दोहे "कुटिल न चलना चाल" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')सादर अभिवादन।
सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
आइए पढ़ते हैं चंद चुनिंदा रचनाएँ-
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कलम की सक्रीयतायूँ तो कभी कम न होतीपर लेखक के मन परवह रहती निर्भर |*****
बिखरी है चाँदनी
गूंजे है रागिनी,
पलकों में बीत रही
अद्भुत यह यामिनी!
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वो पहनने से छूटी पाजेब आज भी बजना चाहती है,
उन्हीं पुरानी कविताओं के एक सूने पाँव में बंध कर।
हाँ आज भी इंतजार में है ढेर से बाहर आने को,
तुम्हारे होठों पर चढ़ कर इतराने को गुनगुनाने को।।
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तुम्हारे जैसा है मनुषन गांडीव न धनुषलगा के लक्ष्य के निशाँवो ले चला है कारवाँहै शीर्ष पर धरे जलजऔ पाँव चूमती है रजबड़े कदम, कदम बढ़ेकसीदे कारवाँ पढ़े ।।।
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बोई उम्मीद की फसल बरसात ले गई,
वायदों की थाली, दाना तलाशता रहा।
मुख़्तलिफ़ किताबों के पन्ने पलट गया,
जाती ज़िंदगीका अफ़साना तलाशता रहा।
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आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे आगामी सोमवार।
रवीन्द्र सिंह यादव,
बहुत सुंदर और उपयोगी चर्चा प्रस्तुति|
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीय रवींद्र सिंह यादव जी!
सुप्रभात !
जवाब देंहटाएंआदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी, नमस्कार ।
विविध रचनाओं से परिपूर्ण उत्कृष्ट अंक । मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार एवम अभिनंदन ।आपको और चर्चा मंच को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं ।
सुप्रभात! सुंदर रचनाओं से सजा चर्चा मंच, आभार!
जवाब देंहटाएंचुनिंदा रचनाओं में स्वयं को देखना काफी आनंदित करने वाला है।
जवाब देंहटाएंसादर आभार मेरी रचना को मान देने के लिए।
सभी रचनाएं बहुत आकर्षक सुंदर,सभी सृजन कारों को हृदय से बधाई।
शानदार प्रस्तुति शानदार लिंक्स।
सादर सस्नेह।
बहुत ही सुंदर सराहनीय प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमेरे सृजन को स्थान देने हेतु बहुत बहुत आभार सर।
सभी को बधाई एवं शुभकामनाएँ।
सादर
सुंदर प्रस्तुति ! सभी को शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंखूबसूरत चर्चा संकलन
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मेरी रचना को आज के संकलन में स्थान देने के लिए |