सादर अभिवादन
आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है
(शीर्षक और भुमिका आदरणीय शास्त्री सर जी की रचना से)
कभी शुरुआत की शिक्षा, भुलायी तो नहीं जाती
मगर बुनियाद की ईंटें, दिखायी तो नहीं जाती
भवन निर्माण करना हो या व्यक्तित्व... नींव की भूमिका महत्वपूर्ण होती है मगर वो दिखती नही.. शास्त्री सर की शिक्षाप्रद पंक्तियों को मनन करते हुए चलते हैं आज की कुछ खास रचनाओं की ओर....
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ग़ज़ल "बुनियाद की ईंटें दिखायी तो नहीं जाती" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक)
कभी जो दिल के दरवाजे पे, दस्तक रोज देते थे
उन्हें दस्तकदिले अपनी, सुनायी तो नहीं जाती
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सुख-दुःख के जो पार मिलेगा
जीवन सुख-दुःख का मिश्रण है, पर इसको देखने वाला मन यदि इसके पार जाने की कला सीख ले तो जीवन एक खेल बन जाता है। अनादि काल से न जाने कितने लोग इस भूमि पर जन्मे और चले गए। प्रतिक्षण नए सितारों के जन्म हो रहे हैं और कुछ काल के गाल में समा रहे हैं। *****
बहुत शोर था कभी उस घर में,
आवाज़ें आती रहती थीं वहां से,
कभी हंसने,कभी रोने की,
कभी बहस करने,कभी झगड़ने की,
अक्सर वहां कोई गुनगुनाता था,
कभी चूड़ियां,कभी पायल खनकती थी वहाँ,
आवाज़ें आती थीं वहां से बर्तनों की,
सुबह-शाम नल से पानी गिरने की.
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गुलमोहर के रंग चुरा
मुखड़ा लगता तपने
दृग पगडण्डी फिर देखे
कुछ कजरारे सपने
आहट पगचापों की तब
करती आँख मिचोली।।
किंशुक लाली हूँ माथे
करती हँसी ठिठोली।।
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सफर अभी जारी है...सिमट गयी फिर नदी, सिमटने में चमक आयी
गगन के बदन में फिर नयी एक दमक आयी
दीप कोजागरी बाले कि फिर आवें वियोगी सब
ढोलकों से उछाह और उमंग की गमक आयी
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सराहनीय संकलन आदरणीय कामिनी दी।
जवाब देंहटाएंसादर
व्वाहहहहह
जवाब देंहटाएंसादर..
सुप्रभात !
जवाब देंहटाएंप्रिय कामिनी जी, आज आपने वैविध्यपूर्ण रचनाओं का सुंदर संकलन लगाया है। उसी के बीच मेरे गीत को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार एवम अभिनंदन ।
शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह 💐💐🙏🙏
बहुत सुंदर और सार्थक चर्चा प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंमेरी गजल को आज की चर्चा में
शीर्षक बनाने के लिए-
आपका बहुत बहुत आभार
कामिनी सिन्हा जी!
बहुत ही सरहानीय प्रस्तुति🙏
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संकलन
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति.बहुत बहुत आभार
जवाब देंहटाएंआप सभी को तहे दिल से शुक्रिया एवं सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंदेर से आने के लिए खेद है, प्रतिदिन की तरह सुंदर प्रस्तुति, बहुत बहुत आभार कामिनी जी !
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