शीर्षक पंक्ति : आदरणीय डॉ.सुशील कुमार जोशी जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
आइए पढ़ते हैं चंद चुनिंदा रचनाएँ-
दोहे "दीपों की दीपावली" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
कभी विदेशी माल का, करना मत उपयोग।
सदा स्वदेशी का करो, जीवन में उपभोग।।
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मेरे भारतवासियों, ऐसा करो चरित्र।
दौलत अपने देश की, रखो देश में मित्र।।
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करत करत अभ्यास जड़मति होत सुजान यूँ ही नहीं कहा गया है सरकार
‘उलूक’ लगा
रह घसीटने में शब्दों को अपनी सोच के तार पर बेतार
कभी
तो लगेगी
लाटरी तेरी
भी
मान लिया जायेगा बकवास को लेखन और
तुझे लेखक
मिलेंगी टिप्पणियाँ भी
लेखकों की साहित्यकारों की
बुद्धिजीवियों की भी
और विद्वानो की
भी हर बार।
*****एक और शाम | कविता | डॉ शरद सिंह
ओ शीत !
किसने कहा
कि तुम आना
उनके पास जो
रह गए हैं अकेले
मत दो उन्हें
अवसाद की सज़ा
जितना झेला
वह कम नहीं क्या?
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सरदार वल्लभ भाई पटेल
बने बारडोली के नायक, महिलाएँ कहती सरदार।
लौह पुरुष थे उच्च श्रृंग पर, लिए अखंडित देश प्रभार।।
क्रांति करी थी रक्तहीन जो, लोकतंत्र का दे आधार।
ऐसे नायक बिरले होते, जो जीवन को दें आकार।।
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दीप (हाइकु )
माटी का दीया
कुछ लोगों को देता
रोजी है देता।
बाती जलती
प्रकाशित करती
घर का कोना।
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देशप्रेम
दुश्मन की सेना के आगे सीना अपना तान रखा,
हर पल अधरों पर आज़ादी वाला पावन गान रखा।
शत-शत वंदन करते हैं हम श्रद्धा से उन वीरों का,
देकर जान जिन्होनें भारत माँ का गौरव-मान रखा।
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आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले सोमवार।
बहुत सुंदर और उपयोगी लिंक मिले पढ़ने के लिए|
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी!
बहुत सुंदर प्रस्तुति।सभी रचनाएं बेहतरीन।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संकलन
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार
आभार रवीन्द्र जी
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