फ़ॉलोअर



यह ब्लॉग खोजें

शनिवार, फ़रवरी 26, 2022

'फूली सरसों खेत में, जीवित हुआ बसन्त' (चर्चा अंक 4353)

 सादर अभिवादन। 

शनिवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है। 

आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-

दोहे "वासन्ती परिवेश" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

फूली सरसों खेत में, जीवित हुआ बसन्त।

आसमान से हो गया, कुहरे का अब अन्त।३।

--

शिव-तेरस का आ रहा, अब पावन त्यौहार।

बम-भोले की हो रहीअब तो जय-जयकार।४।

*****

तुम“

पूर्णचन्द्र की पूर्ण ज्योत्सना 

इन्द्रधनुषी सुन्दरता तुम ।


उतुंग गिरि की उर्ध्व शिखा पर

हिम किरीट सी आभा तुम ।

*****
रेत के घर को तो ढहना था, ढहा, अच्छा हुआ
अब समंदर के किनारे खेलना है फिर !!!

हम परिंदे भाँप लेते हैं हवा की नीयतों को
आज तूफां के इरादे, जानना है फिर !!!
*****

अम्माँ की बोली 

गुणकारक जैसे 

नीम निबोली 


अम्माँ की बोली 

उनींदी पलकों पे 

मीठी सी लोरी 

*****

हम आनंद लोक के वासी

सब इसकी है कारगुजारी 
मन है एक सधा व्यापारी, 
इसके दांवपेंच जो समझे 
पार हो गया वही खिलाड़ी!
*****

लिखते रहे हो दर्द सारे जमाने का,

फुर्सत मिले तो अपना, 

लिखना जरूर जी।

*****

एक सामयिक गीत -शांति के कपोतों के रास्ते कठिन

जियो और

जीने दो

होकर विषपायी,

बारूदी

गन्धों में

भर दो अमराई,

चुप क्यों 

हो टालस्टाय

और गागरिन।

*****अब वसंत ने दी है दस्तक

कल देखो होगी हरियाली
 नयी कोंपलें 
 'बौर' आम 
 कोयल की कूक 
 बारिश रिमझिम
 पीले मेढक 
 सरसों के वे पीले फूल 
कहीं नाचता मोर दिखेगा
*****
युद्ध
न आप, न मैं
कदाचित कभी न गुज़रेंगे
युध्द की इति के उत्सव से
यह फसल
आयुधों की लहलहाती 
पहुँचाएगी हमें 
शायद 
सृष्टि के पतझड़ तक
*****
पंखुड़ी भी पुष्प की 
ठोकती है तालियाँ प्रीत की गाथा यही बोलती हैं बालियाँ यूँ बयारी नृत्य का देखा नव्य प्रकार।।*****बुलावा पत्र

”अच्छा, बताओ बहू कहा है? बड़े बुजुर्गो के आगे ढोक देना भी भूल गई क्या?”

रोहिणी चारपाई से उठती है, निगाहें कमरा तो कभी किचन की तरफ़ दौड़ाती है।

"बुआ जी आप तो मिठाई खाइए,  स्टेट बैंक में मेरा सिलेक्शन हुआ है, दो दिन बाद जॉइनिंग है।”

दीक्षा प्लेट में मिठाई लिए आती है।

”मैं कहूँ न, लाखों में एक है हमारी दीक्षा; तुम तो बौराय गई हो भाभी।”

झोंके-सी बदलती रोहिणी दीक्षा की बलाएँ लेते हुए अपने सीने से लगा लेती है।

*****
आज बस यहीं तक 
फिर मिलेंगे आगामी सोमवार। 
रवीन्द्र सिंह यादव 

8 टिप्‍पणियां:

  1. व्यवस्थित और बेहतरीन चर्चा प्रस्तुति|
    आपका आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी|

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहतरीन चर्चामंच,शानदार पोस्ट।हार्दिक आभार आपका।

    जवाब देंहटाएं
  3. पठनीय एवं सुन्दर सूत्रों से सुसज्जित आज की चर्चा ! मेरी रचना को आज की चर्चा में स्थान दिया आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर लिंक , एक से बढ़कर एक , सभी चयनित रचनाकारों को हार्दिक शुभ कामनाएं और बधाई , मेरी रचना अब वसंत ने दी है दस्तक को भी आप ने शामिल किया बड़ी ख़ुशी हुयी आभार ! राधे राधे !

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर चर्चा अंक ।
    सभी रचनाएं बहुत आकर्षक, सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
    मेरी रचना को चर्चा में स्थान देने के लिए हृदय से आभार।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही सुंदर सराहनीय संकलन।
    बुलावा पत्र को स्थान देने हेतु हृदय से आभार।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  7. सराहनीय और सधा हुआ अंक है। मर्मस्पर्शी रचनाएँ वागर्थ को स्थान देने के लिए एडमिन जी का कृतज्ञ मन से आभार ।

    जवाब देंहटाएं

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।