सादर अभिवादन !
शनिवार की प्रस्तुति में आपका स्वागत है ।
आज की चर्चा का शीर्षक “देव दिवाली” आ.शास्त्री जी के सृजन से-
आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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दीपों का त्यौहार है, देव दिवाली पर्व।
परम्परा पर देश की, हम सबको है गर्व।।
गुरु नानक का जन्मदिन, देता है सन्देश।
जीवन में धारण करो, सन्तों के उपदेश।।
गुरू पूर्णिमा पर्व पर, खुद को करो पवित्र।
मेले में जाना नहीं, घर में रहना मित्र।।
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राष्ट्रकवि श्री मैथिलीशरण गुप्त ने आज से 110 साल पहले - 'भारत भारती' में प्रश्न उठाए थे -
'हम कौन थे, क्या हो गए, और क्या होगे अभी ---?'
आज स्वर्ग में बैठे हमारे राष्ट्रकवि को उनके प्रश्नों के उत्तर मिल गए होंगे और भारतीयों को रसातल में जाते हुए देख कर उनका ह्रदय निश्चित ही तड़प रहा होगा.
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जानते थे न कि बड़े भैया से गुनाह हुआ था? अपने चार मित्रों के साथ मिलकर भादो के कृष्णपक्ष सा जीवन बना दिया पड़ोस में रहने वाली काली दी का। जबकि काली दी अपने नाम के अनुरूप ही रूप पायी थीं..।"
"इस बात को गुजरे लगभग पचास साल हो गए..,"
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एक पौधा
रोपा गया
सबने दिया
खाद-पानी
सुरक्षा देने की
सबने ठानी
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है
यह
सहज
सरलता
लिए हुए है
कोई भी उपाय
कठिन न उसके
सहज योग अच्छा है
संबल योग का उसका |
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विवाह गीत: मंडप छाजन (बियाहू: अवधी)
पनवा औ केलवा के मंड़वा छवैबे, बँसवा के खम्भ गड़ाय रे ।
अमवा की पतिया म बाँधि कलावा, बंदनवार सजाय रे ।।
चारो कोने कलस म नीर भरैबे, गंगा मैया से मंगाय रे ।
कलस के ऊपर चौदिस दियना, देबै सखी आजु बारि रे ।।
आओ कागा आओ नेवत देइ आओ, बिरना का मोरे बोलाय रे ।
पहला नेवत मैंने गनपति दीन्हों, दूजा नैहर भिजवाय रे ।।
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आज पुरुष दिवस है
लगभग सभी पुरुष बेखबर है
इस दिन से
उनके लिये रोज की तरह
सामान्य सा दिन है यह भी
क्योकि उनके जीवन की जद्दोजहद
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कोई पुरुष जब रोता है
तो धरती की छाती
दरकती है
तुम्हें बचाना होगा स्त्री! दरार को.
पुरुष, पुरुष ही नहीं ईश भी है
वो ही न हो तो तुम स्त्री कैसे बनो?
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दिल में फिर, इक ख्वाब पल रहा है,
जमाना फिर हमसे, कुछ जल रहा है
उनके आने के लम्हे, ज्यों करीब हुये
इंतजार कुछ जियादा, ही खल रहा है
पुलिंदे शिकायतों के, मुंह ढकने लगे
तूफा ए अरमां, बेइंतेहा मचल रहा है
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अधूरा ख्वाब - आलोक कुमार सिंहकहा जाता है कि अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु के वक्त कोई इच्छा बची रह जाती है तो वह इच्छा उसे प्रेत योनि में ले जाती है। अब ऐसा होता या नहीं ये नहीं पता लेकिन इस एक थीम पर काफी रचनाएँ लिखी और फिल्माई जा चुकी है। लेखक आलोक कुमार की प्रस्तुत रचना अधूरा ख्वाब भी इसी थीम पर लिखी गयी है। यह एक पारलौकिक थ्रिलर है जिसके केंद्र में मौजूद पारलौकिक शक्ति इसिलिये प्रेत योनि में जाती है क्योंकि उसका एक अधूरा ख्वाब है जिसे उसे पूरा करना होता है। अपने इस ख्वाब को पूरा करने के लिए वो विराट सिंह राजपूत को चुनती है। --
आज का सफ़र यहीं तक
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
बहुत सुंदर और सार्थक चर्चा प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआदरणीया अनीता सैनी "दीप्ति' जी
मेरी पोस्ट के दोहे से शीर्षक पोस्ट बनाने के लिए आपका आभार|
शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
जवाब देंहटाएंश्रमसाध्य प्रस्तुति हेतु साधुवाद
बहुत सुंदर,सार्थक तथा पठनीय सूत्रों का श्रमसाध्य संयोजन किया है आपने प्रिय अनीता जी, आपकी मेहनत को हार्दिक नमन।
जवाब देंहटाएंमेरे गीत को स्थान देने के लिए आपका असंख्य आभार और अभिनंदन । आपको मेरी हार्दिक शुभकामनाएं ।
हार्दिक धन्यवाद ! सादर !
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार प्रस्तुति🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनीता जी मेरी रचना को इस पटल पर स्थान देने के लिए |
रोचक लिंक्स से सुसज्जित चर्चा... मेरी रचना को इसमें शामिल करने के लिए हार्दिक आभार।
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