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बुधवार, मार्च 09, 2022

"नारी का सम्मान" (चर्चा अंक-4364)

 मित्रों!

बुधवार की चर्चा में आपकी स्वागत है।

देखिए कुछ अद्यतन लिंक।

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नारी दिवस "नारी रूप अगर देते" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

-1-
मुझको पुरुष बना कर प्रभु ने,
बहुत बड़ा उपकार किया है।
नर का चोला देकर भगवन,
अनुपम सा उपहार दिया है।

नारी रूप अगर देते तो,
अग्नि परीक्षा देनी होती।
बार-बार जातक जनने की,
कठिन वेदना सहनी होती।।

-2-
काश् मैं नारि होता!
आभासी दुनिया में
ब्लॉग पर
अपना सुन्दर चित्र लगाता
चार लाइन लिखता
और चालीस कमेंट पाता!
काश् मैं नारि होता!

--

महिला दिवस:  हमें पुरूषों की बराबरी नहीं करनी है! 

हम महिलाओं को यह समझना होगा कि हमें पुरुष की बराबरी नहीं करनी है। हमें अपने अस्तित्व को साबित करना है। हम ना देवी हैं ना सुपर वुमन। हम एक मनुष्य हैं।

आपकी सहेली ज्योति देहलीवाल 

--

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष 

जिस  घर में  होता नहीं , नारी  का  सम्मान,
उस घर  की होती नहीं,ख़ुशियों से पहचान।
🌷
            ----ओंकार सिंह विवेक

मेरा सृजन 

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नारी वर्तमान में (अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस पर ) 

 सुनहरी धुप प्रातः की 

जब भी खिड़की से झांकती 

नैनों से दिल में उतरती

दिल को बेचैन करती |

जब कभी विगत में झांकती

उसे याद करती मन से

 वही गीत गुनगुनाती फिर से

जो कभी उसने  गाया था मंच पर | 

Akanksha -asha.blog spot.com 

--

एक दिन मुक्ति के नाम बैनर, पोस्टर, हर जगह छा गई औरत   लड़की बचाओ, लड़की पढ़ाओ    लड़की-लड़की, औरत-औरत   बहन, बेटी, माँ, प्रेमिका अच्छी   मानो आज देवी बन गई औरत   रोज़ जो होती थी वो कोई और है   आज है कोई नयी औरत।   एक पूरा दिन करके औरत के नाम  

लम्हों का सफ़र डॉ.जेन्नी शबनम

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स्वयंसिद्धा 

बेटी हूँ, पत्नी हूँ, माँ हूँ,
यह मेरी पहचान नहीं है.
कठपुतली सा कोई नचाए ,
क्या मेरा कुछ मान नहीं है?
उड़ने की है कब से चाहत,
पंख कटे, संज्ञान नहीं है,

तिरछी नज़र 

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स्त्री 

स्त्री बाजार नहीं है। 

वो व्यापार नहीं है।।

--
क्यों उपभोग किया है 
वो लाचार नहीं है।। 

काव्य कूची 

--

हमेशा अपनों के साथ रिश्ता बनाए रखें 

आज का अनमोल विचार

लड़ लो , झगड़ लो , पर परिवार से अलग होने की कभी मत सोचो क्योंकि उन पत्तो की कोई कदर नही होती जो पेड़ से अलग होकर गिर जाते है ।

=========××=======

 मेले की भीड़ में बच्चा जब तक अपनों का हाथ पकड़कर चलता है उसे मेला बहुत सुंदर और खूबसूरत लगता है, पर वही बच्चा अगर मेले में अपनों से बिछड़ जाये तो वही मेला उसे डरावना लगता है, दुनिया के मेले में 

AAJ KA AGRA 

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'द ऑरिजिनल फेमिनिस्ट्स' 

झाँक रही

क्षितिज से 

अँजोर  में, उषा के।

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खोल अर्गला 

इतिहास की,

पंचकन्याएँ! 

विश्वमोहन उवाच 

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फरवरी 2022 में संग्रह में जुड़ी पुस्तकें 

फरवरी 2022 में संग्रह में जुड़ी पुस्तकें
फरवरी 2022 में मेरे संग्रह में कुल छः पुस्तकें जुड़ी। इनमें से दो पुस्तकें तो पत्नी द्वारा उपहारस्वरूप दी गईं और बाकी चार पुस्तकों को मैंने खरीदा था। आपका तो नहीं पता लेकिन मुझे जब भी कोई व्यक्ति उपहारस्वरूप पुस्तक देता है तो मुझे तो बड़ा मज़ा आता है। इस बार पत्नी जी की तरफ से ये दो पुस्तकें उपहार स्वरूप मिली थी तो दिल गार्डन-गार्डन हो गया था। 


इस माह जो पुस्तकें संग्रह में जुड़ी उनमें से पाँच उपन्यास हैं और एक यात्रा वृत्तान्त है। चलिए देखते हैं कि यह पुस्तकें कौन सी थीं: 

दुई बात 

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तुझे छोड़ कर नहीं आया 

मैं तुझे छोड़ कर नहीं आया,

तेरा दिल तोड़ कर नहीं आया,

ऐसा करना तो रहा कोसों दूर

सपने में भी सोच तक नहीं पाया। 

आपका ब्लॉग 

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बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु! निराला बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु! पूछेगा सारा गाँव, बंधु! यह घाट वही जिस पर हँसकर, वह कभी नहाती थी धँसकर, आँखें रह जाती थीं फँसकर, कँपते थे दोनों पाँव बंधु! 

 
Sapne (सपने ) शशि पुरवार

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आज के लिए बस इतना ही...!

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5 टिप्‍पणियां:

  1. रोचक लिंक से सुसज्जित चर्चा... मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार...

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात
    आभार सहित धन्यवाद मेरी रचना को स्थान देने के लिए आज के अंक में |

    जवाब देंहटाएं
  3. उम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्रीं जी।

    जवाब देंहटाएं
  4. इतने सुंदर संकलन का हार्दिक आभार और सभी रचनाकारों को बधाई!!!

    जवाब देंहटाएं

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