सादर अभिवादनआज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है(शीर्षक आदरणीय शास्त्री सर जी की रचना से)
********गीत "भइयादूज का तिलक" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')मेरे भइया तुम्हारी हो लम्बी उमर, कर रही हूँ प्रभू से यही कामना। लग जाये किसी की न तुमको नजर, दूज के इस तिलक में यही भावना।। *****
है ऐसा क्या
उन यादों में
स्वप्नों में भी
यादों से बाहर
न निकल पाई |
लाखों जतन किये
सब हुए व्यर्थ
मैं ना खुद सम्हली
न किसी को
******
*****उस पुरानी दीवार में
एक पीपल का पौधा उगा,
मैंने उसे जतन से निकाला,
गड्ढा खोदकर ज़मीन में लगाया,
उसे खाद-पानी दिया,
उसकी हिफ़ाज़त की,
पर वह मुरझा गया.
******
*******
अध्यात्म के बिना रोजमर्रा की उलझनों में खोया हुआ मानव जीवन के एक महान अनुभव से वंचित रह जाता है. नित्य ही हम जगत की अस्थिरता का अनुभव करते हैं, जिसकी शुरुआत हमारे तन से ही होती है. तन कभी स्वस्थ है कभी अस्वस्थ, आज युवा है तो कल वृद्ध होगा. हमारे देखते-देखते ही कोई न कोई परिचित काल के गाल में समा जाता है. मन
*******
रोम से क्या मतलब नीरो को अब वो अपनी बाँसुरी भी किसी और से बजवाता है
टेलीविजन पर Pears साबून का एक विज्ञापन आ रहा है, जिसमें एक महिला बच्चों से पूछती है कि आज क्या है? बच्चे बोलते है ''आज हमारा म्यूजिक कॉम्पिटीशन है और आपका चेहरा हमारे लिए लकी है!'' याद आ गया न आपको भी वह विज्ञापन! मैं जब-जब भी यह विज्ञापन देखती
*******
आज का सफर यही तक, अब आज्ञा दे
आप का दिन मंगलमय हो
कामिनी सिन्हा
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद कामिनी जी आज के अंक में मेरी रचना को स्थान देने के लिए |
सुप्रभात🙏🙏
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा प्रस्तुति
सुंदर प्रस्तुति.मेरी रचना को स्थान देने के लिए धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, कामिनी दी।
जवाब देंहटाएंउपयोगी लिंकों के साथ बढ़िया चर्चा प्रस्तुति|
जवाब देंहटाएंआपका आभार कामिनी सिन्हा जी!
पठनीय रचनाओं के सूत्र देती सुंदर चर्चा, आभार!
जवाब देंहटाएंआभार कामिनी जी |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति कामिनी जी , सभी लिंक पठनीय सुंदर।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई।
सादर सस्नेह।
मंच पर उपस्थित होकर उत्साहवर्धन करने हेतु आप सभी को हृदयतल से धन्यवाद एवं सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएं