सादर अभिवादन
आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है( शीर्षक आदरणीय शास्त्री सर जी की रचना से)
आप सभी को छठ पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ
चलते हैं आज की कुछ खास रचनाओं की ओर...
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आसमान का है नहीं, कोई ओर न छोर।
जीवन पतँग समान है, कच्ची जिसकी डोर।।
अन्धकार का रौशनी, नहीं निभाती साथ।
भोर-साँझ का खेल तो, सूरज के है हाथ।।
मछली पानी के बिना, रहती सदा उदास।
लेकिन जल में भी नहीं, बुझती उसकी प्यास।।
हैं संयोग-वियोग के, बहुत अनोखे ढंग।
हैं आँसू-मुस्कान के, अलग-अलग ही रंग।।
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कुछ किस्से , कहानियाँ और बातें कालजयी होती हैं और वे हर generation के साथ परिस्थितियों के अनुसार सटीक बैठती हैं । अक्सर सुना है generation gap के कारण बहुत सारी चीजें बदल.जाया करती हैं जैसे फैशन और विचार , सोचने -समझने की पद्धति । कई बार भारी परिवर्तन के कारण सांस्कृतिक परिवर्तन भी दिखाई देते हैं मगर संस्कृति की अपनी विशेषता है यह नए बदलावों को आत्मसात करती निरन्तर गतिमान रहती है ।******-सिय वियोग
चले रघुवीर तुणीर लिए, मन में सिय का बस़ ध्यान रहे।
अनेक विचार उठे मन में,हर आहट वे पहचान रहे।
प्रयास करें पर कौन सुने,वन निर्जन से सुनसान रहे।
दिखे सब सून प्रसून दुखी,मन पीर वियोग निशान रहे।
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सखी री मैं तो पूजन जाऊँ गंगाहाथ में मेरे कलश विराजेचुड़ियाँ छन छन बाँह में बाजेमाथे पे बिंदिया लाल चुनरियागोटा लगा है सतरंगासखी******मशहूर शायर जॉन एलिया… वो शख़्स जिसे खुद को तबाह करने का मलाल नहीं रहा
Jaun elia की शायरी में उनकी छलकती हुई संवेदनाएं हैं, वो जो भी हैं, जैसे भी हैं अपने जैसे हैं। दिसंबर 1931 को उत्तर प्रदेश के अमरोहा में एक संभ्रांत परिवार में जौन ने जन्म लिया। जौन का इंतकाल आज ही के दिन यानि 8 नवंबर, 2002 को हुआ। जॉन एलिया यानी ऐसा नाम, कौतूहल जिनके नाम के साथ ही शुरू हो जाता है। अमरोहा में जन्मे,विभाजन के बाद भी दस साल तक भारत में रहे और फिर कराची चले गए। उसके बाद दुबई भी गए।
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एक ग़ज़ल-उसको तो बस वृन्दावन तक जाना है
फूल,तितलियाँ, खुशबू सिर्फ़ बहाना है
तुमसे ही हर मौसम का अफ़साना है
नींद टूटने पर चाहे जो मंज़र हो
आँखों को तो हर दिन ख्वाब सजाना है
धूप- छाँह और प्यास की चिंता ईश्वर की
सूरदास को वृन्दावन तक जाना है
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प्रकृति का छठा अंश होने के कारण उन्हें षष्ठी माता कहा गया जो लोकभाषा में छठी माता के नाम से प्रचलित हुई। पृथ्वी पर हमेशा के लिए जीवन का वरदान पाने के लिए ,सूर्यदेव और षष्ठीमाता को धन्यवाद स्वरूप ये व्रत किया जाता है। सूर्यदेव की पूजा अन्न -धन पाने के लिए और षष्ठीमाता की पूजा संतान प्राप्ति के लिए ,यानि सम्पूर्ण सुख और आरोग्यता*******आज का सफर यही तक, अब आज्ञा देआप का दिन मंगलमय होकामिनी सिन्हा
बहुत बेहतरीन चर्चा प्रस्तुति|
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीय कामिनी सिन्हा जी!
आसमान का है नहीं, कोई ओर न छोर।
जवाब देंहटाएंजीवन पतँग समान है, कच्ची जिसकी डोर।।
क्या बात है।बिल्कुत सटीक विचार आदरणीय शास्त्री जी।
हमेशा की तरह चर्चा इंद्रधनुष के रंगों से सजी हुई है।
आभार
आदरणीया कामिनी जी सादर अभिवादन |सभी लिनक्स अच्छे आपका हृदय से आभार|
जवाब देंहटाएंसुप्रभात !
जवाब देंहटाएंसुंदर सराहनीय रचनाओं के सूत्रों से सज्जित अंक । आपके श्रमसाध्य कार्य को मेरा नमन । शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।
अति सुन्दर प्रस्तुति । संकलन में मेरे सृजन को सम्मिलित करने हेतु बहुत बहुत आभार कामिनी जी ।
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा।
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति, सभी रचनाकारों को विगत सभी त्यौहारों की हार्दिक शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएं सुंदर सार्थक।
सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभार।
सादर सस्नेह।
आप सभी को तहेदिल से शुक्रिया एवं नयन
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