सादर अभिवादन !
शुक्रवार की चर्चा में आप सभी प्रबुद्धजनों का पटल पर हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन !
आज की चर्चा का आरम्भ स्मृति शेष श्री राम नरेश त्रिपाठी जी की लेखनी से निसृत कविता "प्राकृतिक सौंदर्य" के अंश से -
नावें और जहाज नदी नद सागर-तल पर तरते हैं।
पर नभ पर इनसे भी सुंदर जलधर-निकर विचरते हैं॥
इंद्र-धनुष जो स्वर्ग-सेतु-सा वृक्षों के शिखरों पर है।
जो धरती से नभ तक रचता अद्भुत मार्ग मनोहर है॥
【 चर्चा का शीर्षक "इंद्र-धनुष जो स्वर्ग-सेतु-सा वृक्षों के शिखरों पर है" 】
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आइए अब बढ़ते हैं आज की चर्चा के सूत्रों की ओर-
बचपन के दिन याद बहुत आते हैं- डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
कभी-कभी हम जंगल से भी, सूखी लकड़ी लाते थे
उछल-कूद कर वन के प्राणी, निज करतब दिखलाते थे
वानर-हिरन-मोर की बोली, गूँज रही अब तक मन में
जंगल के निश्छल मृग-छौने याद बहुत आते हैं
बचपन के सब खेल-खिलौने, याद बहुत आते हैं
***
अंबर छाई बदरी काली
गोखा चढ़ी उजली धूप
पुरवाई झाला दे बुलाव
फूलां-पता निखरो रूप
नाचे पंख पसार मोरनी
हूक उठी है गांवण की।।
***
बलवती ये सोम रस सी
गात में भर मोद देती
काँच रंगे पात्र में भर
हर घड़ी आमोद देती
इक तरह का है नशा पर
मधुरिमा बहती तरल ये।।
***
मत रो माँ -आँसू पोछते हुए कुमुद ने माँ को अपने सीने से लगा लिया। कैसे ना रोऊँ बेटा...मेरा बसा बसाया चमन उजड़ गया....तिनका-तिनका चुन कर...कितने प्यार से तुम्हारे पापा और मैंने ये घरौंदा बसाया था....आज वो उजड़ रहा है और मैं मूक बनी देख रही हूँ ।
***
मेरे सामने अख़बार पढ़ो,
तो चुपचाप पढ़ना,
पन्ना पलटने की आवाज़ से भी
डूबने लगती है
मेरी बची-खुची उम्मीद.
***
रोके गये अन्दर कहीं खुद के छिपाये हुऐ सारे बेईमान लिख दें
रुकें थोड़ी देर
भागती जिंदगी के पर थाम कर
थोड़ी सी सुबह थोड़ी शाम लिख दें
कोशिश करें
कुछ दोपहरी कुछ अंधेरे में सिमटते
रात के पहर के पैगाम लिख दें
***
अमेरिका के कैलिफोर्निया राज्य के पालो अल्टो शहर में दिसम्बर 1998 में पेपाल (PayPal) नाम की एक कंपनी स्थापित की गई जिसकी मदद से लैपटॉप, कंप्यूटर, स्मार्टफोन या टैबलेट किसी से भी, किसी के भी खाते में पैसे भेजे और लिए जा सकते थे। आज यह दुनिया की सबसे बड़ी इंटरनेट भुगतान करने वाली कंपनियों में से एक है।
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ये हथेलियों की है ज्यामिति
इसे समझना आसां
नहीं, चाहता है
दिल बहुत
कुछ,
कहने को बाक़ी अरमां नहीं।
लब ए बाम पर, कई
चिराग़ ए शाम
लोग जलाए
बैठे हैं,
रंगीन बुलबुलों का है मंज़र
ये उजला कोई आसमां
नहीं।
***
दर्द भीतर सालता जो
प्रेम बनकर वह बहेगा,
भूल चुभती शूल बनकर
पंक से सरसिज खिलेगा !
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संस्मरण पौड़ी के #3: खबेस उत्पत्ति कथा
पौड़ी एक हिल स्टेशन है और वहाँ अक्सर गुलदार घरों तक आ जाते हैं। कई बार वह लोगों पर हमला भी कर देते हैं। कई बार वह पालतू कुत्तों के चक्कर में घरों के आस पास आ जाया करते है। उस वक्त भी ऐसा काफी होता था। ऐसे में बचपन में रात के वक्त घर से बाहर अकेले जाने में मुझे तो काफी डर लगता था। फिर हमारे घर के आस पास पेड़ और क्यारियाँ भी हैं जो रात के वक्त डरावनी लगने लगती थी।
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आजु बदरिया ठगिनी आई
रह रह बरस भिगाय रही
देखि देखि मोहे हँसि हँसि जाए
रिमझिम,रिमझिम गाय रही
मोरी व्यथा पीड़ा वो जाने
तबहुँ गरज उमड़े घुमड़े
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रिमझिम पड़ें फुहार ,
हमारे आंगन में |
मन की कलियाँ खिल मुस्कायें ,
डाली झूम झूम झुक जाएँ ,
आई लौट बहार ,
हमारे आंगन में |
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व्यक्तित्व में निखार लाने वाली टिप्स
मैं ज्ञान की गंगा में से कुछ बूंदे आपके लिए लाया हूँ जिनमें कुछ बूँदे अपने अनुभव की मिलाकर अपने तरीके से आपके लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ। मुझे विश्वास है कि इन बूंदों के सेवन से आपके व्यक्तित्व में अवश्य निखार आएगा! आपको जीवन में मनवांछित सफ़लता हासिल करने में मदद मिलेगी! आपकी सोच-समझ में चार-चाँद लगेंगे!
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अपना व अपनों का ख्याल रखें…,
आपका दिन मंगलमय हो...
फिर मिलेंगे 🙏
"मीना भारद्वाज"
सुंदर और सार्थक चर्चा के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं। चर्चा में शामिल सभी रचनाकारों को भी बधाई और शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात !
जवाब देंहटाएंआदरणीय मीना जी आज का अंक बेहतरीन रचनाओं से सजाने के लिए आपका हार्दिक शुक्रिया । आपके श्रमसाध्य कार्य को तहेदिल से नमन करती हूं,मेरी रचना को मान देने के लिए आपका हार्दिक शुक्रिया..सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।
सुंदर चर्चा.आपका हार्दिक शुक्रिया
जवाब देंहटाएंवाह!बहुत सुंदर भूमिका में स्मृति शेष श्री राम नरेश त्रिपाठी जी की पंक्तियाँ सराहनीय 👌
जवाब देंहटाएंसाथ ही मेरे नवगीत को स्थान देने हेतु दिल से आभार आदरणीय मीना दी जी।
सादर
लाजवाब प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसभी को बधाई।
सादर
रोचक लिनक्स से सुज्जित चर्चा। मेरे संस्मरण को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएंइंद्र-धनुष जो स्वर्ग-सेतु-सा वृक्षों के शिखरों पर है।
जवाब देंहटाएंजो धरती से नभ तक रचता अद्भुत मार्ग मनोहर है॥
श्री राम नरेश त्रिपाठी जी की मनोहरी रचना....सच,इंद्र-धनुष स्वर्ग तक पहुंचने का मार्ग सा प्रतीत होता है।
बेहतरीन भूमिका के साथ सुंदर रचनाओं का चयन आदरणीया मीना जी,मेरी रचना को भी स्थान देने हेतु हृदयतल से आभार एवं नमन
सुप्रभात, विविधता पूर्ण रचनाओं से सजा है आज का चर्चा मंच, आभार!
जवाब देंहटाएंसभी रचनाओं व रचनाकारों की अपनी अलग विशेषता है, सभी मुग्ध करते से हैं, चर्चा मंच में जगह देने हेतु असंख्य आभार आदरणीया मीना जी।
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक्स से सजी सुंदर चर्चा ।
जवाब देंहटाएंमुझे सम्मिलित करने हेतु अनेकानेक धन्यवाद ! सभी को सावन के पावन पर्व ही हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सुसज्जित चर्चा | बधाई व हार्दिक शुभ कामनाएं |
जवाब देंहटाएंAll links is wonderful✨😍
जवाब देंहटाएंआभारी हूं मीना जी।
जवाब देंहटाएंबहुत मनोहर पंक्तियां श्री राम नरेश त्रिपाठी जी की, सुंदर शुरूआत,
जवाब देंहटाएंसभी लिंक उत्कृष्ट उत्तम, श्रमसाध्य कार्य।
सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
मेरी चाय को चर्चा पर परोसने के लिए हृदय से आभार।
सादर सस्नेह।
चर्चा मंच पर उपस्थित होकर उत्साहवर्धन करने हेतु आप सभी स्नेहीजनों का हृदयतल से असीम आभार । सादर वन्दे ।
जवाब देंहटाएंबेहद सुंदर संकलन
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