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रविवार, मार्च 13, 2022

'प्रेम ...'(चर्चा अंक-4368)

सादर अभिवादन। 

रविवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है

शीर्षक व काव्यांश आ. दिगम्बर नासवा जी की रचना 'प्रेम...' से-

प्रेम तो शायद हम दोनों ही करते थे
मैंने कहा ... मेरा प्रेम समुन्दर सा गहरा है

उसने कहा ... प्रेम की पैमाइश नहीं होती
 
अचानक वो उठी ... 

चली गई, वापस न आने के लिए

और मुझे भी समुन्दर का तल नहीं मिला ...


आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-

--

दोहे "रंग गुलाल-अबीर" 

अब पछुआ चलने लगी, सर्दी गयी सिधार।
घर-घर दस्तक दे रहा, होली का त्यौहार।१।
--
सारा उपवन महकता, चहक रहा मधुमास।
होली का होने लगा, लोगों को आभास।२।
प्रेम ...

प्रेम तो शायद हम दोनों ही करते थे

मैंने कहा ... मेरा प्रेम समुन्दर सा गहरा है

उसने कहा ... प्रेम की पैमाइश नहीं होती

--

यह भी प्रेम

मेरी झूठी हँसी !
तुम्हारी तकलीफें,
मुझे पीड़ा !
तुम्हारा दिखावा,
मेरा अनजान बने रहना !
रूप भी है गंध मोहक
और मुख मृदु हास है
लिप्त बैठे सेज कंटक
भृंग डोले पास है
क्षण पलों की देह कोमल
लहलहा काया झड़ी।।
किसकी परछाईं थी, जो दबे पांव आई थी!
चुप सी बातों में, कैसी गहराई थी?
जैसे, वियावान में, गूंज कोई लहराया था,
न जाने, कौन यहां आया था!
"तुझे चूहा कुतर देता तो दीमक तुम्हारे पन्ने को भुरभुरा कर देता। मेरी तीखी आँच तुम सह नहीं पाते। फिर ऐसा क्या है जो तुम पुनः-पुनः सज जाते रहे?" वक्त ने पुस्तक से पूछा।

"इसका उत्तर तो सुल्तान जैनुल आबिदीन से लेकर योगराज प्रभाकर जैसे सिरफिरे दे सकते हैं। अरे! तू तो सब बातों का गवाह रहा है!'

"अच्छा ये बता तू किस किस किस्से के दर्ज होने से खुश हुआ?"

--

ब्रज की होरी: श्री कुँज बिहारी बिहारिनजू का फाग महोत्‍सव

सुरंग सेज प्यारे खेलैं होरी ।
दूलहू श्याम रंगीले खिलाड़ी,दुलहिन राधा रसीली गोरी ।।
मान लाज मुस्कन रंग गहरे , फबे मनुहार जुहार निहोरी ।
चोबा चुंबन मलय आलिंगन ,परिरंभन मलैं कुमकुम रोरी ।।
परसत भाये गुलाल अंबीर तन ,अंकौ भरैं नखसिख रसबोरी ।
कृष्णचंद्र राधा चरणदासि बलि,सुरति फाग दिन रंग रस जोरी ।
संसार की संसद में रिश्तों की मीनार की शोभा का बखान करना बेहद दुरूह कार्य है। क्योंकि संसार में कब कौन अपनी धारणाओं के रथ पर सवार होकर सामने वाले की कोमल,अंकुरित भावपूर्ण पौधों को रौंद कर कब यू टर्न ले लेगाआप को पता भी नहीं चलेगा। सामाजिक पटल पर डॉक्टर का मरीज़ सेसेवक का मालिक सेदुकानदार का ग्राहक सेशिक्षक का विद्यार्थी सेपंडित का पुरोहित से और अंत में यदि कहना चाहे तो मित्रता का रिश्ता भी हमारी अवधारणाओं को खंडित-मंडित करता रहता है। अर्थात् दो व्यक्तियों के बीच आपस में होने वाले लगावसुख-दुःख से निपटने के लिए मेल-जोलप्रसन्नता प्रकट करने के लिए साथी जैसे संबंध या संपर्क ही रिश्ते कहलाते हैं। और इन दोनों में ज़रा से भी बदलाव की आहात एक दूसरे से छिपी नहीं रहती। 
-- 

आज का सफ़र यहीं तक 

@अनीता सैनी 'दीप्ति'

9 टिप्‍पणियां:

  1. धन्‍यवाद अनीता जी, इतने खूबसूरत लिंक देने के लिए ...खूब सारा पढ़ा आज और वो भी बड़े दिनों के बाद...इस बीच चर्चामंच को बहुत मिस किया...।

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  2. बहुत सुंदर और सार्थक चर्चा प्रस्तुति
    @अनीता सैनी 'दीप्ति'

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर और सार्थक चर्टा प्रस्तुति।
    आपका आभार @अनीता सैनी 'दीप्ति' जी।

    जवाब देंहटाएं
  4. हार्दिक आभार के संग साधुवाद आपको
    श्रमसाध्य प्रस्तुतिकरण

    जवाब देंहटाएं
  5. शानदार संकलन । सभी रचनाएं बहुत आकर्षक, प्रेरक पठनीय।
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  6. श्रमसाध्य प्रस्तुति, सभी लिंक्स बहुत आकर्षक हैं, सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
    मेरी रचना को चर्चा में स्थान देने के लिए हृदय से आभार।
    सस्नेह सादर।

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत खूबसूरत चर्चा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  8. सभी रचनाएँ सुंदर। चर्चामंच में मुझे स्थान देने हेतु सस्नेह आभार, बहुत बहुत शुक्रिया।

    जवाब देंहटाएं

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