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मंगलवार, नवंबर 16, 2021

"बिरसा मुंडा" ( चर्चा अंक 4250 )

सादर अभिवादन

आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है

( शीर्षक  और भूमिका 

आदरणीया अनीता सुधीर जी की रचना से)

एक आदिवासी नायक ने,आजादी की थाम मशाल। 
क्रांतिवीर बिरसा मुंडा ने,उलगुलान से किया कमाल।।

क्रान्तिवीर बिरसा मुंडा जी को नमन करते हुए चलते हैं,
आज की रचनाओं की ओर....
******

 गीत "खादी-खाकी की केंचुलियाँ"

 (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक)


तन भूखा हैमन रूखा है खादी वर्दी वालों का,

सुर तीखा हैउर सूखा है खाकी वर्दी वालों का,

डर से इनके सहमा-सहमा सा मजदूर-किसान!

अचरज में है हिन्दुस्तान!

अचरज में है हिन्दुस्तान!!

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बिरसा मुंडा

धरती आबा नाम मिला है,देव समझकर पूजें आज।
कलम धन्य है लिखकर गाथा,लाभान्वित है पूर्ण समाज।।

शौर्य वीर योद्धा थे मुंडा,जल जंगल के पहरेदार।
उलगुलान में जीवित अब भी,माँग रहे अपने अधिकार।। 

सबके हित की लड़ी लड़ाई,नहीं दिया था भूमि लगान। 
एक समाज सुधारक बन के, कार्य किए थे कई महान

--

जोति जले तुलसी छैयाँ

जोति जले तुलसी छैयाँ 
ओ रामा जोत जले है।
जगमग करे है डगरिया
हो रामा गाँव जगे है ।।

पपिहा गावे दादुर गावे,

गीत सुनावे कोयलिया 
*****

झरना

वो झरना है
खुशियों का
दिल के हर कोने से
फूटते जल प्रतापों का 
संग्रह है वो
हर किसी के लिये
कलेजा निकाल कर 
रख देना
उसकी फितरत है
*****

इत्मीनान - -

 कुछ भी नहीं बदला हमारे दरमियां, वही
कनखियों से देखने की अदा, वही
इशारों की ज़बां, हाथ मिलाने
की गर्मियां, बस दिलों में
वो मिठास न रही,



****
एक गीत- मुझे अब गाँव की पगडंडियों की याद आती है

सफ़र में

धूप हो तो

नीम की छाया में सो जाना,

बिना मौसम की

बारिश में

हरे पेड़ों को धो जाना ,

अभी भी

स्वप्न में आकर के

माँ लोरी सुनाती है ।

*******

मेरे ख्वाबों की खिड़की पर पर्दा किसने लगाया?
ऐसा कहा जाता है कि मुसाफिर का काम भटकते रहना है। अगर मुसाफिर को मंजिल मिल जाए तो फिर उसका मुसाफिर होने का वजूद खत्म हो जाता है। तभी तो मुसाफिर को ख्वाबों में खोया रहना अच्छा लगता है। वही ख्वाब जो उसके मुसाफिर होने का एहसास कराते हैं। उम्मीद जिसकी लौ कभी ना बुझने वाली दीये के सहारे रहती है। मुसाफिर को हर वक्त ख्वाबों का इंतजार रहता है। वो इस इत्मीनान में रहता है कि मेरे ख्वाब मेरे हैं। 





*******खेल-ए-जिंदगी 

अचानक महसूस होता है 

कि मैं क्यों हूँ ? 
अचानक मरने की इच्छा, 
अचानक मरने का डर! 
अजीब-सी है मन में हलचल ! 
अचानक क्रोध,
अचानक हंसी का नाट्य, 
कभी लगता, हूँ बिमार, 
कभी अत्यंत कमजोर
तो कभी मजबूत चट्टान! 
अजीब से हैं हालात! 
कभी भीड़ में भी 
******

आज का सफर यही तक, अब आज्ञा दे

आप का दिन मंगलमय हो

कामिनी सिन्हा

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपका हृदय से आभार आदरणीया कामिनी जी।सादर अभिवादन।सभी लिंक्स अच्छे।

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात !
    नायाब रचनाओं के संकलन के मध्य मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हृदयतल से शुक्रिया करती हूं प्रिय कामिनी जी । आपके श्रमसाध्य कार्य को मेरा सादर नमन एवम वंदन ।सभी रचनाकारों को मेरी हार्दिक बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत बेहतरीन चर्चा प्रस्तुत की है आपने आदरणीय कामिनी सिन्हा जी!
    आपका बहुत-बहुत आभार|

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन अंको से सजा बहुत ही खूबसूरत चर्चामंच! मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका तहे दिल से बहुत-बहुत धन्यवाद🙏

    जवाब देंहटाएं
  5. बेहतरीन संकलन
    मेरी रचना को स्थान देने के लिये हार्दिक आभार

    जवाब देंहटाएं
  6. नायाब रचनाओं से सजा सुंदर प्रस्तुति!

    जवाब देंहटाएं
  7. आप सभी को हृदयतल से धन्यवाद एवं सादर नमस्कार

    जवाब देंहटाएं

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