सादर अभिवादन।
आज की प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
शीर्षक व काव्यांश आ. डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी की रचना "चलो दीपक जलाएँ हम"से -
छँटें बादल गगन से हैं,
हुए निर्मल सरोवर हैं,
चलो तालाब में अपने,
कमल मोहक खिलाएँ हम।
आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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बढ़ी है हाट में रौनक,
सजी फिर से दुकानें हैं,
मधुर मिष्ठान को खाकर,
मधुर वाणी बनाएँ हम।
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‘अरे, तू तो मेरा भी उस्ताद है !
चमचागिरी के मैदान में मैंने भी झंडे गाड़े थे लेकिन मेरे पास न तो तेरे जैसी मोटी चमड़ी थी और न ही तेरे जैसी झूठ और मक्कारी से भरी शीरीं ज़ुबान !
एक न एक दिन तू भी मेरी ही तरह चमचागिरी की सीढ़ी पर चढ़ कर हाकिमे-वक़्त बनेगा !’
चमचा-दर्शन में आदर्श अंध-प्रचारकों की कार्य-शैली को पढ़ाने के लिए इस कथा को अवश्य ही पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया जाना चाहिए.
मरने की बात अपनी सुनकर
बहुत डरा करता है आदमी
बहुत डरा करता है आदमी
खुद के गुजरने की बात भूलकर भी
नहीं करा करता है आदमी
नहीं करा करता है आदमी
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दीपक ज्योति~
तम दूर भगाए
राग द्वेष का ।
एक आस्था का गीत-ज्योति जो जलती रहे वो दिया श्रीराम का हो
घर का
दीपक हो या
सरयू के पुण्य धाम का हो ।
ज्योति जो
जलती रहे वो
दिया श्रीराम का हो ।
जो है तुम्हारे भीतर
बस, उसी तक सीमित रहो
जो नहीं है तुम्हारा
वहाँ तक विस्तृत होने की
कोशिश मत करो
अपने किनारों को
किसी ओर किनारों से मत सटाओ
कुछ नहीं मिलेगा
सिवाय खुरदुरेपन के
राम विवेक, प्रीत सीता है,
दोनों का कोई मोल नहीं
शोर, धुआँ ही नहीं दिवाली,
जब सच का कोई बोल नहीं !
जगमग-जगमग आयी दिवाली।
बड़ी अनोखी औ बड़ी निराली।
जग से अंधेरे को दूर भगा कर-
हर जगह को रोशन करने वाली
'औरतों से बातचीत'रही होगी कभी ग़ज़ल की परिभाषा।शायद उस वक़्त जब ग़ज़ल के पैरों में घुँघरू बँधे थे,जब उस पर ढोलक और मजीरों का क़ब्ज़ा था,जब ग़ज़ल नगरवधू की अपनी ज़िम्मेदारियों का निर्वाह कर रही थी,जब ग़ज़ल के ख़ूबसूरत जिस्म पर बादशाहों-नवाबों का क़ब्ज़ा था।लेकिन,आज स्थितियाँ बिल्कुल उलट गई हैं।आज की ग़ज़ल पहले वाली नगरवधू नहीं बल्कि कुलवधू है,जो साज-श्रृंगार भी करती है और अपने परिवार और समाज का ख़याल भी रखती है।आज की ग़ज़ल कहीं हाथों में खड़तालें लेकर मंदिरों में भजन -कीर्तन कर रही है तो कहीं झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का रूप धारणकर समाज के बदनीयत ठेकेदारों पर अपनी तलवार से प्रहार भी कर रही है।यानी समाज को रास्ता दिखाने वाली आज की ग़ज़ल 'अबला'नहीं'सबला'है और हर दृष्टि से सक्षम है
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सुंदर अंक
ReplyDeleteसुन्दर सूत्रों से सजा आज का अंक, मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार और अभिनंदन ।
ReplyDeleteसभी को दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 💐🙏💐
बहुत सुंदर, सराहनीय अंक ।
ReplyDeleteसभी रचनाकारों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं ।।
दीपाली के दीप से जगमग पूरा देश ।
तिमिर भगाने का सदा देते ये संदेश ।।
दुर्गम पथ सब सुगम हो , मानुष हो खुशहाल ।
प्रेम और सद्भाव से बीते दिन औ साल ।।
दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएं💐💐
बहुत सुंदर। जगमगाती प्रस्तुति ।सभी रचनाकारों को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।
ReplyDeleteसभी के लिए दीप पर्व मंगलमय हो| आभार अनीता जी|
ReplyDeleteचर्चा की बेहतरीन प्रस्तुति|
ReplyDeleteसभी पाठकों और साहित्यकारों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं|
अनीता सैनी जी इतनी सुंदर चर्चा लगाने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार|
अनीता जी आपका एवं चर्चा मंच का हृदय से आभार। आप सभी को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें...
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