सादर अभिवादन।
शुक्रवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
आइए पढ़ते हैं कुछ चुनिंदा रचनाएँ-
गीत "मिट्टी के ही दिये जलाना, अबकी बार दिवाली में" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
अपने उत्पादन से
अपना,
दामन खुशियों से भर
लें।
गले मिलें सब लोग
देश के,
होली, ईद-दिवाली
में।
मिट्टी के ही दिये
जलाना,
अबकी बार दिवाली
में।।
स्वदेशी वस्तुओं से बनें स्वावलंबी यही महायज्ञ करवायें हम
मन से मन में जले स्नेहसिक्त दीप मन के तिमिर मिटायें हम ,
घर बाहर पग-पग दीप जला हर्ष उल्लास से पर्व मनायें हम
दीपों से सजा देहरी घर माँ लक्ष्मी को सादर प्रेम बुलायें हम।
*****
जो जन्म से नहीं होते
पर जब बन जाते हैं
कभी नष्ट नहीं होते।
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*****
संवेदनाओं से घिरे
रिश्ते, रिश्ते होते हैं
जैसे समझो रिश्ते वैसे होते हैं
ज़िन्दगी रिश्ते
रिश्ते ज़िन्दगी।
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शांति के गीतों में, एक होके सब बहें, दीप जलते रहें।*****
दीपावली के पंच पर्व पर बहुत सुंदर और सार्थक चर्चा प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी!
सभी पाठकों को अन्नकूट गोवर्धन पूजा की हार्दिक शुभकामनाएं|
बहुत ही उम्दा व सुंदर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंसभी को गोवर्धन पूजा की हार्दिक शुभकामनाएं🙏
सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार, सुंदर प्रस्तुति आदरणीय जी
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर कलेक्शन है रचनाओं का रवींद्र जी। गोवर्धन पूजा की शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंआभार सहित धन्यवाद मेरी रचना को स्थान देने के लिए |