सादर अभिवादन
आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है
(शीर्षक और भुमिका आदरणीया जिज्ञासा जी की रचना से)
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
हृदय की सूखी धरा पर,
ज्ञान की गंगा बहाओ,
सुमन से तम को मिटाकर,
रौशनी का पथ दिखाओ,
लक्ष्य में बाधक बना अज्ञान का जंगल घना।
कर रहा नन्हा सुमन, माँ आपसे आराधना।।
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ज़िन्दगी अक्सर देती है दस्तक
कुछ लम्हों की सौगात लिए,
दहलीज़ पर हो तुम, या
चल रहा हूँ मैं नींद
में इक ख़्वाब
की दुनिया
अपने-----------स्वप्न और जागरण
मन केवल नींद में ही नहीं देखता स्वप्न
दिवा स्वप्न भी होते हैं
जागती आँखों से देखे गए स्वप्न
बात यह है कि
खुद से मिले बिना नींद खुलती ही नहीं
या कहें कि खुद से बिछुड़ना
है एक स्वप्न
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स्नात नैनों को, दुसह स्मृति में झुकाकर, दीन जैसे
सांध्य-ऊषा में फिरेंगे, रेणु बन सर के किनारे।
अब गगन से रक्त बरसे, या कि गिर जाए गगन ही
प्रेयसी, दुःस्वप्न की पीड़ा कहो कैसे बिसारें?------------
कल और आज
जब भी घर लौटते है
बचपन आ जाता है
आज और कल के
झलक दिख जाते है
समय ये ऐसा ढीट है
एक जगह ठहरता नहीं
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व्रत वाले आलू के लच्छेदार पकोड़े--------------------------
आज का सफर यही तक,अब आज्ञा दे आप का दिन मंगलमय हो कामिनी सिन्हा
बहुत सुंदर और सार्थक चर्चा प्रस्तुति|
जवाब देंहटाएंआपका आभार कामिनी सिन्हा जी|
सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअति श्रम और स्नेह से सजाया है विविधरंगी रचनाओं के सूत्रों से आज का चर्चा मंच, बहुत बहुत आभार कामिनी जी!
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, कामिनी दी।
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा संकलन ।
जवाब देंहटाएंएक से बढ़कर एक चयन, हर रचना पठनीय ।
मेरी रचना चयनित करने के लिए बहुत आभार आपका ।
बहुत शुभकामनाएँ सखी 💐💐👏🏻
मेरी रचना की पंक्तियों से सज्जित भूमिका देख मन की गहराई से खुशी हुई । बहुत शुक्रिया आपका ।
हटाएंसुंदर संकलन
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएं मंत्रमुग्ध करती हैं, सभी रचनाकारों को शुभकामनाएं, मुझे शामिल करने हेतु असंख्य आभार नमन सह ।
जवाब देंहटाएंआप सभी स्नेहीजनों को हृदयतल से धन्यवाद एवं सादर नमस्कार 🙏
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