सादर अभिवादन।
आज की प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
शीर्षक व काव्यांश आ. डॉ. शरद सिंह जी की रचना 'झुकती पृथ्वी' से -
पृथ्वी
घूम रही है
झुकी-झुकी
अपनी धुरी पर
कटते जंगलों
सूखती नदियों
गिरते जलस्तरों
बढ़ते प्रदूषण
और
ओजोन परत में
हो चले छेदों पर
आंसू बहाती हुई
घबराई-सी।
आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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ग़ज़ल "कौड़ी में नीलाम मुहब्बत मँहगा चाँदी-सोना है"
दुनिया में दिल वालों का
चलता जादू-टोना है
जिसे प्यार का रोग लगा
उसको नैन भिगोना है
किसी प्रेमिका
या
नववधू सी
प्रेम के
संवेग से
भर कर नहीं,
मां के ममत्व से
उद्वेलित हो कर नहीं
कार्तिक मास सदा उर भाए।
त्योहारों में मन हर्षाए।।
शुक्ल पक्ष की षष्ठी आई।
महापर्व की खुशियाँ छाई।।
रात घटाएँ आई थी घिरकर, हँवाओ मे अज़ब शोर था ।वो आकर लौट गए दर से मेरे,हम समझे कि कोई ओर था।अफ़साना बन भी जाता कोई, कुछ मेरी बेख्याली शायद, कुछ रुसवाई का दौर था।
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मूल से अधिक प्यारा ब्याज, ऐसा क्यों
कहा जाता है कि बच्चे प्रभु का रूप होते हैं ! पर प्रभु को भी इस धरा को, प्रकृति को, सृष्टि को बचाने के लिए कई युक्तियों तथा नाना प्रकार के हथकंडों का सहारा लेना पड़ा था ! पर निश्छल व मासूम शैशव, चाहे वह किसी भी प्रजाति का हो, छल-बल, ईर्ष्या-द्वेष, तेरा-मेरा सबसे परे होता है, इसीलिए वह सबसे अलग होता है, सर्वोपरि होता है। भगवान को तो फिर भी इंसान को चिंतामुक्त करने में कुछ समय लग जाता होगा, पर घर में कैसा भी वातावरण हो, तनाव हो, शिशु की एक किलकारी सबको उसी क्षण तनावमुक्त कर देती है। गोद में आते ही उसकी एक मुस्कान बड़े से बड़े अवसाद को तिरोहित करने की क्षमता रखती है। उसकी बाल सुलभ हरकतें, अठखेलियां, जिज्ञासु तथा बड़ों की नक़ल करने की प्रवृति, किसी को भी मंत्रमुग्ध करने के लिए काफी होती हैं। उसकी अपने आस-पास की चीजों से तालमेल बैठाने की सफल-असफल कोशिशें कठोर से कठोर चहरे पर भी मुस्कान की रेख खिंच देने में कामयाब रहती हैं।
अध्यात्म का सबसे बड़ा चमत्कार सबसे बड़ी सिद्धि तो यही है कि हम अपने बिखरे हुए मन को समझ लें, चित्त को देख लें. मानव होने का यही तो लक्षण है कि साधना के द्वारा मन को इतना केंद्रित कर लें कि मन के परे जो शुद्ध, बुद्ध आत्मा है वह उसमें प्रतिबिम्बित हो उठे. ज्ञान के द्वारा उस आत्मा के बारे में जानना है, फिर योग और ध्यान के द्वारा उसका अपने भीतर अनुभव करना है तथा भक्ति के द्वारा उसका आनंद सबमें बांटना है.
लघुकथा आज लोकप्रियता की बुलंदियों को छूने का प्रयास कर रही है। उसे इस स्थान तक पहुँचाने का श्रेय जिन मनीषियों को जाता है, अशोक लव का नाम भी उनमें शामिल है। आज की लघुकथाएँ काफ़ी सीमा तक आदमी के जीवन में का प्रतिनिधित्त्व कर रही हैं। यही कारण है कि लघुकथा जीवन से सीधे जुड़ी हुई है। इसमें जीवन के किसी एक तथ्य को अपनी संपूर्ण संप्रेषणता के साथ उभारा जाता है। जिसका जितना अधिक अनुभव होगा, जितनी अधिक व्यापक दृष्टि होगी, समझ जितनी अधिक विस्तृत होगी, चिंतन-मनन जितना अधिक स्पष्ट होगा तथा शब्दार्थ और वाक्य विधान का जो मितव्ययी एवं निपुण साधक होगा वह उतनी सटीक लघुकथा रच सकता है।
इतने सालों बाद भी दीपावली बीतने पर उस छात्र की याद मन को उदास कर देती है ...हर बार मन में ख्याल आता है कि अब वो कैसा होगा....उसके सपने उसे कैसे सालते होंगे... कितना पछताता होगा न वो।हाँ बात 2003 की है ,विनीत आठवीं कक्षा में नया आया था । उसका परिचय पूछते समय जब मैंने उसे पूछा तुम बड़े होकर पढ़-लिखकर क्या बनोगे...?
उपयोगी लिंकों के साथ सुंदर और व्यवस्थित चर्चा प्रस्तुति|
जवाब देंहटाएंआपका आभार अनीता सैनी 'दीप्ति' जी!
मेरी रचना को सम्मिलित करने हेतु आपका और चर्चा मंच का हार्दिक आभार 🙏
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट एवं पठनीय लिंको से सजी लाजवाब चर्चा प्रस्तुति... मेरी रचना को चर्चा में शामिल करने हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार प्रिय अनीता जी! सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा संकलन
जवाब देंहटाएंसुंदर सार्थक अंक।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई।