी रचनाकारों को बधाई
    मुझे सम्मलित करने का आभार

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  13. बहुत सुंदर चर्चा, मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार मीना जी।

    जवाब देंहटाएं
  14. बहुत खूबसूरत चर्चा संकलन

    जवाब देंहटाएं


  15. चर्चा मंच पर उपस्थित होकर उत्साहवर्धन करने हेतु आप सभी स्नेहीजनों का हृदयतल से असीम आभार । सादर वन्दे ।

    जवाब देंहटाएं
  16. सुंदर सूत्रों की शानदार प्रस्तुति तथा संयोजन के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय मीना जी, शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह..

    जवाब देंहटाएं
  17. सुंदर चर्चा सूत्र के आठ मेरी ग़ज़ल को जगह देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार … गुप्त जी की रचना से प्रारम्भ सभी सूत्र पठनीय हैं ….

    जवाब देंहटाएं

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