सादर अभिवादन।
सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
आइए अपढ़ते हैं चंद चुनिंदा रचनाएँ-
गीत "आन-बान, शान-दान, स्वार्थ में शुमार है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
हर मनुज के अंतर में
प्रेम का सितार बज उठता है
और तब सृजन होता है
उस दिव्य अलौकिक संगीत का
जिसकी लय पर हर गोपिका
तुम्हारी संगति में स्वयं को
राधा समझने लगती है !
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भोथरी हो जाए तो जीने के प्रयासों कीप्रेम कहो शांति कहो
वह अपना ही दिल है
यहीं घटे अभी मिले वही वह रब है
कभी गहा कभी छूटा
जगत यह सब है !
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उदासियों के बादल भी छंट कर बरसेंगे कभी तो,
सोंधी खुशबू मिट्टी की, उठनी अभी बाकी है।
ख्यालों का क्या है, आते जाते ही रहते हैं,
गर ठहरे शब्द, तो पन्नों पर, उतरना अभी बाकी है।
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आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले सोमवार।
रवीन्द्र सिंह यादव,
साहित्य के मर्मज्ञ पाठकों के लिए रस की सरिता बहाने प्रतिदिन की भांति आज भी पठनीय रचनाओं के सूत्रों से चर्चा मंच सजा है. आभार मुझे भी इसमें शामिल होने का सौभाग्य देने हेतु रवीन्द्र जी !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सार्थक सूत्रों से सुसज्जित आज की चर्चा ! मेरी रचना को इसमें स्थान दिया आपका दिल से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंसुन्दर सार्थक सूत्रों से सुसज्जित आज की चर्चा ! मेरी रचना को इसमें स्थान दिया आपका बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह चादव जी !
जवाब देंहटाएंशानदार रचनाओं से सजे इस मंच पर हमारी बाल कविता को स्थान देने के लिए सादर आभार..
जवाब देंहटाएंइस मंच पर सजे सभी लिंक अनूठे और सार्थक हैं। सभी रचनाकारों को बधाई