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सोमवार, जुलाई 19, 2021

'हैप्पी एंडिंग' (चर्चा अंक- 4130)

 सादर अभिवादन। 

सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है। 

बारिश का इंतज़ार ख़त्म हुआ 

तो बारिश के उपद्रव का आलम हुआ 

कहीं वज्रपात ने क़हर ढाया 

तो कहीं बाढ़ का मातम हुआ। 

आइए पढ़ते हैं विभिन्न ब्लॉग्स पर प्रकाशित सद्यरचित रचनाएँ-

मोह लगा है ........

इस घर में अब उदासी-सी छाई रहती है

मेरे सुख-चैन को ही दूर भगाई रहती है

मन तो बस , बंद हो गया उसी पिंजरे में

उसे पाने की इच्छा , फनफनाई रहती है

--

प्रतिबिंबित वर्णमाला - -

कुछ स्मृतियां बसती हैं वीरान रेलवे
स्टेशन में, गहन निस्तब्धता के
बीच, कुछ निरीह स्वप्न
नहीं छू पाते सुबह
की पहली
किरण,
बहुत कुछ रहता है असमाप्त इस -
जीवन में, 

--

अनाम रिश्ते

कुछ रिश्ते अनाम अनजाने से होते हैं l
सिर्फ ख्यालों में सपने पिरोने आते हैं ll

दायरे इनके सिमटे सिमटे नज़र आते हैं l
नींदों में चिलमन इनके गुलज़ार हो आते हैं ll    

तसब्बुर में इनकी खाब्ब ऐसे घुल मिल जाते हैं l 
जन्नत के उन पल खुली पलकें ही सो जाते हैं ll

--

 दीपक ने जोड़ा साहित्य   

डाल दिया   स्नेह उसमें 

बिन बाती स्नेह  रह न पाया

अस्तित्व अपना खोज न पाया दीपक में |

जब माचिस जलाई पास जाकर   

  बाती ने लौ पकड़ी  स्नेह पा  

 वायु बाधा बनी लौ कपकपा कर सहमी

पर अवरोध पैदा न कर पाई  |

--

733. पापा

ख़ुशियों में रफ़्तार है इक   
सारे ग़म चलते रहे   
तुम्हारे जाने के बाद भी   
यह दुनिया चलती रही और हम चलते रहे   
जीवन का बहुत लम्बा सफ़र तय कर चुके   
एक उम्र में कई सदियों का सफ़र कर चुके   
अब मम्मी भी न रही   
तमाम पीड़ाओं से मुक्त हो गई   
तुमसे ज़रूर मिली होगी 

--

सखि री सावन आयो द्वार...
सखि  री सावन आयो द्वार...
 ताल तलैया छलकन लागे,
 अरेरामा!लहरन लागे धान.......
सखि री सावन आयो द्वार. .   ।।
झिमिर झिमिर बदरा बरसे 
तृषित धरा के मस्तक चूमे
पातन बुंदिया मोती बन चमके
अरे रामा!शीतल.... बहत बयार....।।
मुझे थके चेहरों पर
गुस्सा 
नहीं
गहन वैचारिक ठहराव 
दिखता है।
विचारों का एक
गहरा शून्य
जिसमें
चीखें हैं
दर्द है
सूजी हुई आंखों का समाज है।

जब हम बोलते हैं 

भीतर या बाहर

तो दूसरा रहता  है 

जब चुप रहते हैं 

तो कोई दूसरा नहीं होता 

एक हो जाती है सारी कायनात 

जब घटता है मौन

भीतर या बाहर

--
चूल्हे खाली हांडी हँसती
अंतड़ियाँ भी शोर मचाए।
तृष्णा सबके शीश चढ़ी फिर
शहरी जीवन मन को भाए।
समाधान से दूर भागते
चकाचौंध के डूब रसायन।
आग....
खुजली रोकना सीखने का योग
बस यहीं और यहीं सीखा जाता है
फिर भी
--


13 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात 🙏
    चर्चा मंच में शामिल सभी पोस्ट बेहतरीन है पर मुझे "अनाम रिश्ते" और "सावनी कजरी" बहुत ही पसंद आयी दोनों बहुत ही सुंदर और काबिल-ए-तारीफ हैं!
    सभी को बहुत बहुत शुभकामनाएं!

    जवाब देंहटाएं
  2. शानदार अंक आज का |मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सहित धन्यवाद रवीन्द्र जी |

    जवाब देंहटाएं
  3. सभी रचनाएं अपने आप में असाधारण हैं, विविध रंगों से मुखरित चर्चामंच हमेशा की तरह मुग्ध करता है, मुझे शामिल करने हेतु असंख्य आभार - - नमन सह।

    जवाब देंहटाएं
  4. सुप्रभात! सराहनीय रचनाओं की सूचना देते सूत्र, सुख और दुःख आपस में कब बदल जाते हैं पता नहीं चलता, आभार मुझे भी आज के मंच में शामिल करने हेतु !

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति।
    सभी को बधाई।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  6. विविध रंगों की अनुपम छटा । अति सुन्दर एवं रोचक संकलन के लिए हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ ।

    जवाब देंहटाएं
  7. सुंदर संकलन । हैप्पी एंडिंग अच्छी रही ।

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत सुंदर संकलन, मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय।

    जवाब देंहटाएं
  9. सुंदर शानदार रचनाओं का संकलन, बहुत शुभकामनाएँ रवीन्द्र जी।

    जवाब देंहटाएं

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