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रविवार, जुलाई 18, 2021

"प्रीत की होती सजा कुछ और है" (चर्चा अंक- 4129)

 

सादर अभिवादन 

आज  की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। 

(शीर्षक आदरणीय शास्त्री सर की रचना से)

आप जहाँ है वहाँ का मौसम कैसा है....नहीं जानती मगर.... 

मुंबई का मौसम बहुत ख़ुशगवार है तो.... 

तो चलिए, ऐसे मौसम में कुछ ग़ज़लों का लुफ़्त उठाते हैं....  

और बाहर का मौसम जैसा भी हो दिल का मौसम खुशनुमा बनाते हैं....

वैसे तो ग़ज़ल के बारे में मुझे कुछ ज्यादा मालूम नहीं  फिर भी ग़ज़ल पढ़ना और सुनना.... मुझे बेहद पसंद हैं

पर सुना है, ग़ज़ल अरबी शब्द है जिसका अर्थ होता है 

"प्रेमिका से वार्तालाप" 

सच, ग़ज़ल जज़्बात और अल्फाज़ का एक लाजबाव मेल है... 

जिसे सुनते ही दिल में एक कसक सी होती है 

तो आइये, मेरी पसंद के कुछ ग़ज़लों का आनंद उठाईये.... 

और गीले-शिक़वे भूल प्रेम-मग्न हो जाईये....

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शुरू करते हैं आदरणीय शास्त्री सर से.. जो प्रीत की रीत समझा रहें.... 

"प्रीत की होती सजा कुछ और है"

  • (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री जी)


  • ज़िन्दगी के खेल में, कुछ प्यार की बातें करें।
    प्यार का मौसम हैआओ प्यार की बातें करें।।

    नेह की लेकर मथानीसिन्धु का मन्थन करें,
    छोड़ कर छल-छद्मकुछ उपकार की बातें करें।

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  • आदरणीय दिगंबर जी इन्हे तो हम हमारे ब्लॉग जगत का ग़ज़ल सम्राट कहते हैं...






कहाँ से आई कहाँ चूम के गई झट से 
शरारती सी थी तितली निकल गई ख़ट से

हसीन शोख़ निगाहों में कुछ इशारा था 
न जाने कौन से पल आँख दब गई पट से

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चाहा  था  कि  इश्क़  करूँ  मैं तुझसे  बेइंतिहां
पर  मेरी इस  चाहत  में कुछ जुनूँ की कमी  रही|

चाहत  थी  कि  बयां  कर  दूँ मैं  दिल की हर  बात
पर तेरे पास  हमेशा ही  वक़्त  की  कमी  रही ।


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कभी तारों से बातें कर कभी चंदा को देखें वो,
कभी गुमसुम अंधेरे में खुद ही खुद को समेटें वो ।

नया संगी नयी खुशियाँ कहाँ स्वीकार करते हैं,
उन्हीं कमियों में उलझे ये तो बस तकरार करते हैं ।


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तेरे अहसास में खोकर तुझे जब भी लिक्खा,
यूँ लगा,लहरों ने साहिल पे 'तिश्नगी' लिक्खा !

मेरी धड़कन ने सुनी,जब तेरी धड़कन की सदा,
तब मेरी टूटती साँसों ने 'ज़िंदगी' लिक्खा !


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देने को साथ कारवां में लोग हैं बहुत ।
खोया है गर यकीं तो फिर दिला नहीं सकते ।।

सोचूं ऐ जिन्दगी तुम्हें मैं गले से लगा लूं ।
रस्मे वफ़ा-ए-इश्क से फिर हिला नहीं सकते ।।

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न तोड़ो आईना यूँ राह का पत्थर बनकर
खनकने दो न हसी प्यार का मंज़र बनकर

चुपचाप सोये है जो रेत के सफीने है
साथ बह जायेगे लहरों के समन्दर बनकर



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अधूरी मोहब्बत का अधूरा फ़साना हो तुम

या अधूरे अल्फाजों की किताब हो तुम

या फिर अध लिखे खतों की ताबीर हो तुम

जो कोई भी हो तुम

पर मेरे लबों की खोई मुस्कान हो तुम


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राह में जिसके पलके बिछाते रहे हम
आज वो हमको आँखे दिखाने आया है

सांस टूट गयी, बिखर गया जब वजूद
देखिये आज वो रिश्ता निभाने आया है 


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घर किसी के दिया इक, जला कर के देख़






घर किसी के दिया इक, जला कर के देख़,

क्या मिलेगा सकूँ,     आज़मा कर के देख़ ।


सरहदों पर हैं बुझते,        चिरागों के घर,

जो हक़ीक़त है ख़ुद की बना कर के देख़ ।


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हम सबकी प्रिय वर्षा जी जिनके बिना ये महफ़िल अधूरी होगी....

आमंत्रण कहा भेजूं बस उन्हें अपनी श्रद्धा-सुमन अर्पित कर रही हूँ.... 

वो नहीं उनकी याद ही सही.. वो जहाँ कही भी हो परमात्मा उनकी आत्मा को शन्ति प्रदान करें 

  • उनकी आखिरी सीख सबको आगाह करती रही.....
  •  राम जाने कहाँ चूक हुई उनसे और काल ने हमसे
  •  हमारी प्रिय सखी और एक उन्दा रचनाकार छीन लिया 

है ज़रूरी सावधानी | ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह




बुझ रही संवेदना की
ज्योति होगी अब जगानी

रह न जाये याद बन कर
बूंद-"वर्षा" की कहानी


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वर्षा जी की परछाई उनकी बहन शरद जी 
मुझे यकीन है इस ग़ज़ल की महफ़िल में आप सभी को आनंद तो आया होगा.... 
  • आज का सफर यही तक,अब आज्ञा दें 

    आप सभी स्वस्थ रहें,सुरक्षित रहें 

    कामिनी सिन्हा 

16 टिप्‍पणियां:

  1. शुभप्रभात!!बहुत सुंदर संकलन।

    जवाब देंहटाएं
  2. सभी रचनाएँ भावनाओं से ओतप्रोत और बहुत ही खूबसूरत है! आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ और कामिनी मैम को तहेदिल से धन्यवाद इतनी मेहनत से सभी ब्लॉग पर जा कर रचनाओं का चयन करने के लिए🙏🙏🙏🙏🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  3. ग़ज़लों की बहुत सुन्दर महफिल सजी है आज की प्रस्तुति के रूप में। आपने मेरी पहले प्रयास को मंच पर स्थान दिया इसके लिए बहुत बहुत आभार कामिनी जी ।

    जवाब देंहटाएं
  4. कमाल के चर्चा सूत्र समेट दिए आप ने यहाँ …
    आभार मेरी ग़ज़ल को जगह देने के लिए …

    जवाब देंहटाएं
  5. आज मंच गज़लों को सजाए बैठा है
    वक़्त न जाने क्यों फिर भी ऐंठा है ।

    हर ग़ज़ल अपने आप में मुक्कमल । अच्छा लगा एक ही जगह इतनी सारी गज़लें पढ़ने का मौका मिला ।
    सुंदर संकलन । आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  6. सुंदर लाजवाब ग़ज़लों का बेहतरीन संकलन, आपके श्रम साध्य कार्यहेतु आपको मेरा नमन कामिनी जी,आपको मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  7. चर्चा के इस महामंच पर ग़ज़लों का एक बेहतरीन समागम देख मन प्रफुल्लित हो उठा । ये शायद पहली बार हुआ कि अच्छे अच्छे शायर एक मंच पर लाकर एकत्रित कर दिए और उन्हें पढ़ने का मौका मिलेगा ।सादर

    जवाब देंहटाएं
  8. खूब बधाईयाँ... सभी रचनाएं बहुत अच्छी हैं...।

    जवाब देंहटाएं
  9. वाह!बहुत ही सुंदर भूमिका के साथ सराहनीय प्रस्तुति।
    सभी को बधाई एवं शुभकामनाएँ।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  10. वर्षा दी को पढ़वाने हेतु दिल से आभार कामिनी दी।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  11. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  12. ग़ज़ल पढ़ना हो या सुनना, दोनों ही मुझे बहुत पसंद है। मुझे लगता है कि इस विधा में एक अलग बात है और अपने तरीके की संप्रेषणीयता है जो पद्य की अन्य विधाओं में कम देखने को मिलती है। प्रेमिका की जुल्फों और रईसों की महफिलों से निकलकर, शराब और शबाब की कैद से आजाद होकर ग़ज़ल ने जब अपना दायरा बढ़ाया तो अभिव्यक्ति की सरलता के कारण वह अधिकतर लोगों की पसंद बन गई। आज के ग़ज़ल विशेष चर्चाअंक में इतनी खूबसूरत ग़ज़लों को पढ़ना बहुत अच्छा अनुभव रहा। मेरी ग़ज़ल को स्थान देने हेतु बहुत बहुत शुक्रिया।

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  13. बहुत खूबसूरत चर्चा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  14. आप सभी को इस ग़ज़ल की महफ़िल में आनन्द आया ये जानकार खुशी हुई और मेहनत सफल हुई, आप सभी स्नेहीजनों को तहेदिल से शुक्रिया एवं सादर नमस्कार

    जवाब देंहटाएं
  15. वाह!कामिनी जी!आज तो गजलों की महफिल ने समा बाँध दिया...लाजवाब चर्चा प्रस्तुति में मेरी गजल को भी स्थान देने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद आपका।
    सादर आभार।

    जवाब देंहटाएं
  16. प्रिय कामिनी जी,
    आपकी तरह मुझे भी गज़ल बेहद पसंद है। पर लिखना नहीं आता ठीक से बहर,वज्न वगैरह में बिल्कुल अनाड़ी हैं
    आपके द्वारा संग्रहित इतने सुंदर संकलन में इतने सिद्धस्त रचनाओं के मेरी रचना को पाकर बहुत अच्छा लग रहा है।
    आपके स्नेह से अभिभूत हूँ। सभी रचनाएँ बेहद शानदार है।
    देर से प्रतिक्रिया लिखने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।

    सस्नेह आभार
    शुक्रिया।

    जवाब देंहटाएं

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