सादर अभिवादन।
गुरुवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
शीर्षक व काव्यांश आ.मनोज कयाल जी की रचना 'अंतर्ध्वनि' से -
--
उगते ढलते सूर्य का, छठपूजा त्यौहार।
कोरोना के काल में, छठ माँ हरो विकार।।
अपने-अपने नीड़ से, निकल पड़े नर-नार।
सरिताओं के तीर पर, उमड़ा है संसार।।
--
माचिस की तीली कुछ सीली कुछ गीली रगड़ उलूक रगड़ कभी लगेगी वो आग कहीं जिसकी किसी को जरूरत होती है
निकला बेचने रूह को जिस्म के जिस बाजार lबिन सौदागर मौल हुआ नहीं उस सरे बाजार ll
अंतर्द्वंद विपासना जलाती रही चिता कई एक साथ lपर हर कतरे में पाषाण सी थी इस रूह की रुई राख ll--
कहते हैं कि जब कोई कौआ
घर की मुंडेर पर बैठकर
काँव-काँव करता है,
तो कोई आने वाला होता है.
यूँ पाँव पाँव चल के तो जाए न जाएँगे ...
खुल कर तो आस्तीन में पाए न जाएँगे.इलज़ाम दोस्तों पे लगाए न जाएँगे. सदियों से पीढ़ियों ने जो बाँधी हैं बेड़ियाँ,इस दिल पे उनके बोझ उठाए न जाएँगे.ये गुज़ारिश है हर माँ की तरह मेरी भी जीवन की धूप में भी हिलना न तुम कभी ठण्डी हवा के झोंकों से ये फेवर्स तुम्हें कहेंगे के तुम दुनिया से जुदा हो अपनी माँ के लिये तुम बहुत खास हो हाँ तुम बहुत खास हो दिवाली गयी अब दिये बुझ गये सबवो देखो अंधेरा पुनः छा रहा है...अभी चाँद रोशन हुआ जो नहीं हैतमस राज अपना फैला रहा हैअमा के तमस से सहमा सा जुगनूटिम-टिम चमकने में कतरा रहा हैदिवाली गयी अब दिये बुझ गये सबवो देखो अंधेरा पुनः छा रहा है....।लाखों के बलिदान का था परिणाम ढेरों सपने भी सजाये थे इस नए राज्य के खातिर माताओं ने भी डंडे खाए थे 1976"यों तो तुम चिकना घड़ा हो गयी हो! जरा बताना, यह कहाँ का न्याय है? एक भाई के मोक्ष के कारण अन्य सारे भाइयों की कलाई सूनी रह जाए। अक्सर ऐसा हो जाता है, हमारा जो खो गया उसके विलाप में जो हमारे पास है उसको हम अनदेखा करने लग जाते हैं।" अन्तर्देशीय पर छपे शब्दों को आँसू धुंधले कर रहे थे।
1977
"जिस पर पाँच रुपया या दस रुपया टाँका गया हो वही राखी मेरे लिए मंगवाना..,""यह तो अन्याय है। आप अभी अध्येता हैं। जो रुपया नेग में देने के लिए मिलता है, उसे भी आप अपने पास रख लेते हैं और ऊपर से..,"
एक बार जब कुछ लोगों के यह कहने पर कि महीने में कम से कम एक बार सत्यनारायण जी की कथा जरूर सुननी चाहिए और ब्राह्मणों को भोजन खिलाना चाहिए, जब मैंने ये कहा कि इससे अधिक पुण्य तो उनके बच्चों की सिर्फ पढ़ाई का ही खर्चा उठा लो तो मिलेगा! तो बोलते हैं यहां खुद के बच्चों का खर्चा उठा पाना मुश्किल है और ये दूसरों के बच्चों का खर्च उठाने की बात कर रहीं हैं!
मैं ये नहीं कहती कि कोई पूजा पाठ नहीं करें, पर पूजा पाठ के जरिए जो लोग अपने पैसों का प्रदर्शन करते हैं वे जरूरतमंदों की मदद कर के करते तो अधिक बेहतर होता! इससे पैसों का प्रदर्शन भी हो जाता और किसी की मदद भी! एक-दो दिन उनको चकमा देते-दिलाते बीत गये। कुछ वक्त निकल जाने के बाद फिर से माँ मुझे पढ़ाने बैठी तो मैं पहले से ही अपना इंतज़ाम करके गाँठ-गठीली ऊन की गुल्ली जो ताई की मदद से बनाई गयी थी और नारियल की झाड़ू की दो तीलियों की सलाइयाँ चटाई के नीचे छिपाकर बैठी थी। जब माँ मुझे क और ख सिखाने के गहन भाव में आईं तो मैंने उनसे यही कहा कि पढ़ना-लिखना तो फिर सीख ही लूँगी, पहले आप मुझे स्वेटर बुनना सिखा दो। और जैसे आपकी उँगलियाँ सलाइयों पर लगातार मटकती रहती हैं उन्हें मटकाना भी मुझे सिखाओ।पाटी किनारे पड़ी मेरी बातें सुन रही थी। वहीँ पास पड़ी खड़िया प्रतीक्षा में थी कब उसको उठाकर मैं कुछ नया लिखना सीखूँ।
"यों तो तुम चिकना घड़ा हो गयी हो! जरा बताना, यह कहाँ का न्याय है? एक भाई के मोक्ष के कारण अन्य सारे भाइयों की कलाई सूनी रह जाए। अक्सर ऐसा हो जाता है, हमारा जो खो गया उसके विलाप में जो हमारे पास है उसको हम अनदेखा करने लग जाते हैं।" अन्तर्देशीय पर छपे शब्दों को आँसू धुंधले कर रहे थे।
1977
"जिस पर पाँच रुपया या दस रुपया टाँका गया हो वही राखी मेरे लिए मंगवाना..,""यह तो अन्याय है। आप अभी अध्येता हैं। जो रुपया नेग में देने के लिए मिलता है, उसे भी आप अपने पास रख लेते हैं और ऊपर से..,"
एक बार जब कुछ लोगों के यह कहने पर कि महीने में कम से कम एक बार सत्यनारायण जी की कथा जरूर सुननी चाहिए और ब्राह्मणों को भोजन खिलाना चाहिए, जब मैंने ये कहा कि इससे अधिक पुण्य तो उनके बच्चों की सिर्फ पढ़ाई का ही खर्चा उठा लो तो मिलेगा! तो बोलते हैं यहां खुद के बच्चों का खर्चा उठा पाना मुश्किल है और ये दूसरों के बच्चों का खर्च उठाने की बात कर रहीं हैं!
उपयोगी लिंकों के साथ उत्तम चर्चा!
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीया अनीता सैनी जी!
बहुत धन्यवाद पोस्ट को यूं सम्मान देने के लिए अनीता जी!
जवाब देंहटाएंहर सृजन लाजवाब, सुंदर,सराहनीय अंक ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर संकलन
जवाब देंहटाएंअक्षय शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
जवाब देंहटाएंश्रमसाध्य प्रस्तुति हेतु साधुवाद
सभी पोस्ट पढ़ने योग्य हैं और बेहतरीन है बहुत ही उम्दा प्रस्तुति! मेरे लेख को सामिल करने के आप का तहेदिल से बहुत बहुत धन्यवाद🙏
जवाब देंहटाएंसुंदर अंक.हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंसभी गुणी लेखक जनों को मेरा सादर प्रणाम, सभी उत्कृष्ट रचनाओं मे मेरी इस रचना को शामिल करने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार 🙏
जवाब देंहटाएंआभार अनीता जी।
जवाब देंहटाएंवाह!खूबसूरत लिंक्स से सजी प्रस्तुति प्रिय अनीता ।
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट लिंको से सजी आज की लाजवाब चर्चा प्रस्तुति में मेरी रचना साझा करने हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार प्रिय अनीता जी!
जवाब देंहटाएंशानदार चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।