सादर अभिवादन।
शनिवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
शीर्षक व काव्यांश आ.अलकनंदा जी के ब्लॉग 'ख़ुदा के वास्ते' से कवि तेज राम शर्मा जी की कविता 'सपने अपने अपने' से-
बालक ने सपना देखा
उड़ गया वह आकाश में
पीठ से फिसला उसका बस्ता
एक-एक कर आसमान से गिरी
पुस्तकें और काँपियाँ
देख कर मुस्कराया और उड़ता रहा
फिर गिरा आँखों से उसका चश्मा
धरती इतनी सुंदर है
उसने कभी सपने में भी न सोचा था
आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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सूरज उगने से पहले, हम लोग रोज उठ जाते थे,
दिनचर्या पूरी करके हम, खेत जोतने जाते थे,
हरे चने और मूँगफली के, होले मन भरमाते हैं।
गाँवों के निश्छल जीवन की, हमको याद दिलाते हैं।।
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धूप में चमकती है ऊँची कोठी
पहाड़ का विस्मृत युग
देवदार की कड़ियों की तरह
कटे पत्थर की तहों के नीचे
काला पड़ रहा है
बूढे बरगद की पंक्तियों सा
सड़ रहा है
बावड़ी के तल में
पहाड़ का विस्मृत युग
देवदार की कड़ियों की तरह
कटे पत्थर की तहों के नीचे
काला पड़ रहा है
बूढे बरगद की पंक्तियों सा
सड़ रहा है
बावड़ी के तल में
अंतर पृष्ठ का रहस्योद्धार है बहोत
मुश्किल, जिल्द देख कर नहीं
होता अंदाज़ ए गहराई,
हर कोई अपने
अंदर लिए
होता
है
मुख़्तलिफ़ शख़्सियत,
मुश्किल, जिल्द देख कर नहीं
होता अंदाज़ ए गहराई,
हर कोई अपने
अंदर लिए
होता
है
मुख़्तलिफ़ शख़्सियत,
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काम नहीं आती है अक्ल मुहब्बत में,
याद कहाँ रहता है हम दीवानों को !
मौत खींचकर पास बुला ही लेती है,
जाना, जब जलते देखा परवानों को !
याद कहाँ रहता है हम दीवानों को !
मौत खींचकर पास बुला ही लेती है,
जाना, जब जलते देखा परवानों को !
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क्या सचमुच
कुछ हासिल होगा विश्व विजेता बनकर?
शायद एक बार
तुम्हें करना चाहिए
सिकंदर की आत्मा का
साक्षात्कार।
कुछ हासिल होगा विश्व विजेता बनकर?
शायद एक बार
तुम्हें करना चाहिए
सिकंदर की आत्मा का
साक्षात्कार।
रंग उसका जीवन थे
वो सदैव रंगों से सराबोर रहा
उसकी विशलिस्ट में
पहले नम्बर से लेकर
सबसे आख़िर तक
सिर्फ़ और सिर्फ़ रंग थे
उसके कैनवास
दुनिया की बेशकीमती पेंटिंगों में शुमार है,
बगिया में कोयल कूके
मन ना भाए
मोरे साजन न आए
लाल लाल फूल खिले
जिया को जलाए
बदरंग होली अगुन लगाए
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आज सोशल मीडिया हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन गया है। ज्यादातर लोग सुबह नींद से उठते ही सबसे पहले अपना सोशल मीडिया अकाउंट चेक करते है। लेकिन सवाल ये है कि क्या सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने से हमें खुशी मिलती है? हम सोशल मीडिया का उपयोग अपने रिश्तेदारों और परिचितों के संपर्क में रहने और हमारा सामाजिक दायरा बढ़ाने के लिए करते है। लेकिन ऐसी कौन सी वजह है जिसके कारण हमारा सामाजिक दायरा बढ़ने के बावजूद हम में से ज्यादातर लोग अवसाद का शिकार हो रहे है?
आज का सफ़र यहीं तक
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
बढ़िया संकलन शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंकों के साथ प्रस्तुत की गई सार्थक चर्चा|
जवाब देंहटाएंआपका आभार @अनीता सैनी 'दीप्ति' जी|
बहुत ही सुंदर लिंक, सार्थक चर्चा आदरणीया, मेरी रचना विरहिन को भी आप ने मान दिया बड़ी खुशी हुई, आभार। राधे राधे।
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, अनिता दी।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद अनीता बहन,मुझे अपने चर्चामंच पर लाने के लिए..।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अंक, चर्चामंच पर मेरी रचना को लेने हेतु बहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंविविधतापूर्ण सूत्रों से सुसज्जित अंक में मेरी रचना शामिल करने के लिए अत्यंत आभारी हूँ अनु।
जवाब देंहटाएंसस्नेह शुक्रिया।
सराहनीय अंक ।
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